
चमोली हादसा
चार साल में दूसरी बार चमोली में ग्लेशियर टूट कर गिरा है और उसने बहुत अधिक जान-माल का नुकसान कर दिया. वर्ष 2021 की 7 फरवरी को भी चमोली में ही एक ग्लेशियर धौली गंगा में गिरा था और उसने भारी तबाही ला दी थी. तब ग्लेशियर का मलबा विष्णुगाड हाइडिल परियोजना की टनल में घुस गया था. जो मजदूर वहां फंसे थे, उन्हें कोई भी आपदा प्रबंधन टीम की टीम निकाल नहीं पाई थी. उस टनल में फंसे मजदूर वहीं पर दफन हो गए थे. विष्णुगाड का पूरा पावर प्लांट नष्ट हो गया था. जबकि आईटीबीपी (ITBP), NDRF और उत्तराखंड की आपदा प्रबंधन टीम SDRF के लोग हाथ बांधे खड़े रहे थे. इस बार शुक्रवार 28 फरवरी को नंदा देवी चोटी का ग्लेशियर टूटा और इससे ऋषि गंगा में बाढ़ आ गई. ऋषि गंगा में पानी बढ़ने से धौली गंगा में भी पानी के साथ गाद आने लगी और इसने तबाही ला दी.
हादसा सिर्फ प्राकृतिक तो नहीं
बचाव कार्य के बाद भी 22 मजदूर अभी फंसे हुए हैं. 2021 की फरवरी में जब हादसा हुआ था तब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत लगातार कह रहे थे कि इसे मैन-मेड हादसा न बता जाए. लगभग यही बात अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कह रहे हैं. इस बार तो न सिर्फ ग्लेशियर टूट कर गिरा बल्कि बर्फ का तूफान भी चल रहा है. हिम स्खलन (Avalanche) के कारण जोशीमठ-बद्रीनाथ-माना हाई वे बंद है. बचाव और राहत कार्यों में अड़चनें आ रही हैं. हालांकि 33 मजदूर बचा लिए गए हैं. बाकी का पता नहीं चल सका है. लेकिन इन सबके बाद भी यह नहीं सोचा जाता कि आखिर ये ग्लेशियर टूट कर गिर क्यों रहे हैं? हिमालय की बर्फीली चोटियों में तापमान बढ़ रहा है क्या! अक्सर फरवरी के महीने में इस तरह के Avalanche आते ही रहते हैं.
चार वर्ष पूर्व का हादसा
इस बार मैदानों में 20 जनवरी के बाद ठंड विदा हो ली थी. जबकि इस वर्ष भयंकर शीत का रोना रोया जा रहा था. किंतु मौसम विज्ञान विभाग कोई भी सही आंकड़ा नहीं दे पा रहा था. फरवरी की शुरुआत से स्वेटर रख दिए गए, परंतु फरवरी के आखिरी हफ्ते में मैदानी इलाकों में बूंदा-बांदी शुरू हुई और ठंड फिर से लौटी. मौसम में यह परिवर्तन कोई शुभ नहीं है. चार वर्ष पहले भी यही हुआ था. उस समय जोशीमठ से थोड़ा ऊपर तपोवन हाइडिल परियोजना और उसके पास बना डैम तबाह हो गया था. तब सात फरवरी की सुबह एक धमाका हुआ और 20 फीट ऊंचा ऐसा सैलाब उमड़ा जो जोशीमठ से 15 किमी ऊपर के गांवों को लील गया था. उसने पुलों, सड़कों और पावर प्लांट्स को नष्ट कर डाला था. तब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्रम रावत इसे प्राकृतिक हादसा बता कर शांत हो गए.
जैव विविधता को नष्ट करना एक वजह
तो क्या इस वर्ष 28 फरवरी के इस हिम स्खलन को भी एक प्राकृतिक हादसा मान लिया जाए! अगर मान भी लिया जाए, तो यह भी समझ लेना चाहिए कि कोई भी प्राकृतिक हादसा भी अपने आप नहीं आता. मनुष्यों द्वारा पहाड़ों, नदियों और वन्य जीवों से खिलवाड़ इस हादसे का कारण बनते हैं. पूरी सृष्टि संतुलन के बूते टिकी है. इनमें से किसी को भी नष्ट करना आपदा को न्योता देना है. अन्यथा सोचिये, लाखों वर्ष से ये पहाड़ ऐसे ही खड़े हैं और बर्फीली चोटियां भी. बारिश, तूफान और क्लाउड बर्स्ट होते ही रहते हैं किंतु इनका कुछ नहीं बिगड़ा. पहाड़ों और उसकी जैव विविधता से कोई छेड़छाड़ नहीं हुई. परंतु जब बाज़ार के लिए इनका दोहन शुरू हुआ तो सब भरभराने लगे. बाज़ार को विकसित करने के लिए पहाड़ काट कर सड़कें बनाईं और वहां तक सड़कें पहुंचीं जहां जाना निषिद्ध था.
