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कौन सा है वो दरबार जहां पर देवताओं को भी सजा सुनाई जाती है? – Hindi News | Chhattisgarh news history of bhangaram maai mandir where gods get punishment tribals court

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Sep 2, 2024    150853 views     Online Now 251
कौन सा है वो दरबार जहां पर देवताओं को भी सजा सुनाई जाती है?

यहां देवी देवताओं को भी सुनाई जाती है सजा

आप बचपन से ही बड़ों से ऐसा सुनते आए होंगे कि कोई भी गलत काम न करना वर्ना भगवान सजा देंगे. लेकिन क्या आप ऐसी कोई जगह जानते हैं जहां देवताओं को सजा दी जाती हो. मगर ऐसा होता है. एक जगह ऐसी भी है जहां पर अदालत लगती है और देवताओं को सजा दी जाती है. ऐसा एक देव परंपरा की वजह से होता है. दरअसल छत्तीसगढ़ में रहने वाला एक आदिवासी समाज ऐसा भी है जहां पर देवताओं को सजा देने की प्रथा है और इस प्रथा को वहां स्थित भंगाराम माई मंदिर में हर साल निभाया जाता है. आइये जानते हैं इसकी पूरी कहानी क्या है और कौन सी है वो जगह जहां पर गलती पर लोगों को श्राप देने वाले देवता भी दोषी करार दिए जाते हैं.

कब होती है ये परंपरा?

इस प्रथा को भादो के महीने में हर साल निभाया जाता है. इस दौरान सबका सालभर का लेखा-जोखा मांगा जाता है. जिसने सालभर जो-जो अच्छे कार्य किए उसकी सराहना की जाती है और जिसने बुरे कार्य किए उसे सजा सुनाई जाती है. ऐसा देवताओं के साथ होता है. देवताओं के अच्छे-बुरे कर्मों का पूरा लेखा-जोखा इस दरबार में पेश होता है और उस हिसाब से सजा तय की जाती है. ये प्रथा सदियों से चली आ रही है और एक विशेष ट्राइबल कॉम्युनिटी इस परंपरा का वर्षों से पालन करती आ रही है. इस बार ये परंपरा बीते शनिवार को हुई.

Devi Devta

क्यों किया जाता है ऐसा?

दरअसल ये एक पुरानी मान्यता की वजह से होता है. अगर देवता आदिवासियों की समस्याओं का समाधान नहीं कर पाते हैं और उनकी मदद नहीं कर पाते हैं तो ऐसे में उन्हें भंगाराम माई के मंदिर में लाया जाता है और घटघरे में खड़ा किया जाता है. इसके बाद उन्हें सजा भी दी जाती है और गंभीरता से सुनवाई की जाती है. दोनों पक्ष इस दौरान साथ में मौजूद होते हैं और पक्ष-विपक्ष की बातें भी इस दौरान सुनी जाती हैं. इस दौरान दोषी पाए जाने पर देवी-देवताओं को तुरंत सजा सुनाई जाती है.

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क्या सजा मिलती है?

अगर कोई देवी-देवता इस दौरान दोषी पाया गया तो उसे सजा के तौर पर पास के नाले में छोड़ दिया जाता है. इसे कारावास के तौर पर संबोधित किया जाता है. इस देव प्रथा को आज भी उड़ीसा, सिहावा और बस्तर समाद के लोग निभाते आ रहे हैं.

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