अमित पांडेय, खैरागढ़. जिले में पानी नहीं, उम्मीदें सूख गई है। करोड़ों की योजनाएं, लाखों की मशीनें और बड़े-बड़े वादे, लेकिन जनता के हिस्से आया तो सिर्फ जंग खाया वाटर एटीएम और धूल फांकती उम्मीदें। नगर के इतवारी बाजार बस स्टैंड और सरकारी अस्पताल में लगे दो वाटर एटीएम अब कबाड़ वाले शो-पीस बन चुके हैं। ये वही मशीनें हैं, जिन्हें नागपुर की नामी कंपनी राइट वॉटर सॉल्यूशन ने “जनता के लिए वरदान” बताकर सरकार से भारी-भरकम बजट पास करवा लिया था। हर एक एटीएम पर करीब 12 लाख रुपये खर्च हुए। मशीनें लगीं, फीते कटे और सरकार ने अपनी पीठ खुद ही थपथपाई, लेकिन अब हालत ये है कि एक-एक बूंद पानी के लिए लोग दर-दर भटक रहे हैं।
भीषण गर्मी में जब छांव भी अमूल्य हो जाती है, तब सरकारी अस्पताल के बाहर बैठा एक मरीज का परिजन पानी की बोतल 20 रुपए में खरीद रहा होता है। वहीं से दस कदम की दूरी पर 12 लाख की लगी मशीन उसे मुंह चिढ़ा रही होती है। इतवारी बाजार का नजारा इससे अलग नहीं है। यहां यात्रियों की भीड़, झुलसती दोपहर, प्यासी गले, लेकिन पानी नहीं है। मशीन खड़ी है, लेकिन चलती नहीं है। लोग गुस्से में हैं, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है। नगर पालिका के अधिकारी कहते हैं कि कंपनी देखेगी, कंपनी वाले कहते हैं कि ठेका खत्म हो गया है।



सरकार और कंपनी दोनों ने सिर्फ फ़ॉर्मेल्टी निभाई
राइट वॉटर सॉल्यूशन का दावा था कि ये वॉटर एटीएम खुद से चलेंगे, लोगों को सस्ता और शुद्ध पानी मिलेगा और हर मोहल्ला जल स्वावलंबी बनेगा, मगर हकीकत यह है कि ये मशीनें जनता को पानी नहीं, सिर्फ धोखा दे रही है। न फिल्टर बदला गया, न सिस्टम अपडेट हुआ, न कोई ऑपरेटर नियुक्त किया गया। इससे साफ है कि सरकार और कंपनी दोनों ने सिर्फ फ़ॉर्मेल्टी निभाई। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर ये वॉटर एटीएम किसके लिए लगाए गए थे? जनता के लिए या किसी ठेकेदार की जेब गरम करने के लिए? लाखों की मशीनें अगर कुछ महीनों में ही बंद हो जाए और किसी को फर्क न पड़े तो समझ लीजिए कि सिस्टम सिर्फ मशीनों का नहीं, सोच का भी खराब हो चुका है।
12 लाख की हर मशीन से जनता को अब तक कितना बूंद पानी मिला?
खैरागढ़ अकेला नहीं है. छत्तीसगढ़ के कई जिलों में ऐसे ही हालात हैं, जहां वॉटर एटीएम लगे हैं पर वहां पानी नहीं है। जहां पानी है, वहां मशीनें गायब हैं। सरकार बदलती रही, योजनाएं बदलती रही, लेकिन जो नहीं बदला वो है जनता की हालत। आज भी लोग प्यासे हैं और सिस्टम खामोश है। सरकार और कंपनी दोनों को चाहिए कि वो मैदान में उतरें, इन मशीनों की सच्चाई देखें, और जवाब दें कि आखिर 12 लाख रुपये की हर मशीन से जनता को अब तक कितनी बूंद पानी मिला? और नहीं मिला, तो क्यों नहीं मिला? अगर जवाब नहीं है तो कम से कम इतना तो मान लें कि इन वॉटर एटीएम ने लोगों को पानी नहीं दिया, लेकिन ये जरूर बताया कि कैसे विकास सिर्फ पोस्टर में होता है, जमीन पर नहीं।
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