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छत्तीसगढ़ के किसान के बेटे ने आईआईटी गांधीनगर में लहराया परचम, हासिल किया सिल्वर मेडल, कहा- गरीबी आडे़ नहीं आती अगर मन में हो सच्ची लगन

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Jun 30, 2024    150848 views     Online Now 344

अरविन्द मिश्रा, बलौदाबाजार। जिले के ग्राम जारा के किसान शालिक धुरंधर के पुत्र आर. यीशु धुरंधर ने आईआईटी गांधीनगर गुजरात में अपना परचम लहराते हुए प्रावीण्य सूची में सिल्वर मेडल प्राप्त किया. यीशु की इस सफलता ने उनके परिवार के साथ पूरे गांव का नाम रोशन किया. उनकी इस सफलता ने बता दिया की निर्धनता आड़े नहीं आती अगर मन में सच्ची लगन और जज्बा हो तो.
आज आर. यीशु की सफलता उन गरीब तबके के लिए एक प्रेरणा है, जो कहते हैं कि गरीबी के कारण पढ़ नहीं पाया. गरीबी को धता बताते हुए बता दिया कि गरीबी अभिशाप नहीं है वरन दृढ़ निश्चय और लक्ष्य निर्धारित हो और कठिन संघर्ष करने का जज्बा हो तो सफलता कदम चूमती है.

अमेरिकी कंपनी को कहा न, देश के लिए कुछ करने की चाह

आर. यीशु धुरंधर के पिता शालिक धुरंधर ग्राम जारा के गरीब किसान है तथा मां रूखमणी धुरंधर गृहणी है.पिता शालिक धुरंधर ने बताया कि यीशु धुरंधर प्रारंभ से ही पढाई में मेधावी रहा है तथा उसकी आरंभिक शिक्षा ग्राम संडी के प्रगति शाला में हुई. इसके बाद उसका चयन जवाहर नवोदय विदृालय माना रायपुर में हो गया, जहां कक्षा छठवीं से बारहवीं तक की पढाई किया और फिर जेईई में सलेक्ट होकर गांधीनगर गुजरात में कम्प्यूटर साइंस एवं इलेक्ट्रॉनिक में पढाई की है. उसका रिजल्ट आया है और प्रावीण्य सूची में स्थान बनाया है तथा उसे सिल्वर मेडल मिला है. उसका सलेक्शन अमेरिका की कंपनी में भी हुआ पर वह देश में ही रहकर काम करना चाहता है. यीशु का कैंपस सलेक्शन बैंगलोर में डेटा सांइसटिस्ट के रूप में हुआ है.

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मन में निश्चय हो तो खुल जाते हैं रास्ते

आर. यीशु धुरंधर ने फोन पर बताया कि उसकी सफलता पर उसके माता पिता एवं पूर्वजों का आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन है. जहां माता पिता ने गरीबी को आडे़ नहीं आने दिया और लगातार उसे प्रोत्साहित करते रहे, जिसका परिणाम आज सबके सामने है. मैं सभी छात्रों से यही कहना चाहूंगा कि मन में ठान लिया कि हमें कुछ करके दिखाना है तो गरीबी आडे़ नहीं आती और रास्ते खुलते जाते हैं और सहायता भी मिलती है और यह सब मेरे साथ हुआ है. मुझे बचपन में अंग्रेजी नहीं आती थी तो चंद्रवंशी सर ने मदद की. जब आईआईटी में सलेक्शन हुआ तो कोरोना काल था ऐसे में गांधीनगर के सर ने मदद की और मैंने भी ठाना कि कुछ बनकर दिखाना है और आज सिल्वर मेडल मिला है. अभी और आगे जाना है और अपने देश के लिए कुछ करके दिखाना है. आज यीशु धुरंधर की सफलता से पूरा गांव व परिवार सहित मित्रगण गौरवान्वित है. फिलहाल वह बैंगलोर मे है जहाँ उसका कैंपस सलेक्शन हुआ है.

वहीं आर. यीशु धुरंधर के बड़े भाई एस. अंशु धुरंधर को डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने का शौक है और वह छत्तीसगढ़ के पहलवान के रूप में पहचाने जाने वाले ग्राम बुड़गहन के किसान चिंता राम टिकरिहा पर डाक्यूमेंट्री फिल्म बना रहे हैं.

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