प्रशांत किशोर का मिशन बिहार
सन् 1977 में असरानी एक फिल्म लेकर आए- चला मुरारी हीरो बनने. इससे पहले असरानी एक हास्य कलाकार के तौर ख्याति हासिल कर चुके थे. लेकिन अब उनके भीतर डायरेक्टर बनने की तमन्ना जोर पकड़ने लगी थी. असरानी ने बतौर अभिनेता हमेशा करोड़ों दर्शकों को प्रभावित किया है लेकिन डायरेक्टर के रूप में उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली, वैसे उनके मीनिंगफुल अफर्ट की आज भी सराहना होती है. देखें तो ऐसी समझ और परिस्थिति के शिकार अक्सर कई दिग्गज भी हो जाते हैं. डायरेक्टर हीरो बनने की कोशिश करता है तो हीरो डायरेक्टर बनना चाहता है. ऐसा सिनेमा ही नहीं बल्कि खेल और राजनीति में भी देखा जाता है. यहां हम चुनावी रणनीतिकार से जनसुराज दल के नेता बने प्रशांत किशोर की तुलना चला मुरारी हीरो बनने से बिल्कुल नहीं कर रहे हैं बल्कि उस अफर्ट को सामने रखना चाह रहे हैं जिससे हर जागरुक और समझदार शख्स अपने जीवन में एक बार जरूर गुजरता है. प्रशांत किशोर के भी अफर्ट से हर कोई वाकिफ हो चुका है.
प्रशांत किशोर मूलत: चुनावी रणनीतिकार रहे हैं, उन्होंने अपनी दक्षता से राज्य से लेकर केंद्र तक कई राजनीतिक शख्सियतों को ऊंचाई पर पहुंचाया है, सत्ता दिलाई और उनकी ब्रांडिंग की है. इसमें पीएम नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार और ममता बनर्जी भी शामिल हैं. लेकिन अब उन्होंने खुद ही सियासत के मैदान में कूदने की तैयारी कर ली. संभव है उन्होंने अपनी स्थिति का भी आकलन जरूर किया होगा. पिछले करीब दो साल से ज्यादा समय से प्रशांत पूरे बिहार का दौरा कर रहे हैं, सभाएं कर रहे हैं. ग्रासरूट्स पर लोगों के मिजाज को समझने की कोशिश कर रहे हैं और अपने संदेश भी पहुंचा रहे हैं. उनका दावा है उनके दौरे के बाद बिहार की जनता में एक जागरुकता आई है. नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के अलावा तीसरे विकल्प को लेकर जनता में एक बेचैनी है. इसी का नतीजा है कि प्रशांत किशोर ने आगामी 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर अपनी नई पार्टी जनसुराज लॉन्च करने का ऐलान किया है.
प्रशांत किशोर का सियासी यूटोपिया
प्रशांत किशोर पिछले दिनों से बतौर डायरेक्टर अपनी आने वाली पॉलिटिकल पिक्चर के इंटरव्यूज भी दे रहे हैं. उनके जितने भी इंटरव्यूज देखने को मिले हैं, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि पीके ने बिहार की सियासी बिसात पर एक बड़ा कैनवास तैयार करने की कोशिश की है. ऐसा कैनवास जिसमें जातिवादी राजनीति का एक नया यूटोपिया है. उनके प्लान में युवाओं, बुजुर्गों, दलितों, महादलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों, मुस्लिमों और महिलाओं सबके लिए कुछ ना कुछ है. उन्होंने बिना किसी के साथ गठबंधन के प्रदेश की सभी 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. यानी 2025 में उनका रियल डेब्यू होने जा रहा है. अभी तक पर्दे के पीछे थे, अब पर्दे पर होंगे तो उनकी पॉलिटिकल पिक्चर हिट होती है या फ्लॉप, इसका इंतजार सभी को रहेगा.
