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कनाडा के PM जस्टिन ट्रुडो के इस्तीफे से भारत को फायदा होगा या नुकसान?

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Jan 7, 2025    1508376 views     Online Now 386
कनाडा के PM जस्टिन ट्रुडो के इस्तीफे से भारत को फायदा होगा या नुकसान?

पीएम मोदी और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो.

पिछले करीब डेढ़ साल से कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था और आए दिन भारत के विरोध में बयानबाजी कर रहे थे. खालिस्तानी चरमपंथियों को लेकर नर्म रुख अपना रहे कनाडा के पीएम को आखिरकार अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. लिब्रल पार्टी को फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाले ट्रूडो के रुख से उन्हीं की पार्टी के नेता उनके दुश्मन बनते जा रहे थे.

ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि ट्रूडो के इस्तीफे से भारत को फायदा होगा या नुकसान? आइए जानने की कोशिश करते हैं.

ट्रूडो से नाराज थे स्थानीय लोग

दरअसल, जस्टिन ट्रूडो कनाडा में अल्पसंख्यकों के बीच पैठ बनाने के लिए खालिस्तान के समर्थन में उतर आए थे, जबकि कनाडा के ज्यादातर लोग ऐसे अलगावादियों का समर्थन नहीं करते. ट्रूडो के इसी रुख के कारण लोग उनसे नाराज हो गए. कनाडा के स्थानीय लोग यह भी नहीं चाहते थे कि भारत के साथ उनके देश के संबंध खराब हों. कनाडा में कट्टरपंथियों को समर्थन देने के लिए भी लोग तैयार नहीं थे. फिर देश में इसी साल अक्तूबर-नवंबर में आम चुनाव होने हैं. ऐसे में लिब्रल पार्टी भी नहीं चाहती थी कि भारत के साथ संबंध बिगड़ें और स्थानीय लोगों की नाराजगी झेलनी पड़े.

भारत से अच्छे संबंध कनाडा के लिए फायदेमंद

वैसे भी कोरोना काल के बाद से ही कनाडा की अर्थव्यवस्था बेहद खराब स्थिति में पहुंच चुकी है. देश में युवाओं के लिए नौकरियों और रोजगार की खासी कमी हो गई है. भारत से विवाद मोल लेने के बाद दोनों देशों के बीच का व्यापार भी प्रभावित हुआ है. वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद डोनाल्ड ट्रंप कनाडा से आए माल पर नए टैक्स लगाने की भी धमकी देते रहे हैं. इसलिए कनाडा भारत के साथ अपने संबंध सुधारना चाहेगा, जिससे उसे बाजार मिल सके और भारत को यह फायदा होगा कि इसे माल मिलता रहेगा.

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कम हो सकती हैं भारतीय छात्रों की मुश्किलें

बीबीसी ने अपनी एक रिपोर्ट में नई दिल्ली के ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के अध्ययन और विदेश नीति विभाग के उपाध्यक्ष प्रोफेसर हर्ष वी पंत के हवाले से कहा है कि ट्रूडो ने दरअसल, पूरे मुद्दे को निजी बना लिया था. इस पर वह संजीदगी नहीं दिखा रहे थे. इससे भारत ही नहीं, कनाडा को भी नुकसान हो रहा था. वैसे तो ट्रूडो को छात्रों का हितैषी माना जाता रहा है पर उनके कार्यकाल में स्टूडेंट वीजा से जुड़ा कनाडा ने एक ऐसा फैसला ले लिया, जिससे भारतीय छात्रों की मुश्किलें बढ़ रही थीं. इसके कारण दोनों देशों में तनाव और भी बढ़ गया था. ट्रूडो के जाने के बाद छात्रों की मुश्किलों में कमी आने की उम्मीद है.

वॉशिंगटन डीसी के विल्सन सेंटर थिंक टैंक में दक्षिण एशिया इंस्टीट्यूट के निदेशक माइकल कुगेलमैन ने ट्रूडो के इस्तीफे को दोनों देशों के हित में बताया है. उन्होंने एक्स पर लिखा है कि ट्रूडो के इस्तीफा देने से भारत और कनाडा के बीच बिगड़ते संबंधों को स्थिर करने का मौका मिल सकता है. इधर के सालों में कनाडा इकलौता पश्चिमी देश साबित हुआ है, जिसके साथ भारत के संबंध खराब हुए हैं. ऐसे में उनके इस्तीफे से स्थिति में सुधार आ सकता है.

ट्रूडो की कनाडा फर्स्ट नीति बनी मुसीबत

कनाडा के पीएम ट्रूडो ने अपने देश में साल 2025 से विदेशी अस्थायी कर्मचारियों की भर्ती के नियम भी सख्त करने की घोषणा की थी. कनाडा फर्स्ट नाम की इस नीति के बारे में ट्रूडो ने सोशल मीडिया पर जानकारी दी थी. उन्होंने बताया था कि कनाडा की सभी कंपनियों को साल 2025 से नौकरियों में कनाडा के नागरिकों को प्राथमिकता देनी होगी. साथ ही कंपनियों को विदेशी कर्मचारियों को अस्थायी नौकरी पर रखने से पहले यह जानकारी देनी होगी कि उन्हें योग्य कनाडाई नागरिक नहीं मिला.

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ट्रूडो के इस फैसले के बाद कनाडा में प्रवासियों और युवाओं के बीच बेरोजगारी और बढ़ने की आशंका जताई गई थी. खासकर, सबसे ज्यादा भारतीय छात्र प्रभावित होते, जो कनाडा के शॉपिंग मॉल, रेस्टोरेंड और फूड स्टोर में काम कर रहे हैं. वैसे भी कनाडा में साल 2023 में भारत से गए अस्थायी कर्मियों की संख्या सबसे ज्यादा बताई गई थी. वहां कुल 1.83 लाख अस्थायी कर्मचारियों में से अकेले भारत के 27 हजार कर्मी थे. जाहिर है ट्रूडो की नई नीति से यही लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते. ऐसे में उम्मीद है कि इस साल बनने वाली नई सरकार इस नीति में बदलाव कर खासकर भारतीय छात्रों को काम करने में राहत दे.

खालिस्तानी चरमपंथियों पर कस सकती नकेल

कनाडा में ट्रूडो के कार्यकाल में खालिस्तान का समर्थन करने वाले चरमपंथियों को खुली छूट मिली हुई थी. इसके कारण वे भारत तक को गीदड़ भभकी देने लगे थे. कनाडा में बैठे खालिस्तानी समर्थक भारत को धमकाने लगे थे. इससे भारत और कनाडा के बीच हालात और खराब हो रहे थे. कनाडा में चुनाव के बाद जो भी प्रधानमंत्री बने, भले ही वह इन कट्टरपंथियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करे. फिर भी उन पर इतनी नकेल जरूर कसी जाएगी कि वे नियंत्रण से बाहर न चले जाएं. वही, जस्टिन ट्रूडो इन खालिस्तानी चरमपंथियों की गोद में खेलते नजर आ रहे थे. इसलिए इन्हें नियंत्रित करके नई सरकार की कोशिश होगी कि कनाडा की जनता के मन में पैदा हुई नाराजगी को दूर कर लिब्रल पार्टी के प्रति उनके मन भरोसा पैदा करे.

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