
अखिलेश यादव, राहुल गांधी, तेजस्वी यादव
गुजरात के अहमदाबाद में कांग्रेस अपने उभरने के लिए सियासी मंथन और भविष्य की रूपरेखा बनाने में जुटी है. मंगलवार को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक हुई, जिसमें पार्टी के लगातार गिरते जनाधार पर मंथन हुआ. सीडब्ल्यूसी की बैठक में कांग्रेस की कमजोरियों पर खूब चर्चा हुई, लेकिन पार्टी के उभरने का रोडमैप कोई नहीं बता सका. ऐसे में जब राहुल गांधी बोलने उठे तो उन्होंने सिर्फ कांग्रेस की कमजोरी के साथ बल्कि पार्टी के फ्यूचर पॉलिटिक्स का एक्शन प्लान भी सबके सामने रखा, लेकिन उससे सबसे बड़ी टेंशन कांग्रेस की सहयोगी सपा और आरजेडी जैसे दलों की बढ़ सकती है.
कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. देश की सत्ता से कांग्रेस 11 साल से बाहर है और एक के बाद एक राज्य उसकी पकड़ से बाहर निकलते जा रहे. ऐसे में कांग्रेस दोबारा से उभरने के लिए गुजरात के अहमदाबाद में दो दिन से मंथन कर रही. कांग्रेस के इस अधिवेशन का मकसद संगठन को मजबूत करना और देश के प्रमुख मुद्दों पर विचार-विमर्श करना है. सीडब्ल्यूसी की बैठक में राहुल गांधी ने जिस तरह ओबीसी समाज पर मुख्य फोकस करने और मुस्लिमों के मुद्दे पर खुलकर बात रखने की बात कही है, उससे साफ है कि कांग्रेस अब अपने पुराने सियासी पैटर्न से बाहर निकलकर अपने राजनीतिक आधार को बढ़ाने की कवायद में है.
राहुल गांधी की फ्यूचर पॉलिटिक्स
कांग्रेस अधिवेशन के पहले दिन मंगलवार को सीडब्ल्यूसी की बैठक हुई. सूत्रों की मानें तो बैठक में राहुल गांधी ने कहा कि हम दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण में उलझे रहे और ओबीसी समाज पूरी तरह हमसे दूर हो गया. पार्टी के पास अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का समर्थन है, लेकिन ओबीसी वर्गों और अन्य कमजोर तबकों का समर्थन भी हासिल करने की जरूरत है. महिलाओं का भी समर्थन हासिल करना होगा, जो देश की आबादी का करीब 50 फीसदी हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि कांग्रेस जब अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिम समुदाय की बात करती है, तो उसकी आलोचना होती है, लेकिन इससे डरने की जरूरत नहीं है. कांग्रेस को ऐसे मुद्दे उठाने चाहिए और बिना झिझक अपनी बात रखनी चाहिए.
सीडब्ल्यूसी की बैठक में राहुल गांधी ने सामाजिक न्याय की दिशा में बढ़ने का संकेत दिया है. उन्होंने साफ कहा कि ओबीसी वर्ग तक पहुंचने से पीछे नहीं हटेगी और मुसलमानों से जुड़े हुए मुद्दों पर भी खुलकर बोलने की वकालत की है. राहुल गांधी ने जोरदार ढंग से तर्क दिया कि पार्टी को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) तक अपनी पहुंच बढ़ानी होगी और उन्हें उनके हितों की रक्षा करने से पीछे नहीं हटना चाहिए. उन्होंने कहा कि पार्टी को निजी क्षेत्र में वंचित वर्गों के लिए आरक्षण की मांग करनी चाहिए. राहुल गांधी ने कहा कि पिछड़े, अति पिछड़े और सबसे पिछड़े समुदायों तक पहुंचकर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में चुनावी वापसी भी कर सकती है.
