
चीन का फार्मा प्लान
फार्मेसी एक ऐसा सेक्टर है जहां लंबे समय से पूरे ग्लोबल मार्केट में भारत की बादशाहत कायम है. कोरोना काल में भी वैक्सीन बनाने के लिए पूरी दुनिया की नजर भारत पर ही टिकी रही थी. लेकिन अब लग रहा है कि चीन ने यहां भी टकराने की तैयारी कर ली है. उसने एक ऐसा प्लान बनाया है जो दुनिया के फार्मेसी मार्केट को बदल रहा है. हाल में चीन ने अपने DeepSeek AI को पेश करके पूरी दुनिया के आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस मार्केट में भी हलचल पैदा कर दी थी.
भारत अपनी सस्ती जेनेरिक दवाओं के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है. इतना ही नहीं यहां की दवा कंपनियों की कैपेसिटी इतनी ज्यादा है कि बहुत कम लागत पर दवाइयां तैयार कर सकती हैं. चीन ने इसी सेक्टर में अलग तरीके से दखल देने का मन बना लिया है.
बायोटेक रिसर्च से बदल रहा दुनिया
चीन ने हाल के सालों में बायो टेक्नोलॉजी से जुड़े रिसर्च पर काफी इंवेस्ट किया है. इसका फायदा अब उसे ग्लोबल फार्मेसी मार्केट में मिल रहा है. अभी तक बायोटेक्नोलॉजी से जुड़े रिसर्च में पश्चिमी देशों का ही बोलबाला रहा है, जो अब तेजी से चीन में शिफ्ट हो रहा है. चीन में ढेर सारे छोटे-छोटे बायोटेक स्टार्टअप बीते एक दशक में सामने आए हैं, जिन्होंने दुनिया के सामने कई तरह के अनोखे काम सामने रखे हैं.
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इन कंपनियों ने तेजी से नई दवाइयों की खोज की है. इलाज करने के मॉडर्न मॉडल्स को डेवलप किया है. ग्लोबल कंपनियां यहां बड़ा निवेश कर रही हैं. वहीं ऐसी स्टार्टअप में पैसा लगा रही हैं जिनके अंदर अनोखी दवा तैयार करने की क्षमता है.
चीन में ऐसे हुआ बदलाव
चीन ने ये पूरा बदलाव महज 2 दशक में किया है. करीब 20 साल पहले यूरोप और अमेरिका चीन को सस्ती दवाएं बनाने की एक बड़ी फैक्टरी भर मानते थे. लेकिन चीन ने अपने लोगों में इंवेस्ट किया और उन्हें इनोवेशन के लिए प्रेरित किया. आज युवा, टेक सेवी चीनी साइंटिस्ट दवाओं पर रिसर्च कर रहे हैं और नए तरीके विकसित कर रहे हैं.
चीन में 2022-24 के बीच 4,100 दवा कंपनियां तैयार हुईं. पिछले साल हुई लाइसेंसिंग डील से चीन की बायोटेक कंपनियों को करीब 6 अरब डॉलर का अग्रिम पेमेंट मिला है. ईटी की खबर के मुताबिक चीन हर साल 1,000 क्लीनिकल ट्रायल कर रहा है, जबकि भारत में ये संख्या 100 से कम है.
भारत के पीछे होने की वजह
भारत में नई दवाओं के रिसर्च पर फोकस नहीं किया जा रहा है. भारत की सबसे बड़ी ताकत जेनेरिक दवाएं ही उसके इनोवेशन की राह का रोड़ा बन गई हैं. इसके अलावा कैपिटल पर यहां भारी जोखिम उठाना पड़ता है, जबकि पर्याप्त रिसर्च टैलेंट का भी देश में अभाव है.
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