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क्या ब्रुनोई बनेगा भारत के लिए रूस का नया विकल्प? समझिए PM मोदी के संदेश के मायने

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Sep 4, 2024    150837 views     Online Now 229
क्या ब्रुनोई बनेगा भारत के लिए रूस का नया विकल्प? समझिए PM मोदी के संदेश के मायने

पीएम मोदी और बुनोई के सुल्तान

अपने देश में अधिकांश लोगों को ब्रुनोई का इतिहास-भूगोल तो दूर, उसकी लोकेशन तक नहीं पता होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन से लौटने के 10 दिन बाद ही अचानक ब्रुनोई दौरे का प्रोग्राम बना लिया. उस समय यह सबको चौकाने वाला लगा था. किसी को समझ नहीं आया कि आख़िर प्रधानमंत्री ब्रुनोई क्यों गए? मात्र 4.5 लाख की आबादी वाले इस देश में शरीया क़ानून लागू है और महिलाओं को वहां इतनी भी आज़ादी नहीं है जितनी कि सऊदी अरब दे चुका है. जबकि यह देश साउथ चाइना समुद्र के एक कोने पर मलयेशिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर व कम्बोडिया के बीच में स्थित है. छोटे-से इस देश की पहचान यही है कि तेल के मामले में यह रूस, अरब और कनाडा की बराबरी करता है. तेल से इस देश में इतनी संपन्नता है कि यहां के सुल्तान विश्व के सर्वाधिक अमीर लोगों में शुमार होते हैं.

प्रधानमंत्री द्वारा ब्रुनोई दौरे की सूचना वाकई चौंकाने वाली थी क्योंकि आज़ादी के बाद से अब तक कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री औपचारिक दौरे पर ब्रुनोई नहीं गया. वर्ष 2013 में ब्रुनोई में हुए आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में भाग लेने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह गए थे. पर वह द्विपक्षीय दौरा नहीं था. एक छोटा-सा देश और जहां तेल के अतिरिक्त और कुछ न हो वहां भारत के प्रधानमंत्री का जाना थोड़ा आश्चर्यजनक लगता है.

तेल के लिए ब्रुनोई!

यदि आज की सामरिक रणनीति की नजर से देखा जाए तो यह दौरा बिल्कुल उचित प्रतीत होता है. एशिया में भारत और चीन दो देश अमेरिका की आंख में किरकिरी बने हुए हैं. चीन को दबाव में लेना है तो भारत को बढ़ाओ और भारत बढ़ने लगता है तो उसके पर भी काटो. क्योंकि चीन से पंगा लेने की स्थिति में अमेरिका भी नहीं है. पिछली 5 अगस्त को बांग्ला देश में तख्ता-पलट भारत को नीचा दिखाने की एक कोशिश थी. सबको पता है कि यह अमेरिका की सोची-समझी रणनीति थी. इसके चलते भारत दबाव में आया भी.

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भारतीय प्रधानमंत्री का यूक्रेन दौरा इस दबाव का नतीजा था. क्योंकि 9 जून को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के तत्काल बाद नरेंद्र मोदी रूस गए थे. वहां राष्ट्रपति पुतिन ने रूस का सर्वोच्च सम्मान उन्हें ‘ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द अपोस्टल’ प्रदान किया था. इसके दो महीने बाद वे यूक्रेन गए और राष्ट्रपति जेलेंस्की से मिले. भले इसे रूस-यूक्रेन वॉर को रोकने की कोशिश कहा जाए किंतु पुतिन की आंखों में प्रधानमंत्री मोदी की जेलेंस्की से मुलाक़ात भाई तो नहीं होगी. अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भी भारत ने रूस से तेल और ज़्यादा मंगाना शुरू कर दिया. इससे भारत को लाभ हुआ. करीब ढाई साल से भारत में पेट्रो उत्पाद के दाम नहीं बढ़े हैं. मगर अब पुतिन भारत को तेल देने में कटौती कर सकते हैं या तेल महंगा कर सकते हैं. इसलिए भारत को विकल्प खोजने ही थे.

ईस्ट एक्ट पॉलिसी और आसियान देश

ब्रुनोई के पास तेल भी खूब है और साउथ चीन समुद्र से हिंद महासागर की तरफ़ वहां से रास्ता भी सुगम है. इसलिए भी मोदी यह मौक़ा चूकना नहीं चाहते. इसके अलावा 2018 में भारत ने ब्रुनोई के साथ एक समझौता किया था, जिसके तहत वह अपने सैटेलाइट की ट्रैकिंग भारत वहां से कर सकता है. इस समझौते का नाम को-ऑपरेशन इन ऐलिमेंट्री ट्रैकिंग एंड कमांड स्टेशन फॉर सेटेलाइट है. चीन के साथ ब्रुनोई के रिश्ते भी सामान्य हैं. दक्षिण चीन समुद्र में वह एक पार्टी तो है पर वह शांत रहता है. भारत भी इस मामले में कोई विवाद में नहीं पड़ना चाहता. तीन सितंबर से शुरू हुआ यह दौरा पांच सितंबर तक चलेगा. प्रधानमंत्री के इस दौरे को ईस्ट एक्ट पॉलिसी के ज़रिये आसियान देशों के साथ मधुर संबंध रखने की कोशिश बताया गया गया है. प्रधानमंत्री चार को दोपहर बाद सिंगापुर पहुंचे.