राहुल के एक्शन आगे बढ़ने का प्लान
राहुल गांधी अब पूरी तरह से फोकस दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय पर कांग्रेस को करने के लिए कह रहे है. यही वजह है कि बुधवार को अहमदाबाद में कांग्रेस अधिवेशन में सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय और राजनीतिक न्याय को लेकर अपना एजेंडा पेस करेगी. ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस जातिगत जनगणना से लेकर आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट को खत्म कर जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी देने का प्रस्ताव पास कर सकती है.
उदयपुर के अधिवेशन में कांग्रेस ने 50 फीसदी पद पार्टी में दलित और ओबीसी को देने का प्रस्ताव पास किया था, लेकिन अब पार्टी उससे आगे बढ़ने जा रही है. यही नहीं, कांग्रेस ने आरक्षण पर भी अपना दावा मजबूत करने के लिए मजबूत आधार तैयार किया है, जिसमें कांग्रेस सरकार ने कब-कब आरक्षण को लेकर कदम उठाया है. इस तरह से राहुल गांधी सामाजिक न्याय का एजेंडा सेट कर बीजेपी से मुकाबला करना और कांग्रेस को दोबारा से सत्ता दिलाना चाहते हैं, लेकिन उससे बीजेपी ही नहीं बल्कि सपा और आरजेडी जैसे सहयोगी दलों के लिए चिंता का सबब बन सकता है.
कांग्रेस का दलित-ओबीसी पर फोकस
कांग्रेस की रणनीति के लिहाज से ओबीसी काफी अहम हैं, जिसके चलते ही पार्टी ने अपना पूरा फोकस पिछड़ा वर्ग पर करने की रणनीति बनाई है. मंडल कमीशन के लिहाज से देखें तो करीब 52 फीसदी ओबीसी समुदाय, 16.6 फीसदी दलित और 8.6 फीसदी आदिवासी समुदाय है. इस तरह देश में करीब 75 फीसदी तीनों की आबादी है, जिस पर कांग्रेस की नजर है. इसके अलावा 14 फीसदी के करीब मुस्लिम हैं, जिसमें ओबीसी और सवर्ण दोनों ही मुस्लिम शामिल हैं. देश में दलित, ओबीसी समुदाय किसी भी राजनीतिक दल का चुनाव में खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. ऐसे में कांग्रेस सामाजिक न्याय के सहारे उन्हें अपने साथ जोड़ने की कवायद में है, जिसके लिए जातिगत जनगणना और 50 फीसदी आरक्षण लिमिट को खत्म करने का वादा कर रही.
कांग्रेस से विरोध में बने ओबीसी दल
आजादी के बाद से कांग्रेस की पूरी सियासत उच्च जातियों और गरीबों के इर्द-गिर्द सिमटी रही है. कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण हुआ करता था. कांग्रेस इन्हीं जातीय समीकरण के सहारे लंबे समय तक सियासत करती रही है. ऐसे में कांग्रेस पार्टी को पिछड़े वर्ग और आरक्षण का विरोधी माना जाता रहा है और बार-बार राजीव गांधी के दिए उस भाषण का भी हवाला दिया जाता है, जिसमें उन्होंने लोकसभा में मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने का विरोध किया था.
मंडल कमीशन के बाद देश की सियासत ही पूरी तरह से बदल गई और ओबीसी आधारित राजनीति करने वाले नेता उभरे, जिनमें मुलायम सिंह यादव से लेकर लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार जैसे मजबूत क्षत्रप रहे. देश में ओबीसी सियासत इन्हीं नेताओं के इर्द-गिर्द सिमटती गई और कांग्रेस धीरे-धीरे राजनीतिक हाशिए पर पहुंच गई. ओबीसी नेताओं ने कांग्रेस के खिलाफ खुद की सियासत खड़ी की. कांग्रेस के विरोध में सपा से लेकर आरजेडी और बसपा तक बनी, जिनका सियासी एजेंडा सामाजिक न्याय ही रहा है. सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में ओबीसी राजनीति को लेकर आगे बढ़े और आरजेडी के संस्थापक लालू प्रसाद यादव की पूरी पॉलिटिक्स ओबीसी केंद्रित रही और बिहार में अपना सियासी आधार बनाया.
सपा-आरजेडी की क्यों बढ़ेगी टेंशन?
