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‘लोकमाता’ अहिल्याबाई जयंती : सशक्तिकरण, सामाजिक उत्थान और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रकाश स्तंभ है अहिल्याबाई का जीवन- सीएम योगी

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May 31, 2025    15086 views     Online Now 328

लखनऊ. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अहिल्याबाई होल्कर की जयंती पर उन्हें नमन किया. उन्होंने सोशल मीडिया में एक पोस्ट साझा किया है. जिसमें लिखा है कि ‘सेवा, धर्मनिष्ठा, न्यायप्रियता और लोक-कल्याण की प्रतीक, ‘लोकमाता’ अहिल्याबाई होल्कर की जयंती पर कोटिशः नमन! उनका जीवन महिला सशक्तिकरण, सामाजिक उत्थान और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रकाश स्तंभ है, जो हमें युगों-युगों तक प्रेरणा प्रदान करता रहेगा.’

बता दें कि अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के जामखेड कस्बे के ग्राम चांडी में हुआ था. अब इस जिले को अहिल्यानगर कहा जाता है. उनके पिता मनकोजी राव शिंदे मराठा सेना में एक सैनिक थे. जो बाद में नायक बने. माता सुशीला बाई भी गांव के एक सामान्य किसान परिवार से थीं.

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अहिल्याबाई स्वयं एक भावना प्रधान महिला थीं. महिलाओं के सम्मान और अधिकार के प्रति वे ज्यादा संवेदनशील थीं. वे कभी भी पुरुषों की उपस्थिति में महिलाओं की व्यथा नहीं सुनती थीं. उन दिनों एक नियम था. यदि किसी पुरुष का निधन हो जाए और उसकी कोई संतान न हो तो उसकी सारी संपत्ति राजकोष में चली जाती थी. यदि पुत्र का निधन हो गया और कोई पुरुष उत्तराधिकारी न हो तो इस संपत्ति पर भी महिला का कोई अधिकार नहीं होता था. अहिल्याबाई ने यह नियम बदला और पति या पुत्र के निधन पर मां या फिर पत्नी का अधिकार सुनिश्चित किया.

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तीर्थ स्थलों और घाटों का कराया निर्माण

अहिल्याबाई इंदौर की शासक थी पर उनकी दृष्टि व्यापक थी. उन्होंने पूरे भारत राष्ट्र में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का अभियान चलाया. देश का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहां उन्होंने मंदिर, प्रवचन कक्ष, अन्नक्षेत्र, विद्यालय या व्यायाम शाला की स्थापना न की हो. सुदूर बद्रीनाथ, हरिद्वार, केदारनाथ में धर्मशालाओं और अन्नसत्रों का निर्माण कराया. कलकत्ता से बनारस तक की सड़क का निर्माण कराया. बनारस में अन्नपूर्णा का मंदिर, गया में विष्णु मन्दिर और घाट उन्हीं के बनवाए हुए हैं. इसके अतिरिक्त सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, द्वारका, रामेश्वर, जगन्नाथ पुरी आदि एक सौ तीस स्थानों पर मंदिर, धर्म शालाएं बनवाई. अहिल्याबाई ने अपने पति खांडेराव और ससुर मल्हारराव की स्मृति में भी इंदौर राज्य की सीमा के भीतर और अन्य राज्यों में विधवाओं, अनाथों, दिव्यांग लोगों के लिए आश्रम बनवाए. अहिल्याबाई ने 13 अगस्त 1795 को अपने जीवन की अंतिम सांस ली.

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