फोर लेन बनाने से कमजोर हुए पहाड़
नतीजा क्या हुआ! हर दूसरे-तीसरे वर्ष कोई न कोई प्राकृतिक आपदा आ ही जाती है. कभी 2013 का केदार हादसा तो कभी 2021 का विष्णुगाड हादसा तो अब माना गांव का हादसा. कई लोग मरते हैं. सड़कें अवरुद्ध होती हैं और बहुत कुछ नष्ट हो जाता है. उत्तराखंड में पिछले 2016 के बाद से इस तेज़ी से उत्खनन हुआ है, कि हिमालय के कच्चे पहाड़ लगभग रोज़ ही दरकते हैं. ख़ासकर गढ़वाल रीज़न में चार धाम परियोजना के तहत 900 किमी तक 15 मीटर चौड़ी सड़क बनाने का लक्ष्य है. ये सड़कें राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण बना रहा है. यह सड़क कहीं फ़ोर लेन तो कहीं टू लेन की बन रही है. पहाड़ों को खोदा जा रहा है. ऊपर से पत्थर सड़क पर न गिरें इसलिए 15-20 फ़िट ऊँची पत्थरों की दीवाल बनाई जा रही है और इस ऊँचाई के ऊपर लोहे के तारों का जाल.
हरियाली से भरे बाजार को सड़क लील गई
एक नजर में यह परियोजना बड़ी अच्छी लगती है. पहाड़ों की यात्रा सुगम और सरल हो जाएगी तथा पत्थरों के गिरने का ख़तरा भी कम होगा. ऋषिकेश से चंबा तक की सड़क तो काफ़ी पहले बन गई थी. और अब तेजी से आगे की तरफ़ बन रही है. चिन्याली सोड से उत्तरकाशी की सड़क भी बन चुकी है. पता ही नहीं चलता कि शहर कहां गए! हवा की तरह वे सारे शहर कस्बे हम पार कर जाते हैं जो अपनी किसी न किसी उपज के लिए प्रसिद्ध रहे हैं. चंबा के पहले नागनी से खीरे और टमाटर अब यात्री नहीं खरीदते. उस घाटी की सारी हरियाली नष्ट कर दी गई है तथा पानी बह जाने के रास्ते बंद हो चुके हैं, उससे ये चमाचम सड़कें कितने दिन चल पाएंगी, यह कहना बहुत कठिन है. यात्री तो आया और चला गया किंतु वहां के गांवों और कस्बों का क्या हाल होगा, इसकी चिंता सरकारों को नहीं होती.
पुराने हादसों से सबक नहीं लिया गया
अभी माना के पास जो हादसा हुआ, तो वहां भी सड़क निर्माण का काम चल रहा था. बद्रीनाथ धाम मार्ग पर ये मज़दूर काम कर रहे थे. तभी अचानक ग्लेशियर टूटने से 57 मजदूर दब गए. सीमा सड़क संगठन (BRO) भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के जवानों ने 33 लोगों को निकाल तो लिया लेकिन अभी 25 के दबे होने की आशंका है. जोशीमठ में सेना का अस्पताल बनाया गया है. वहां इन्हें हेलीकॉप्टर की मदद से लाया जा रहा है. किंतु हिम स्खलन अभी पूरी तरह बंद नहीं हुआ है. ऐसे में प्रश्न उठता है, कब तक इस तरह के निर्माण हिमालय के इन पहाड़ों पर चलते रहेंगे. सात फरवरी 2021 के हादसे से भी कोई सबक नहीं लिया गया. अगर तब ही सोच लिया जाता कि हिमालय के पहाड़ अधिक खुदाई बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे तो शायद 28 फरवरी 2025 के हादसे से बचा जा सकता था.
क्यों कुपित होती है प्रकृति
किसी भी हादसे को प्राकृतिक कह देना तो भोलेपन की निशानी है. अगर इसे प्रकृति का कोप भी मानें तो यह तय है कि प्रकृति किसी वजह से कुपित हुई होगी. यह वजह मनुष्य निर्मित ही रही होगी, वर्ना जाड़े में ग्लेशियर नहीं गिरते. और वह भी लाखों टन वज़नी ग्लेशियर. हालात ये हैं, कि यदि आप ऋषिकेश से जोशीमठ की तरफ जाने वाली रोड पर बढ़ें तो देवप्रयाग तक के पूरे रास्ते पर अभी भी तोड़-फोड़ जारी है. हर मोड़ पर ज़ेसीबी लगी हैं, जो पहाड़ खोद रही हैं. जगह-जगह ऊपर से पत्थर गिरते रहते हैं. अब तो देव प्रयाग से जोशीमठ तक चार धाम परियोजना की सड़क बन गई है. लेकिन हर कुछ दूरी पर गिरते पत्थर एक भय पैदा करते हैं कि पता नहीं कब क्या हो जाए!
प्रकृति का रौद्र रूप
सभी जगह और सभी देशों में प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखा रही है. मौसम विज्ञान विभाग ने 27 फरवरी को बताया था कि इस बार की फरवरी जैसी गर्मी पिछले 74 वर्षों में नहीं पड़ी. और अगले ही दिन Avalanche शुरू हो गया. अमेरिका में इस बार न्यूयॉर्क जैसे शहरों में 30 सेंटीमीटर बर्फ गिरी और पारा माइनस 20 तक गया. यही हाल कनाडा के टोरंटो में रहा. दो दिन के भीतर 100 सेंटीमीटर बर्फ तथा पारा माइनस 30 तक जा पहुंचा. अगर प्रकृति से छेड़छाड़ न की जाए तो प्रकृति भी रुष्ट नहीं होती.
[ Achchhikhar.in Join Whatsapp Channal –
https://www.whatsapp.com/channel/0029VaB80fC8Pgs8CkpRmN3X
Join Telegram – https://t.me/smartrservices
Join Algo Trading – https://smart-algo.in/login
Join Stock Market Trading – https://onstock.in/login
Join Social marketing campaigns – https://www.startmarket.in/login