ब्रिटिश पीएम ऋषि सुनक.
ऋषि सुनक 24 अक्तूबर 2022 को जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने थे, तब उनकी पहली तस्वीर 27 अक्तूबर को वायरल हुई थी, जिसमें वे अपनी पत्नी अक्षता के साथ गाय की पूजा करते हुए दिख रहे थे. गाय की पूजा और खुद को प्राउड हिंदू बताना भी उनके लिए आफत बन गया. पूरे यूरोप में गोरे बीफ बड़े चाव से खाते हैं. गोट मीट वहां इतनी सहजता से उपलब्ध भी नहीं है. और यूरोप ही क्यों एशिया के कुछ देशों को छोड़ कर सभी जगह बीफ खाने का चलन है. अमेरिका, कनाडा और ब्राज़ील, मैक्सिको में भी बीफ ही मांसाहारियों का सर्वप्रिय आहार है. बफ़ेलो विंग्स वहां सब जगह मिल जाएगा. बीफ और पोर्क ही इन मुल्कों में अधिक खाया जाता है. बीफ के एक पीस को ब्रेड में दबाया और खा लिया. यही इन मुल्कों में सुबह का नाश्ता है. जो पूरे दिन के लिए जरूरी कैलोरी प्रदान करता है.
हालांकि बीफ का मतलब गोमांस नहीं होता. किसी भी बड़े पशु के मांस को वहां बीफ बोला जाता है. यहां तक कि घोड़े के मांस को भी. यूरोप और अमेरिका में लोग गाएं और घोड़े ही पालते हैं. मांस की कुल खपत का 58 प्रतिशत बड़े पशुओं का मांस है, जिसे बीफ कहा जाता है. सुअर का मांस महंगा पड़ता है और उसके पीसेज भी बाजार में सहज नहीं मिलते इसलिए अमेरीकी बाजारों में बीफ के पीस ही सबसे अधिक बिकते हैं. प्रोटीन और विटामिन B-12 से भरपूर बीफ सस्ता भी पड़ता है और इन मुल्कों में हर जगह मिल जाता है. भारत से भैंसे के मांस की बिक्री पर कोई प्रतिबंध नहीं है इसलिए यहां से भैंसे का मांस बीफ बता कर निर्यात किया जाता है. मालूम हो कि यूरोप और उत्तरी अमेरिका में भैंसें नहीं मिलतीं. वहाँ गायें ही रंग-रूप में भैंस की तरह होती हैं.
कलावा बांधे गाय की पूजा करते ऋषि के फोटो
कलावा बांधे ऋषि सुनक द्वारा सपत्नीक गाय की पूजा करने की तमाम फोटो जब मीडिया के ज़रिये पब्लिक में आईं तब ही ब्रिटेन के लोगों को अटपटा लगा था. लेकिन ऋषि सुनक ने अपनी पहली ब्रीफ्रिंग में बीफ के बिजनेस को बढ़ाने का वायदा भी किया था. जुलाई 2022 में जब वे प्रधानमंत्री पद के लिए कैंपेनिंग कर रहे थे तब द टेलिग्राफ को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, कि वे लोकल फूड खरीदने के लिए वे अभियान चलाएंगे. लोकल फूड का मतलब वहां बीफ है. ब्रिटेन में लोग बड़े मवेशी पालते हैं. इनमें गाय और घोड़े ही खास होते हैं. इन मवेशियों को पालने का मकसद उनके मांस के जरिए व्यापार करना है. उस समय उन्होंने कहा था, हालांकि वे बीफ नहीं खाते हैं. पर बीफ के व्यापार को समृद्ध करेंगे. अपने इस इंटरव्यू के जरिये उन्होंने हिंदुओं और अश्वेत ब्रिटिशर्स दोनों को खुश करने की कोशिश की थी. इसका लाभ भी उन्हें लिज ट्रस के बाद मिल गया.
हिंदू प्राउड का प्रदर्शन ऋषि को संकुचित करता है
ऋषि सुनक ब्रिटेन के सर्वाधिक अमीर लोगों में से एक हैं. कहा जाता है, उनकी कुल संपत्ति ग्रेट ब्रिटेन के शाही घराने से भी अधिक है. वे भारतवंशी हैं, लेकिन न वे न उनके माता-पिता भारत में पैदा हुए न ही कभी रहे. उनके दादा पंजाब के एक गांव से पूर्वी अफ़्रीका चले गए थे. वहीं से उनके माता-पिता ब्रिटेन गए. ऋषि सुनक का जन्म ब्रिटेन में ही हुआ. उनकी पत्नी अक्षता भारत के अरबपति बिजिनेसमैन नारायणमूर्ति की पुत्री हैं. उनकी सास सुधा मूर्ति इस समय भारत में राज्य सभा की सदस्य भी हैं. उनके परिवार की ख्याति उन्हें ब्रिटेन के भारतवंशियों के बीच प्रतिष्ठा तो देती है. परंतु अपनी निजी आस्थाओं और धार्मिकता का प्रदर्शन उन्हें ब्रिटेन में संकुचित भी बनाता है. दुनिया भर के भारतीय मूल के लोग तब खूब प्रसन्न हुए थे, जब ऋषि सुनक ने यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी.
