• Tue. Jul 1st, 2025

12 नहीं 4 माह से ही बोलना सीख लेते हैं बच्चे, रिसर्च में दावा

ByCreator

Feb 2, 2025    150823 views     Online Now 500

अक्सर हम देखते हैं कि जब दो लोग बात कर रहे होते हैं को छोटे बच्चे काफी ध्यान से देखता है. वो बातें तो नहीं समझ पाता लेकिन उनकी आवाज उनकी ध्वनि उसके कानों तक जरूर पहुंचती है. इस दौरान वो मुंह से निकलने वाली ध्वनियों को समझ रहा होता है बल्कि वो ये भी सीख रहा होता है कि ये आखिर कैसे ध्वनियां कैसे बनती हैं. धीरे-धीरे बच्चा बड़ा होता है और वो इन चीजों को समझ जाता है फिर बोलना सीख लेता है.

डेवलपमेंटल साइंस’ में प्रकाशितएक अध्यन से पता चलता है कि ध्वनियों को सीखने की ये ललक बच्चे में चार माह की उम्र में ही जागने लगती है. इससे पहले माना जाता रहा है कि बच्चे छह से 12 माह की उम्र के बीच अपनी मूल भाषा सीखने के बाद ही ध्वनियों पर गौर करना शुरू करते हैं, लेकिन इस अध्ययन से यह धारणा दूर हो गई. बच्चे धीरे-धीरे एक एक शब्द को बोलना साखते हैं. जिसकी शुरुआत सरल शब्दों से होती है. हम देखते हैं कि सबसे पहले बच्चे, मां, पापा जैसे शब्द बोलते हैं जो उनके लिए सरल और आसान होते हैं.

एक साल का होने तक ध्वनियों को समझने लगते हैं बच्चे

एक साल का होने तक बच्चे अपनी स्थानीय भाषा की ध्वनियों के प्रति काफी समझ रखने लगते हैं जिसे परसेप्टिक अटैचमेंट कहा जाता है. यानी उन्हें समस्वरता के बारे में पता चलने लगता है. उनका दिमाग ध्वनियों के समूह में से उन ध्वनियों पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश कर रहा होता है जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं. शुरुआती छह माह में बच्चे उन भाषाओं की ध्वनियों को भी पहचान सकते हैं जिन्हें उन्होंने कभी सुना भी नहीं है, जैसे वो हिंदी के कुछ शब्दों को पहचान सकते हैं जो अंग्रेजी बोलने वाले लोगों के लिए भी चुनौतीपूर्ण होता है.

See also  सड़क पर केक काटने की घटना पर हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी, सड़कों पर उपद्रव न हो, यातायात के सुचारू रहने में कोई बाधा न आए, हाइकोर्ट ने पुलिस महानिदेशक को दिए निर्देश

ये भी पढ़ें

छह से 12 माह के बीच बच्चे अपना ध्यान उन ध्वनियों पर देना शुरू कर देते हैं जिन्हें वे अक्सर सुनते हैं. स्वरों के मामले में यह तालमेल करीब छह माह की उम्र में होता है जबकि व्यंजन के मामले में दस माह की उम्र में. बच्चे उन ध्वनियों पर ज्यादा गौर करते हैं जो महत्वपूर्ण हैं, ,जैसे अंग्रेजी में आर और एल के बीच का अंतर, जबकि वो उन ध्वनियों के प्रति संवेदनशीलता खो देते हैं जिन्हें वे नियमित रूप से नहीं सुनते.

अब तक शोधकर्ताओं का मानना ​​था कि बच्चों को अधिक जटिल भाषा सीखने के लिए यह प्रक्रिया जरूरी थी जैसे कि यह पता लगाना कि बिन में बी और डिन में डी अलग-अलग हैं क्योंकि एक को बोलने के लिए होठों का ज्यादा इस्तेमाल होता है और दूसरे को बोलने में जीभ का. अध्ययन से पता चला है कि चार माह की उम्र के बच्चे, इस संकुचन के शुरू होने से बहुत पहले ही यह सीख रहे होते हैं कि ध्वनियां कैसे बनती हैं?.

