
सरकारी क्षेत्रों के 25 करोड़ से अधिक कर्मचारी राष्ट्रव्यापी भारत बंद में शमिल हैं.
क्या कोई भी इंसान या संगठन भारत बंद का ऐलान कर सकता है. देशव्यापी बंदी को लेकर संविधान में उनको कितने अधिकार दिए हैं. यह सवाल चर्चा में है. इसकी वजह है भारत बंद. बैंकिंग, खनन, परिवहन और निर्मात समेत कई क्षेत्रों के 25 करोड़ से अधिक कर्मचारी आज (09 जुलाई) हड़ताल पर हैं. कर्मचारियों ने पूरे देश में भारत बंद का आह्वान किया है. इसका सीधा असर आम इंसान और उनको मिलने वाली सेवाओं पर पड़ेगा. भारत बंद में एटक (ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस), एचएमएस, सीटू, इंटक, इनुटुक, टीयूसीसी, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ और यूटीयूसी शामिल होंगे. कृषि मजदूर संघ और संयुक्त किसान मोर्चा ने भी इस हड़ताल का समर्थन किया है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या संविधान भारत बंद करने वालों को ऐसा करने का अधिकार देता है. भारत बंद के दौरान कोई हिंसा होती है तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? हिंसा के मामलों में क्या-क्या कार्रवाई की जा सकती है? एक्सपर्ट से जानिए इन सवालों के जवाब.
क्या कोई भी भारत बंद का ऐलान कर सकता है?
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट आशीष पांडे कहते हैं, भारत एक लोकतांत्रिक देश है और सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है. भारतीय संविधान में मिलने वाले अधिकार इस पर मुहर लगाते हैं. संविधान का अनुच्छेद (19) (ए) किसी भी भारतीय को भाषण देने के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है.
सेक्शन-बी कहता है, बिना किसी हथियारों के भारतीय शांतिपूर्ण तरीके से कहीं भी इकट्ठा हो सकते हैं. यानी देश में भारत बंद का ऐलान भी कर सकते हैं. शांतिपूर्ण तरीके से किए गए भारत बंद पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं होती है.
कब होती है प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई?
एडवोकेट आशीष पांडे कहते हैं, शांतिपूर्ण तरीके से किए गए भारत बंद पर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं होती, लेकिन जब भारत बंद या इस दौरान होने वाला प्रदर्शन हिंसक रूप लेता है, प्रदर्शनकारी उग्र होकर दूसरे की प्रॉपर्टी या सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने लगते हैं. लोगों को डराते या धमकाते हैं. कुछ भी ऐसा करते हैं जिससे दूसरे नागरिकों को नुकसान पहुंचता है या फिर उनके अधिकारों का हनन होता है या फिर जबरदस्ती दुकानों को बंद कराते हैं तो कार्रवाई की जा सकती है.
प्रदर्शन हिंसक हुआ तो क्या-क्या कार्रवाई होगी?
भारतीय संविधान शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अनुमति देता है, लेकिन उसमें हथियारों के साथ शामिल नहीं हो सकते. कार्रवाई तब की जाती है जब प्रदर्शन हिंसक रूप ले लेते हैं. कार्रवाई कैसी होगी, यह इस बात पर निर्भर है कि हिंसा किस तरह की हुई है? क्या-क्या नुकसान किया गया है?
मान लीजिए हिंसा करने वाले प्रदर्शनकारी किसी की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं तो प्रिवेंशन ऑफ डैमेज ऑफ पब्लिक प्रॉपर्टी एक्ट 1984 के तहत कार्रवाई की जा सकती है. कानून कहता है कि जिस किसी भी ने भी सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया है, उसे पांच साल की कैद के साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
समय के साथ प्रदर्शन में हिंसा के बढ़ते मामलों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को और बेहतर बनाने के लिए स्वत: संज्ञान लिया और 2007 में इसके लिए कमेटी बनाई. पहली थी, जस्टिस थॉमस कमेटी और दूसरी थी नरीमन कमेटी. हालांकि यह कदम बहुत असरदार नहीं साबित हुआ. प्रदर्शन और दंगों की संख्या बढ़ने पर सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल बनाने की बात कही, यह पहल भी अपने अंजाम तक नहीं पहुंची.
इसको लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने कानून बनाया. यह कानून तब बना जब राज्य में CAA के लिए प्रदर्शनों ने जोर पकड़ा था. कानून का नाम है, उत्तर प्रदेश कम्पनसेशन फॉर डैमेज टू पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी एक्ट 2020. यह कानून कहता है, अगर प्रदर्शनकारियों के कारण किसी की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचता है तो सम्पत्ति की भरपाई भी उन्हीं दंगाइयों से की जाएगी. देश के लोगों के पास शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अधिकार है, लेकिन हिंसा करने और तोड़फोड़ का नहीं.
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