भारतीयों के लिए प्राउड थे ऋषि
जिन ब्रिटिशर्स ने 200 वर्षों तक भारत पर राज किया, उन्हीं के देश में एक भारत वंशी का सरकार प्रमुख के तौर पर चुन लिया जाना बहुत बड़ी उपलब्धि थी. मजे की बात कि वे उस अनुदारवादी दल के नेता चुने गए, जिस दल का एक प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल महात्मा गांधी से घृणा करता था. लेकिन उनकी यह उपलब्धि दो वर्ष भी पूरे न कर पाई. इसमें कोई शक नहीं कि ऋषि सुनक ने ब्रिटेन को आर्थिक तंगहाली से निकाला. वहांं की स्वास्थ्य व्यवस्था को पटरी पर लाए और कोरोना के दौरान उनके कार्यों की सबने सराहना की. कोरोना काल में प्रधानमंत्री बोरिस जाॅनसन की सरकार में ट्रेजरी के मुख्य सचिव (वित्त मंत्री) थे. उस समय उन्होंने अपनी जेब के पैसे से ब्रिटेन के लोगों की मदद की थी. मगर उनका बार-बार खुद को प्राउड हिंदू कहना भी उनके लिए हार का कारण बनता दिख रहा है.
हिंदू-मुस्लिम तनातनी को समाप्त किया
उनके प्रधानमंत्री बनने के एक महीने (17 सितंबर 2022) पहले ब्रिटेन के शहर लेस्टर में हिंदू-मुस्लिम झड़प हुई थी. इसमें बहुत-से लोग घायल हुए थे. ब्रिटेन के इतिहास दक्षिण एशिया के दो समुदायों के बीच यह यह पहली हिंसक झड़प थी. सुनक ने इन सब पर काबू पा लिया. पर मजेदार बात यह है कि लेस्टर में लेबर पार्टी के नेता कीर स्टार्मर अधिक लोकप्रिय हैं. स्टार्मर भी उसी तरह-तरह मंदिर-मंदिर जा रहे हैं, जैसे वहां सुनक. लेकिन सुनक के साथ उनकी रवांडा योजना की बदनामी भी इन आप्रवासियों के बीच पहुंच रही है. उन्होंने इस योजना के तहत इंग्लिश चैनल पार कर ब्रिटेन आने वाले अवैध शरणार्थियों को रवांडा भेजने की नीति पर अमल की बात कही है. कीर स्टार्मर इस योजना के विरोधी हैं. यह बात वहांं पर भारत, पाकिस्तान और बांग्ला देश मूल के लोगों को बहुत पसंद आ रही है. क्योंकि ब्रिटेन पहुंचने के लिए वही इस रास्ते को अपनाते हैं. इसलिए लेस्टर में स्टार्मर कंजर्वेटिव पार्टी से आगे दिख रहे हैं.
14 वर्षों की एंटी इनकमबेंसी
इसके अलावा यूनाइटेड किंगडम में पिछले 14 वर्षों से कंजर्वेटिव पार्टी का राज है और पिछले 14 वर्षों में पार्टी ने 5 प्रधानमंत्री बदले. डेविड कैमरून 2010 में प्रधानमंत्री चुने गए थे फिर 2016 से 2019 तक थेरेसा मे का कार्यकाल रहा. 2019 से 2022 तक ब्रेक्जिट के चलते बोरिस जाॅनसन रहे. लॉकडाउन के दौरान क्वारंटाइन की शर्तों का उल्लंघन करने के कारण और संसद को गुमराह करने की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा लिज ट्रस प्रधानमंत्री चुनी गईं. तत्काल बाद क्वीन एलिजाबेथ की मृत्यु हो गई. प्रिन्स चार्ल्स ब्रिटेन के राष्ट्र प्रमुख हुए. ट्रस को मात्र 45 दिनों में 24 अक्तूबर 2022 को हटा दिया गया और ऋषि सुनक प्रधानमंत्री चुने गए. ब्रेक्जिट (ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने का प्रस्ताव) का समर्थन करने के कारण ही सुनक को लोकप्रियता मिली थी. इसके बाद से ही वे राजनीति में सीढ़ियां चढ़ते गए. बोरिस जाॅनसन को भ्रष्टाचार के आरोप में जैसे ही हटाया गया था, उनके आसार बढ़ते गए थे. श्वेत होने के कारण टोरी संसद लिज़ ट्रस के साथ रहे. परंतु नाकामियों के चलते उनके हटते ही सुनक प्रधानमंत्री बन गए.
ब्रेक्जिट भी सुनक के लिए काल बना
यूरोपीय संघ से अलग होने के लिए बोरिस जाॅनसन ने अभियान चलाया था. जैसे ही ब्रिटेन यूरोपीय संघ से अलग हुआ बोरिस कि लोकप्रियता शिखर पर पहुँच गई. 2019 के चुनाव में उन्होंने बुरी तरह लेबर पार्टी को हराया था. मगर कोरोना काल में उनके अपने आचरण ही उनके लिए मुसीबत बन गए. बाद में मौक़ा ऋषि सुनक को मिला. लेकिन जिस ब्रेक्जिट के चलते सुनक की लोकप्रियता खूब बढ़ी थी, वह ब्रेक्जिट ही उनके लिए काल बनता दिख रहा है. यह ठीक है कि ब्रिटेन अब 2019 की तुलना में कुछ बेहतर आर्थिक स्थिति में है. मगर यूरोप के विकसित देशों की तुलना में वहाँ की अर्थ व्यवस्था की हालत खस्ता है. यूरोपीय संघ का जो लाभ उसे मिल रहा था, उससे भी वह वंचित हो गया. दूसरे यूनाइटेड किंगडम के लोग भी कंजर्वेटिव पार्टी से ऊब चुके हैं. वे अब बदलाव चाहते हैं. साथ ही सुनक की गो-भक्ती भी बीफ खाने वाले ब्रिटेन निवासियों को रास नहीं आ रही है.
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