अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप
कुछ घंटे बाद डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने जा रहे हैं. हालांकि ट्रंप का यह दूसरा कार्यकाल होगा लेकिन इस बार उनका ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडा ना केवल अमेरिकी नीतियों में बड़ा बदलाव लाएगा बल्कि वैश्विक राजनीति, कूटनीति, व्यापार और पर्यावरण जैसे मुद्दों पर भी गहरा असर डालेगा. उनके कार्यकाल के शुरूआती संकेत से ही साफ है कि अमेरिका और बाकी दुनिया को एक नई रणनीतिक दिशा में आगे बढ़ना होगा.
अमेरिका की सत्ता में ट्रंप की वापसी ऐसे दौर में हो रही है जब दुनिया के कई हिस्सों में उथल पुथल मची हुई है. मिडिल ईस्ट के कई देश आपस में उलझे हुए हैं तो करीब तीन साल से यूक्रेन और रूस एक दूसरे पर गोले दाग रहे हैं. ऐसे में ट्रंप का हर एक फैसला अमेरिका की विदेश नीति को नए सिरे से परिभाषित करेगा. शपथ ग्रहण के ठीक बाद लिए जाने वाले उनके फैसलों में इस बात की झलक मिल जाएगी कि कौन उनका दोस्त है और कौन दुश्मन है.
ट्रंप शासनकाल में प्रमुख बदलाव और उसके प्रभाव
1. अमेरिकी घरेलू नीति और अर्थव्यवस्था
ट्रंप प्रशासन घरेलू उद्योगों और नौकरियों को प्राथमिकता देगा. यह नीति अमेरिका को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की दिशा में हो सकती है लेकिन इसका वैश्विक व्यापार पर गंभीर असर होगा. अपने ‘मेड़ इन अमेरिका’ नीति के तहत ट्रंप विदेशी आयातों पर विभिन्न तरह के शुल्क थोप सकते हैं और अमेरिकी कंपनियों को घरेलू उत्पादन पर ज़ोर देने के लिए दवाब दे सकते हैं.
अमेरिकी कंपनियों और नागरिकों को राहत देते हुए बड़े पैमाने पर कर कटौती और बुनियादी ढांचे में निवेश किया जाएगा. इससे विदेशी निर्यात और बाहर से गये प्रोफेशनल्स के लिए चुनौती हो सकती है. ट्रंप की इमिग्रेशन पॉलिसी विशेषकर एच1बी वीजा नियमों से प्रवासियों और विशेष रूप से भारतीय आईटी पेशेवर प्रभावित होंगे.
2. वैश्विक राजनीति पर ट्रंप का प्रभाव
ट्रंप की विदेश नीति अमेरिकी हितों को प्राथमिकता देगी जिससे अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं.
रूस और चीन के साथ संबंध-
रूस के साथ ट्रंप शासनकाल में संबंध बेहतर होने की उम्मीद है. रूस-यूक्रेन युद्ध में ट्रंप ने युद्ध बंद करने का पहले ही ऐलान किया है. रूसी राष्ट्रपति पुतिन से जल्द ही मुलाकात की भी तैयारी चल रही है. अगले कुछ समय तक अमेरिका और रूस के बीच संबंध को सुधारने पर ही ज़ोर दिया जाने वाला है. ट्रंप के इन कदमों से अमेरिका और नाटो सदस्य देशों में मतभेद खुलकर सामने आएंगे.
चीन के साथ संबंध सुधारने के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने निजी तौर पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अपने शपथ ग्रहण का न्योता भेजा था. ट्रंप चीन के साथ नई शुरुआत करना चाहते है. चीन ने भले ही उपराष्ट्रपति को शपथ ग्रहण में शामिल होने भेजा है लेकिन चीन के साथ यह हनीमून का समय लंबा नहीं चल सकेगा. चीन के साथ व्यापार और ताइवान के मुद्दे पर ट्रंप का रुख सख्त होता जाएगा और इससे एशिया में राजनयिक स्थिरता पर संकट बना रहेगा.
यूरोप और नाटो
ट्रंप के शासनकाल में सबसे अधिक बदलाव अमेरिका का यूरोप और नाटो के साथ दिखाई देगा. ट्रंप अपने नाटो सहयोगियों पर अधिक आर्थिक बोझ उठाने का दबाव बनाएंगे जिससे यूरोप और अमेरिका के संबंध कमजोर हो सकते हैं. जर्मनी, फ्रांस जैसे बड़े यूरोपीय देश अमेरिकी नीतियों से असहज हो सकते है.
मध्य-पूर्व नीति
ट्रंप के शपथ ग्रहण से पहले ही इजरायल-हमास डील ने ट्रंप के आने के बाद होने वाले बदलाव की झलक दिखा दी है. डोनाल्ड ट्रंप ईरान के साथ सख्ती से पेश आ सकते हैं और आने वाले दिनों में ट्रंप खुलकर इजरायल का समर्थन करते दिखाई देगें. इससे मध्य-पूर्व में नया विवाद जन्म ले सकता है.
भारत- अमेरिका संबंध
भारत और अमेरिका के संबंधों पर ट्रंप प्रशासन का सकारात्मक प्रभाव दिखाई देगा लेकिन कुछ चुनौतियां भी बनी रहेगी. सकारात्मक पहल के तहत भारत और अमेरिका में रक्षा, तकनीक, आतंकवाद के मुद्दों पर पारस्परिक सहयोग देखने को मिलेगा. चीन की बढ़ती ताकत के खिलाफ अमेरिका, भारत को एक मजबूत साझेदार के रूप में देख सकता है. पाकिस्तान के आतंकवादी नेटवर्क के खिलाफ भी ट्रंप का रुख भारत के पक्ष में रहेगा.
ट्रंप शासनकाल में भारत की चुनौतियां एच1बी वीज़ा नियमों को लेकर देखने को मिल सकती है. अमेरिका में भारतीय पेशेवरों के लिए नौकरी बनाये रखना या नई नौकरी पाना मुश्किल हो सकता है. ट्रंप की अमेरिकी उद्योग जगत को दी जाने वाली संरक्षणवादी नीतियों का असर भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर भी पड़ सकता है.
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन
ट्रंप जलवायु परिवर्तन की बातों को हमेशा से नकारते आए हैं. हालांकि पिछले कुछ दिनों में अमेरिका में मौसम की मार साफ दिखाई दे रही है. अत्यधिक ठंड की वजह से डोनाल्ड ट्रंप को अपने शपथ ग्रहण समारोह को भी कैपिटल बिल्डिंग के भीतर करने करवाने के लिए मजबूर होना पड़ा है जबकि महीनों से इसकी तैयारियां चल रही थी. कैलिफोर्निया इलाके में लगी भीषण आग और उससे हुई तबाही ने जलवायु परिवर्तन का मुद्दा ट्रंप के सामने लाकर खड़ा कर दिया है लेकिन ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते से असहमति जताई है. अमेरिका के पीछे हटने से वैश्विक जलवायु परिवर्तित प्रयासों को बड़ा झटका लगेगा.
वैश्विक संस्थानों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर ट्रंप का प्रभाव
राष्ट्रपति ट्रंप का रुख संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के कामकाज को लेकर काफी आलोचनात्मक है. इसका असर वैश्विक सहयोग पर पड़ेगा. अमेरिका इन संस्थानों में अपने योगदान को कर सकता है जिसका व्यापक असर होगा. कुल मिलाकर जहां भारत के लिए यह अवसरों और चुनौतियों का मिश्रण है वहीं वैश्विक स्तर ट्रंप की नीतियों से उथल-पुथल मच सकती है.
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