100 साल में कैसा रहा रुपए का सफर, वक्त के साथ कितना गिरता गया?
Rupee At Record Low: रुपया अपने रिकॉर्ड लो पर है. भारतीय रुपए में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कुछ समय से लगातार गिरावट आ रही है. पिछले दो हफ़्तों में रुपये में अमूमन गिरावट का ही रुख रहा है. वहीं बीते 10 साल की बात करें तो एक दशक में भी डॉलर के मुकाबले रुपए में भारी गिरावट देखने को मिल चुकी है. इससे पहले अप्रैल 2014 को डॉलर के मुकाबले में रुपए का लेवल 60.32 देखने को मिला था और अब ये 86.62 के लेवल पर आ गया है. ऐसे में आइए जानते हैं 100 साल में रुपया कैसे बदलता गया और वक्त के साथ रूपया कितना गिर गया?
100 साल पहले कितनी रुपए की वैल्यू?
आज से 100 साल पहले यानी आजादी से पहले भारत एक स्वतंत्र देश नहीं था और न ही अमेरिका के साथ ट्रेड रेगुलटरी थी. तो ऐसे में रुपये Vs डॉलर जैसी कोई चीज उस समय नहीं हुआ करती थी. रुपया अंग्रेजों द्वारा चलाई गई करेंसी थी. हालांकि, 100 साल पहले भारत जब ब्रिटिश राज्य था तो रुपये की वैल्यू ज्यादा थी, क्योंकि ब्रिटिश राज्य के अधीन ब्रिटिश पाउंड की वैल्यू भी ज्यादा थी.कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, 100 साल पहले रुपए की कीमत देखें तो साल 1925 में एक डॉलर की कीमत 2.76 रुपये थी.
100 सालों में भारतीय रुपया अपनी वास्तविक क्रय शक्ति और विदेशी मुद्राओं के मुकाबले काफी कमजोर हुआ है. उदाहरण के लिए, 1 रुपया जो 1925 में कई वस्तुएं खरीद सकता था, आज केवल 1 पैसे से भी कम मूल्य का है.यह गिरावट मुख्य रूप से मुद्रास्फीति, आर्थिक नीतियों और वैश्विक कारकों का परिणाम है.
कब शुरू हुआ डॉलर बनाम रुपया?
1944 में दुनिया में पहली बार ब्रिटन वुड्स एग्रीमेंट पास हुआ था. इस एग्रीमेंट के तहत दुनिया की हर करेंसी का मूल्य निर्धारण होता था. 1947 जब भारत आजाद हुआ था तब तक लगभग सभी देशों ने इस एग्रीमेंट को एक्सेप्ट कर लिया था और दुनियाभर में इसी के आधार पर करेंसी की वैल्यू तय होने लगी थी. आजादी के बाद से रुपए और डॉलर का मुकाबला शुरू हुआ.
कैसे बदलता गया रुपया
100 सालों में भारतीय रुपये का मूल्य (मुद्रा की क्रय शक्ति और विदेशी मुद्राओं के मुकाबले विनिमय दर) कई कारणों से गिरा है. इस अवधि में रुपये की गिरावट को समझने के लिए इन चीजों को देखना होगा.
1. रुपये की Purchasing Power
1920 के दशक: रुपये की क्रय शक्ति मजबूत थी, लेकिन उस समय भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था. मुद्रा का मूल्य सोने और चांदी जैसे धातुओं से जुड़ा था.
1947 (स्वतंत्रता के बाद): भारत ने अपनी मुद्रा को स्थिर रखने के लिए आर्थिक और मौद्रिक नीतियां अपनाईं। 1 अमेरिकी डॉलर = 1 रुपया के लगभग था.
1970 के दशक: वैश्विक तेल संकट और बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण रुपये की क्रय शक्ति तेजी से घटने लगी.
वर्तमान (2025): मुद्रास्फीति और वैश्विक आर्थिक कारणों से रुपये की क्रय शक्ति में भारी गिरावट आई है. अब 1 रुपये में वह वस्तुएं नहीं खरीदी जा सकतीं जो 100 साल पहले मिलती थीं.
2. विनिमय दर में गिरावट
1947 में, 1 अमेरिकी डॉलर = 1 भारतीय रुपया था.
2025 में, 1 अमेरिकी डॉलर ≈ 86 भारतीय रुपये के बराबर है.
100 साल का रिकॉर्ड
1. 1947-1971: स्वतंत्रता के बाद की स्थिरता और पहली गिरावट
2. 1971-1991: वैश्विक अस्थिरता और आर्थिक संकट
3. 3. 1991-2010: वैश्वीकरण के प्रभाव
- 1992-1999: आर्थिक सुधारों और बाजार खोलने के बावजूद रुपये का धीरे-धीरे मूल्य घटता रहा।
- 1 USD ≈ 25-30 रुपये के बीच।
- 2008 (वैश्विक आर्थिक मंदी): रुपये की गिरावट तेज हुई
4. 2010-2023: लगातार गिरावट
- 2013: रुपये का मूल्य एक बार फिर बड़ी गिरावट का सामना कर रहा था।
- कारण: विदेशी निवेश में कमी और व्यापार घाटा।
- परिणाम: 1 USD = 68 रुपये तक पहुंच गया।
- 2020 (COVID-19 महामारी):
- रुपये का मूल्य वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता के कारण गिरा।
- 1 USD ≈ 76 रुपये।
- 2023: रुपये की गिरावट जारी रही
- 2024: रुपये की गिरावट जारी रही
- 2025 : रुपया रिकॉर्ड लो पर पहुंच गया.
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