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मुस्लिम मन में गुदगुदाहट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ब्रुनोई दौरे से एक छिपा हुआ संदेश यह भी देना चाहते हैं कि दुनिया के सभी मुस्लिम देशों से उनके रिश्ते अच्छे हैं. चाहे वह सउदी अरब हो या क़तर अथवा ईरान, ईराक़ और अब यह ब्रुनोई भी. मलेशिया और इंडोनेशिया से तो भारत के रिश्ते सदा से दोस्ताना रहे हैं. उनको 2024 के लोकसभा चुनाव में यह भी लगा होगा कि भारतीय मतदाताओं में से किसी भी समुदाय को अलग-थलग नहीं किया जा सकता. राम मंदिर बनवाने के बावजूद अयोध्या (फ़ैज़ाबाद लोकसभा सीट) से भाजपा बुरी तरह हार गई. वाराणसी में भी प्रधानमंत्री की जीत कोई बहुत बड़े अंतर से नहीं हुई. शायद इसकी वजह यह भी रही हो कि भाजपा के नेता देश की 20 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को अपना मानते नहीं. जबकि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को मुस्लिम भी वोट देते थे.

हसनल 57 साल से ब्रुनोई के सुल्तान

दक्षिण चीन सागर के बोर्नियो द्वीप के उत्तर में स्थित ब्रुनोई में सुल्तान हसनल राष्ट्र प्रमुख हैं. वे देश के 29वें सुल्तान हैं और ब्रुनोई की आज़ादी के बाद से पहले. ब्रुनोई देश के लोग मलय भाषा बोलते हैं और उनकी एथिनिक पहचान भी मलय ही है. इस्लाम मत यहाँ के तीन चौथाई से भी अधिक लोगों का आधिकारिक धर्म है और 14 वीं शताब्दी में इस्लाम यहाँ पहुँचा था. 1368 में हुई थी, जब सुल्तान मुहम्मद शाह ने ब्रुनेई में मुस्लिम राज स्थापित किया. तब से वहां सुल्तान ही शासक होते आए हैं.

1888 में ब्रुनोई ब्रिटिश संरक्षण का देश बना. सुल्तान का पद यथवत रहा किंतु एक ब्रिटिश रेज़ीडेंट यहाँ बैठता था. 1945 पर्ल हार्बर को जब जापानियों ने नष्ट कर दिया तब यहाँ जापानी शासक आए. 1962 में एक विद्रोह हुआ और ब्रुनोई के लोगों ने मलयेशिया के संघ में रहने से मना कर दिया. 1984 में ब्रुनोई आज़ाद हुआ और तब से यहाँ सुल्तान हसनल का राज है.

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दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत की दिलचस्पी

ब्रुनोई के सुल्तान के पास निजी संपदा बहुत ज़्यादा है. दुनिया की कई बड़ी कंपनियों में सुल्तान हसनल ने इन्वेस्ट किया हुआ है. यहां सोने के गुम्बद वाली मस्जिदें हैं. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रुनोई की एक प्राचीन मस्जिद में गए. ब्रुनोई में राजतंत्र भले हो लेकिन पब्लिक पर कोई टैक्स का बोझ नहीं है. सबको शिक्षा और सबको इलाज़ यहां का मूल मंत्र है. बिना टैक्स के यह देश सबको मुफ़्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराता है. हसनल बोल्कैया इब्नी उमर अली सैफुद्दीन ब्रुनेई के 29वें सुल्तान हैं. दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में भारत की दिलचस्पी अचानक बढ़ी प्रतीत होती है. पिछले दिनों राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू तिमूर गई थीं. और अब प्रधानमंत्री ब्रुनोई और सिंगापुर. हालांकि ऊपरी तौर पर कहा जा रहा है कि भारत और ब्रुनोई के राजनीतिक संबंधों के 40 साल पूरे होने के मौक़े पर प्रधानमंत्री ब्रुनोई गए हैं.

चेन्नई से सीधी उड़ान

इसदौरेकाएकलाभतोयहहुआकिब्रुनोईसेचेन्नईकेबीचसीधीउड़ानशुरूहोगई.इसकेसाथहीपारस्परिकद्विपक्षीयसमझौतेभीहुए.खासकररक्षाऔरनिजीक्षेत्रमें.उनकासिंगापुरदौराभीकूटनीतिकरूपसेफायदापहुंचानेवालाहै. सिंगापुर में प्रधानमंत्री लॉरेन्स वांग ने उन्हें अपने देश में बुलाया था. चार सितंबर को जब दोपहर बाद मोदी वहां पहुंचे तो भारतीय समुदाय उनकी अगवानी को उमड़ पड़ा. सिंगापुर के व्यापार में भारतीय समुदाय काफ़ी है. ब्रुनोई में भी भारत के लोगों ने नरेंद्र मोदी का भव्य स्वागत किया था.

यह इस बात का भी संकेत है कि विदेशों में बसे भारतीय भारत में पैसा लगाने को उत्सुक हैं. भारत के लिए इससे सुखद और क्या होगा! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीसरी बार शपथ ग्रहण के तीन महीने के भीतर इस तरह के तेवर बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री दुनिया भर में चल रहे अर्थ संकट को समझ रहे हैं. उससे निपटने की वे पूरी तैयारी में सन्नद्ध हैं.

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