दिल्ली की सत्ता तय करती हैं आरक्षित सीटें
दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे सियासी मुकाबला भी रोचक बनता जा रहा है. कांग्रेस और बीजेपी दिल्ली की सत्ता में वापसी के लिए बेताब नजर आ रही है तो आम आदमी पार्टी चौथी बार सत्ता अपने नाम करने की जंग लड़ रही है. ऐसे में तीनों ही राजनीतिक दल अपने-अपने सियासी और जातीय समीकरण सेट करने में जुटी है, लेकिन सभी की निगाहें सत्ता को सुरक्षित करने वाली आरक्षित सीटों पर है.
दिल्ली में अनुसूचित जाति के लिए 12 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं. राज्य में कुल 70 विधानसभा सीटें हैं. 1993 से लेकर 2020 तक दिल्ली में आरक्षित सीटों से ही सत्ता का रास्ता निकला है. इन 12 सीटों पर जिस भी दल को जीत मिली है, वो दल दिल्ली में सरकार बनाने में कामयाब रहा है. राजधानी के तीन दशक के चुनावी वोटिंग पैटर्न को देखें तो साफ है कि आरक्षित सीटों का वोटिंग ट्रेंड एक तरह का रहा है. इन सीटों का जनादेश कभी बिखरता नहीं है और एक दल को अधिकांश सीटें मिलती हैं. इसके चलते ही सत्ता की दशा और दिशा आरक्षित सीटों से तय होती है.
दिल्ली में 12 आरक्षित सीटें
दिल्ली विधानसभा की कुल 70 में से 12 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. मंगोलपुरी, मादीपुर, सीमापुरी, त्रिलोकपुरी, सुल्तानपुर माजरा, गोकुलपुर, बवाना, पटेल नगर, कोंडली, अंबेडकर नगर, देवली और करोलबाग विधानसभा सीट है. इन 12 आरक्षित सीटों पर दलित समाज से ही विधायक चुने जाते रहे हैं, क्योंकि इन सीटों पर उन्हें चुनाव लड़ने की इजाजत है. भले ही यहां एक दर्जन सीटे हैं, लेकिन ये सभी दिल्ली की सत्ता की दिशा और दशा को तय करने वाली मानी जाती है. बीजेपी से लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता पर तभी काब्जा जमाने में कामयाब रही हैं, जब उन्होंने आरक्षित सीट पर जीत दर्ज की है.
केजरीवाल दो बार क्लीन स्वीप किया
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सत्ता पर तीन बार काबिज हो चुकी है. 2013, 2015 और 2020 में आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई है. पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अन्ना आंदोलन से निकलकर सियासी पिच पर 2013 में अपनी किस्मत आजमाई थी. साल 2013 में आम आदमी पार्टी को दिल्ली की 70 में से 28 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. दिल्ली की सुरक्षित 12 सीटों में से 9 सीटों पर आम आदमी पार्टी ने कब्जा जमाया था जबकि बीजेपी 2 सीटें ही जीती थी और एक सीट कांग्रेस को मिली थी. केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी. दिल्ली में केजरीवाल की जीत में दलित समाज का अहम रोल था.
साल 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने सभी 12 आरक्षित सीटें जीतने में कामयाब रही थी. कांग्रेस और बीजेपी को एक भी दलित आरक्षित सीट पर जीत नहीं मिली सकी. आम आदमी पार्टी ने आरक्षित सीटें पर क्लीन स्वीप कर दिल्ली की सत्ता को सुरक्षित किया था. आप को 2015 में 73 सीट पर जीत मिली थी तो 2020 में 62 सीटों पर जीत का परचम फहराया था. इस तरह केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता को अपने नाम किया था.
कांग्रेस ने लगाई थी सत्ता की हैट्रिक
कांग्रेस दिल्ली में सत्ता की हैट्रिक लगाने में कामयाब रही थी. 1998 से लेकर 2008 के चुनाव में लगातार तीन बार कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई थी, जिसमें आरक्षित सीटों की अहम भूमिका रही है. 1998 के चुनाव में आरक्षित 12 सीटों में से कांग्रेस ने सभी सीटों पर जीतकर सत्ता अपने नाम की थी. बीजेपी और बसपा जैसी दूसरी पार्टियों ने एक भी आरक्षित सीट नहीं जीत सकी थी. इसके बाद 2003 में आरक्षित 12 में से कांग्रेस 10 सीट पर जीत दर्ज की थी, बीजेपी दो सीटें ही जीत सकी थी.
कांग्रेस दिल्ली में सरकार बनाने में कामयाब रही. 2008 के विधानसभा चुनाव में आरक्षित 12 सीटों में से कांग्रेस ने 9, बीजेपी ने 2, बसपा ने एक सीट पर जीत हासिल की. इस तरह आरक्षित सीटों में ज्यादा से ज्यादा सीटें कांग्रेस ने जीतकर सत्ता अपने नाम की थी. 2013, 2015, 2020 का विधानसभा चुनाव जीतकर अरविंद केजरीवाल ने सत्ता का बागडोर अपने हाथ में रखी थी.
बीजेपी ने जब बनाई थी सरकार
दिल्ली के सियासी इतिहास में बीजेपी सिर्फ एक बार ही सरकार बना सकी है. केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में विधानसभा बहाल होने के बाद राजधानी में पहली बार 1993 में विधानसभा चुनाव हुए हैं. 1993 में दिल्ली में 13 विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी. इन 13 सीटों में से बीजेपी 8 सीट और कांग्रेस 5 सीट पर जीत दर्ज की थी. दिल्ली एससी आरक्षित सीटों में दो तिहाई सीटें जीतकर सत्ता अपने नाम की थी. मदनलाल खुराना दिल्ली के सीएम बने थे.
2025 में क्या रहा आरक्षित सीट का?
दिल्ली की एक दर्जन विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, लेकिन दलित समाज का प्रभाव सिर्फ इन्हीं सीटों पर नहीं है बल्कि अन्य सीट पर भी है. दिल्ली में दलित मतदाता 17 फीसदी से 45 फीसदी तक हैं. इनमें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 12 सीटें भी शामिल हैं. बीजेपी और कांग्रेस पिछले दो चुनावों में इन 12 में से एक भी सीट नहीं जीत पाईं. इस बार बीजेपी ने झुग्गियों और अनधिकृत कॉलोनियों में दलित कार्यकर्ताओं के जरिए व्यापक संपर्क अभियान चलाया है.
बीजेपी का लक्ष्य दलित मतदाताओं को अपनी ओर खींचना है तो कांग्रेस भी दलित वोटों पर ही नजर गढ़ाए हुए है. बीजेपी दलित समुदाय के विश्वास को जीतने के लिए कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ रही है. कांग्रेस सामाजिक न्याय का नारा देकर दलित आरक्षित सीटों पर अपना जीत का परचम फहराना चाहती है. वहीं, आम आदमी पार्टी पिछले दो विधानसभा चुनावों में मिली जीत को बरकरार रखना चाह रही है, जिसके लिए दलित समाज के दिल जीतने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही हैं. पिछले दिनों डॉ. आंबेडकर पर अमित शाह के द्वारा किए गए कथित टिप्पणी को अपमान का मुद्दा बनाते हुए अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी को दलित विरोधी कठघरे में खड़ी करने की कोशिश की है.
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