कांग्रेस दलित-आदिवासी-ओबीसी समुदाय को जोड़ने का खाका तैयार कर रही है. राहुल गांधी ‘जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ के एजेंडे को भी आगे रख रहे हैं. इस तरह कांग्रेस देश में आबादी के लिहाज से आरक्षण देने की पैरवी कर रही है, जो बात सपा और आरजेडी करते रहे हैं. उत्तर प्रदेश में सपा और बिहार में आरजेडी का सियासी आधार वही है, जो कभी कांग्रेस का हुआ करता था. कांग्रेस अब अपने सियासी आधार को दोबारा से हासिल करने की कवायद में है, जिसके लिए दलित और मुस्लिम के साथ ओबीसी जातियों के वोटर्स को जोड़ने के लिए राहुल गांधी कह रहे हैं.
कांग्रेस ओबीसी जातियों के बीच अपनी पैठ बनाने में सफल रहती है तो सपा और आरजेडी की भविष्य की राह काफी मुश्किलों भरी हो सकती है. यूपी में सपा और बिहार में आरजेडी ने मुस्लिम वोटों को अपने साथ लेकर कांग्रेस की सियासी जमीन पूरी तरह से कब्जा लिया था. इसके चलते कांग्रेस अभी तक यूपी और बिहार में उभर नहीं पाई. ऐसे में अगर कांग्रेस ओबीसी, दलित वोटों को अपने साथ जोड़ने में सफल रहती है तो बीजेपी ही नहीं ओबीसी की सियासत करने वाली कई क्षेत्रीय दलों के लिए भी सियासी संकट खड़ा हो सकता है. ऐसे में सबसे ज्यादा खतरा अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव के लिए हो सकता है.
बीजेपी के लिए कैसे बढ़ाएगी टेंशन?
बीजेपी 2014 के बाद से ओबीसी वोटों के सहारे सत्ता पर काबिज होती आ रही. नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे करके ओबीसी वोटों का भरोसा जीतने में सफल रही है और अपना एक नया मजबूत वोट बैंक बनाया है. हालांकि, एक समय बीजेपी को ब्राह्मण और बनियों की पार्टी कहा जाता, लेकिन अब भगवा पार्टी ने उस नैरेटिव को तोड़कर बाहर निकलकर तमाम ओबीसी और दलित जातियों को अपने साथ जोड़ने का काम किया. बीजेपी उन्हीं के वोटों के बदौलत देश की सत्ता ही नहीं बल्कि राज्यों की सत्ता पर भी पूरी ताकत से काबिज है.
बीजेपी के विनिंग फॉर्मूले से कांग्रेस पीएम मोदी को हराने का सियासी ताना बाना बुना है, जिसके लिए जातिगत जनगणना और 50 फीसदी आरक्षण लिमिट को खत्म करने और ओबीसी वोटों पर फोकस करने की स्ट्रेटेजी अपनाई है. बीजेपी ने जातिगत जनगणना कराने से साफ इनकार कर चुकी है और कांग्रेस अब इस पर मुखर है. इतना ही नहीं कांग्रेस ने दलित और ओबीसी आरक्षण पर भी अपना दावा करने का प्लान बनाया है.
कांग्रेस के प्रस्ताव में कहा गया है कि इतिहास इस बात का गवाह है कि जब 1951 में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को रद्द कर दिया था, तो जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने ही संविधान में पहला संशोधन किया था और मौलिक अधिकारों के अध्याय में अनुच्छेद 15(4) जोड़ा था. 1993 में मंडल आयोग की अधिसूचना जारी की गई और ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिया गया तो भी कांग्रेस की सरकार केंद्र में थी. इस तरह कांग्रेस ये बताना चाहती है कि कांग्रेस हमेशा से ओबीसी आरक्षण की पैरेकार रही है और उसे कानूनी ही नहीं बल्कि संवैधानिक दर्जा देने की कवायद की है. इस तरह से कांग्रेस अपने ऊपर लगे आरक्षण विरोधी तमगे को तोड़ना का दांव भी माना जा रहा है.
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