
मान्यता है कि सुदामा-कृष्ण की मुलाकात अक्षय तृतीया तिथि को हुई और उनकी दुनिया बदल गई.
वैशाख का महीना, शुक्ल पक्ष, तृतीया इस बार 30 अप्रैल यानी गुरुवार को है. इस खास दिन को मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है. ये दोनों ही धन, वैभव के देवी-देवता हैं. आदि काल से इसी दिन हिन्दू रीति-रिवाजों के हिमायती अक्षय तृतीया को पूरे भक्ति भाव से मनाते आ रहे हैं. अक्षय का मतलब है जिसका क्षय न हो यानी नष्ट न हो. आज के युग में लोग अपने सामर्थ्य के अनुसार सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात तो खरीदते ही हैं, गाड़ियां खरीदने का प्रचलन भी हाल के वर्षों में बढ़ा है. बाजार इसके लिए खुद को तैयार करते देखे जाते हैं. विज्ञापनों की धूम देखी जाती है. अनेक शुभ काम भी इस तिथि पर बिना पूछे किये जाने की परंपरा है. क्योंकि इस तिथि का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है. इसका रिश्ता आध्यात्मिक भी है, सांस्कृतिक भी है. यह बातें सामान्य तौर पर हिन्दू मतावलंबी जानते भी हैं.
अयोध्या धाम के आचार्य स्वामी विवेकानंद अक्षय तृतीया से जुड़ी अनेक कहानियां बताते हैं, जो हिन्दू धर्म ग्रंथों में भरी पड़ी हैं. जिन्हें पढ़कर आप की जानकारी में इजाफा हो सकता है. क्या आप जानते हैं कि परशुराम का जन्म इसी दिन हुआ. सुदामा-कृष्ण की मुलाकात इसी तिथि को हुई और उनकी दुनिया बदल गई. वन-वन भटक रहे पांडवों को मिला इसी तिथि पर अक्षयपात्र मिला. त्रेता युग की शुरुआत भी इसी अक्षय तृतीया को हुई थी और महर्षि वेद व्यास ने भगवान गणेश के साथ मिलकर महाभारत लिखने की शुरुआत भी इसी तिथि से की थी. आइए एक-एक कहानी को संक्षिप्त में जानते हैं.
पांडवों को मिला था अक्षय पात्र
जब पांडवों को 13 वर्ष का वनवास हुआ तो उनके साथ द्रोपदी भी थीं और ऋषि-मुनि भी. सबका भोजन एक साथ बनता था. कई बार भोजन की व्यवस्था में दिक्कतें आती थीं. काम जैसे-तैसे चलता रहा. एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि लगा सब भूखे रहेंगे. जबकि भारतीय परंपरा में अतिथि को देव तुल्य माना जाता है. तब द्रोपदी ने भगवान कृष्ण को याद किया. वे प्रकट होते हैं और पूछते हैं कि भंडार में कुछ बचा है? द्रोपदी के मना करने के बावजूद कृष्ण बर्तन देखते हैं और उसमें अन्न का एक दाना मिल जाता है जिसे भगवान कृष्ण खा लेते हैं. कृष्ण कहते हैं कि अब सारे लोगों की भूख शांत हो गई. तुम परेशान न हो. संतों और अतिथियों ने भी तृप्त महसूस किया. उसके बाद कृष्ण ने भगवान सूर्य से अनुरोध करके पांडवों को एक ऐसा अक्षय पात्र दिलवाया जिसमें सूर्योदय से लेकर रात में द्रोपदी के भोजन करने तक कभी अन्न खत्म नहीं होता था. यह दिन भी अक्षय तृतीया ही था.
महाभारत और अक्षय तृतीया का कनेक्शन
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि जब महर्षि वेदव्यास को महाभारत लिखने की प्रेरणा मिली तो वे चिंता में पड़ गए. यह एक बड़ा दुरूह सा काम था. उन्हें सबसे पहले किसी लेखक की तलाश करना था, जो इसमें उनकी मदद कर सके. तमाम सोच विचार के बाद वेद व्यास ने गणेश जी का चयन किया. इस काम को करने को वे सहर्ष तैयार भी हुए लेकिन एक शर्त रख दी. उन्होंने कहा कि मैं लगातार लिखता जाऊंगा. अगर आप रुक गए तो मैं लिखना छोड़ दूंगा. वेद व्यास ने भी एक शर्त रख दी. बोले आप तब तक आगे न बढ़ें जब तक मेरे बोले गए श्लोक का अर्थ न समझ लें. इस तरह बुद्धि और ज्ञान का संगम हुआ और महाभारत जैसा ग्रंथ लिखा गया जो आज भी समीचीन है. मैनेजमेंट के विद्यार्थियों को पढ़ाया जा रहा है. जानकार महाभारत को अक्षय ज्ञान का भंडार कहते हैं, जिसमें अर्जुन-कृष्ण संवाद के रूप में जीवन दर्शन शामिल है.