4 से 6 माह की उम्र के 34 बच्चों के साथ प्रयोग

इसे समझने के लिए एक उदाहरण देते हैं. अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति को सुन रहे हैं जो ऐसी भाषा बोल रहा है जिसे आप नहीं समझते लेकिन आप देख सकते हैं कि आवाज निकालने के लिए उनके होंठ या जीभ कैसे हिलते हैं. चार माह के बच्चे भी ऐसा कर सकते हैं. इसके लिए शोधकर्ताओं ने चार से छह माह की उम्र के 34 बच्चों के साथ एक प्रयोग किया, जिसके तहत दो काल्पनिक लघु-भाषाओं का उपयोग करके एक पैटर्न-मिलान खेल खेला गया.

See also  आज की ताजा खबर LIVE: पीएम मोदी आज भारत मोबिलिटी ग्लोबल एक्सपो 2025 का उद्घाटन करेंगे

इसमें एक भाषा में होंठ के इस्तेमाल से बोले जाने वाले शब्द थे जैसे बी और वी, वहीं दूसरे में जीभ के इस्तेमाल से बोले जाने वाले शब्द जैसे डी और जेड.प्रयोग के दौरान बिवावो या डिजालो जैसे प्रत्येक शब्द को एक कार्टून चित्र के साथ जोड़ा गया- होंठ के इस्तेमाल से बोले जाने वाले शब्दों के लिए एक जेलीफिश और जीभ के इस्तेमाल से बोले जाने वाले शब्दों के लिए एक केकड़ा. एक शब्द की रिकॉर्डिंग उसी समय बजाई गई जब शब्द के साथ जोड़ी गई उसकी तस्वीर दिखाई गई.

कार्टून के जरिए प्रयोग

इस प्रयोग के लिए कार्टून को ही इसीलिए चुना गया क्योंकि बच्चे यह नहीं बता सकते कि वो क्या सोच रहे हैं, लेकिन वो अपने दिमाग में कड़ियां जोड़ सकते हैं. इन चित्रों से यह देखने में मदद मिली कि क्या बच्चे हर लघु भाषा को सही चित्र से जोड़ सकते हैं. जब बच्चों ने ये लघु भाषाएं सीख लीं और चित्रों का संयोजन सीख लिया, तो चीजों को परखा गया. शब्दों को सुनने के बजाय उन्होंने एक व्यक्ति के चेहरे का मूक वीडियो देखा, जिसमें वो उन्हीं लघु-भाषाओं के शब्द बोल रहा था.

कुछ वीडियो में चेहरा उस कार्टून से मेल खाता था जिसके बारे में उन्होंने पहले सीखा जबकि अन्य में नहीं. इसके बाद देखा गया कि बच्चे कितनी देर तक वीडियो देखते हैं- यह एक सामान्य तरीका है जिसका उपयोग शोधकर्ता यह देखने के लिए करते हैं कि उनका ध्यान किस चीज की ओर आकर्षित होता है. बच्चे उन चीजों को अधिक देर तक देखते हैं जो उन्हें आश्चर्यचकित करती हैं या उनमें रुचि पैदा करती हैं, वहीं उन चीजों को कम समय के लिए देखते हैं जो उन्हें देखी दिखाई सी लगती हैं, जिससे यह समझने में मदद मिलती है कि वो जो देखते हैं उसे कैसे पहचानते हैं?. परिणाम साफ है कि बच्चों ने उन वीडियो को काफी समय के लिए देखा, जिनमें चेहरा उनके सीखे गए वीडियो से मेल खाता था.

See also  बांग्लादेश में तख्तापलट... सेना कैसे चलाती है सरकार, किसके हाथों में कमान? जानें सबकुछ | Bangladesh Violence PM sheikh Hasina resigns How army run the government in a country

[ Achchhikhar.in Join Whatsapp Channal –
https://www.whatsapp.com/channel/0029VaB80fC8Pgs8CkpRmN3X

Join Telegram – https://t.me/smartrservices
Join Algo Trading – https://smart-algo.in/login
Join Stock Market Trading – https://onstock.in/login
Join Social marketing campaigns – https://www.startmarket.in/login

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

You missed

0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x
NEWS VIRAL