अक्षय तृतीया के दिन मिटी सुदामा की गरीबी
धार्मिक पुस्तकों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान कृष्ण की उनके बाल सखा सुदामा से मुलाकात हुई. यह कहानी कई तरह से प्रेरणा देती है. भक्ति भाव, मित्रता निभाने की कला, विनम्रता का संदेश देती है. इसी खास दिन पर भगवान कृष्ण ने अपने दोस्त को बिना मांगे धन-वैभव से भर दिया था. सुदामा जब कृष्ण से मिलने के बाद अपनी झोपड़ी पर पहुंचे तो वहां महल बन चुका था. परिवार के सदस्य खुशी से झूम रहे थे. सुदामा-कृष्ण बचपन में ऋषि संदीपनी के आश्रम से साथ-साथ पढ़ते थे. अपनी पत्नी की जिद पर गरीब सुदामा फटेहाल द्वारिकधीश से मिलने पहुंच गए.
वे मिले तो कृष्ण भावुक हो गए. उन्होंने पूछा कि मेरे लिए मेरे सखा क्या लाए हैं तो सुदामा संकोच में कपड़े में बंधा हुआ चूड़ा छिपा रहे थे लेकिन कृष्ण से क्या छिपाते और कैसे? कृष्ण ने लिया और उसे खा लिया. सुदामा इतने स्वाभिमानी थे कि पत्नी के आग्रह और कृष्ण के अनुरोध के बावजूद विदा लेते समय कुछ भी नहीं मांगा. फिर भी घर पहुंचे तो आंखें चौंधिया सी गई. उन्होंने मन ही मन माना कि यह प्रभु कृपा से ही हुआ है. यह सब कुछ अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था.
भगवान परशुराम का जन्म हुआ था
अक्षय तृतीया का भगवान परशुराम के जन्म से सीधा रिश्ता है. उनका जन्म इसी तिथि को हुआ था. उन्हें भगवान विष्णु का छठवां अवतार माना जाता है. इसलिए अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती भी मनाई जाती है. उनका जन्म ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका से हुआ था. परशुराम को क्रोध, न्याय प्रियता और तप के लिए जाना जाता है. पिता के कहने पर उन्होंने अपनी मां को मार दिया और अपने तप के बल पर मां को जीवित भी कर दिया. अपने तप के बल पर उन्होंने भगवान शिव से दिव्य फरसा पा लिया था. वे इतने वीर थे कि अत्याचारी क्षत्रियों का 21 बार समूल नाश कर दिया था. कथा यह भी है कि परशुराम अमर हैं और भविष्य में कल्कि अवतार के गुरु के रूप में सामने आएंगे. यही परशुराम थे जो शिवजी का धनुष टूटने पर राजा जनक के दरबार में लक्ष्मण को मारने दौड़ पड़े. फिर राम आए और उनके क्रोध को शांत किया.
त्रेता युग की शुरुआत और अक्षय तृतीया का संयोग
धार्मिक ग्रंथ गवाही देते हैं कि त्रेता युग का आरंभ धर्म की रक्षा और मर्यादा के युग की शुरुआत के रूप में हुई थी. यह दिन भी अक्षय तृतीया ही था. इस दिन को अनंत पुण्य का दिन, सत्य का दिन आदि के रूप में जाना जाता है. इसी युग में परशुराम ने अवतार लिया. ग्रंथों में उन्हें त्रेता युग का पहला महान अवतार माना जाता है. भगवान राम का जन्म भी इसी युग में हुआ. उन्हें बाद में मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया. वे विष्णु के अवतार थे. परशुराम भी विष्णु के छठे अवतार के रूप में जाने जाते हैं.
अयोध्या धाम के आचार्य स्वामी विवेकानंद बताते हैं कि उपरोक्त के अलावा अक्षय तृतीया से जुड़ी कई कहानियां धर्म ग्रंथों में मिलती हैं. इसी में भगवान कुबेर की कहानी भी है. उन्हें धन का देवता कहा जाता है. कुबेर विश्रवा मुनि के पुत्र थे. इस तरह वे रावण के सौतेले भाई भी थे. कुबेर ने कठोर तप करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया. ब्रह्मा जी ने वरदान मांगने को कहा तो कुबेर ने अक्षय संपत्ति तथा देवताओं के कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी मांग ली. कुबेर को जब ब्रह्मा जी ने यह वरदान दिया तो उस दिन भी अक्षय तृतीया ही थी. कहा जाता है कि मां गंगा भी आज के ही तिथि में पृथ्वी पर आई थीं.
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