वैसे प्रशांत किशोर ने 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बड़ी चुनावी लकीर खींची है. उन्होंने जनसुराज पार्टी की सेंट्रल कमेटी बनाकर समाज के सभी वर्ग ही नहीं बल्कि तमाम हाशिये पर पड़े सामाजिक-आर्थिक बुनियादी मुद्दों को भी साधने का ऐलान किया है. उन्होंने पिछले दिनों पटना में महिला सम्मेलन किया था और उसमें अपनी डॉक्टर पत्नी जाह्नवी दास का परिचय कराया. इसके साथ ही प्रशांत किशोर में आगामी चुनाव में बिहार में 40 महिलाओं को टिकट भी देने का ऐलान किया है. पीके चुनाव में महिला वोट बैंक की ताकत समझते हैं लिहाजा उन्होंने यह प्रयोग करने का प्रयास किया है. बिहार में महिलाओं को वोट प्रतिशत लगातार बढ़ा है. पिछले लोकसभा चुनाव को ही देखें तो यहां करीब 52 फीसदी पुरुषों ने वोट किया जबकि 62 फीसदी महिलाओं ने वोट किया.
PK की नजर महिला और मुस्लिम वोट पर
इसके अलावा उन्होंने 75 सीटों पर मुस्लिमों को भी टिकट देने का ऐलान किया है. पहले यह संख्या 42 कही जा रही थी. बिहार में नीतीश हो या तेजस्वी-लालू, मुस्लिम वोट बैंक दोनों की जरूरत रहे हैं. ना तो तेजस्वी और ना ही नीतीश कुमार इस वोट बैंक से दूर होना चाहते हैं. बिहार में करीब 18 फीसदी मुस्लिम वोट हैं और 47 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार प्रभावशाली रहे हैं. अब प्रशांत किशोर 75 मु्स्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतार कर आरजेडी और जेडीयू दोनों को नुकसान पहुंचाने का इरादा रखना चाहते हैं. प्रशांत किशोर का मानना है बिहार में मुस्लिमों का कोई नेता नहीं है. इस प्वॉइंट पर वो बिहार में असदुद्दीन ओवैसी को रोकने की कोशिश करते दिखते हैं.
महिलाओं और मुस्लिमों के अलावा प्रशांत किशोर सवर्णों में खासतौर पर भूमिहार और ब्राह्मण तो पिछड़ों में यादव और दलित समाज को भी साधने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा माना जाता है बिहार में जिस दल ने मु्स्लिम, महिला और यादव के साथ-साथ भूमिहार और ब्राह्मण वर्ग को भी प्रभावित कर ले, उसे बहुमत हासिल करने से कोई रोक नहीं सकता. पछले दिनों आरजेडी के पूर्व सांसद देवेंद्र यादव को जनसुराज में शामिल कराके उन्होंने लालू यादव-तेजस्वी यादव को झटके का संकेत दे दिया. प्रशांत किशोर का दावा है उनकी रणनीति इन वर्गों में तेजी से पैठ बना रही है. उनकी रणनीति है- संगठन, टिकट और शासन के लिए जिसकी जितनी आबादी, उसे उतनी हिस्सेदारी. यह उनकी जनसुराज पार्टी का खास नारा है. इस नारे के साथ ही उन्होंने बिहार से युवाओं के पलायन, गरीबी, बेरोजगारी, बाढ़ जैसे सामाजिक मु्द्दों को उठाकर प्रदेशवासियों को झकझोरने का प्रयास किया है.
जनता बदवाल चाहती है लेकिन किसे चुने?
प्रशांत किशोर ने अपने इंटरव्यूज और सर्वे में ये भी दावा किया है कि बिहार की पचास फीसदी जनता बदलाव चाहती है. हालांकि इसमें कोई कोई दो राय नहीं कि उनके इस दावे में दम है. बिहार की जनता पिछले करीब तीन दशक से लालू बनाम नीतीश राज को देखती आ रही है और ठगी महसूस कर रही है. यहां तक कि दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के विरोधी होने के बावजूद हाथ मिलाकर सरकार चलाई और अलग-अलग होने पर एक-दूसरे पर निशाना साधा. इससे बिहार की नई पीढ़ी के मन मिजाज पर दोनों की निगेटिव छवि बनी. लेकिन बिहार की राजनीतिक बिसात ही कुछ ऐसी है कि यहां जातीय मुद्दा कभी दबता ही नहीं. नीतीश और लालू का अपना अपना जातीय जनाधार पहले से काफी मजबूत रहा है. इस आधार को कमजोर करके अपने पाले को मजबूत करना बहुत आसान नहीं. नीतीश के बार बार पाला बदलने से भी चुनाव में उन पर कोई असर नहीं पड़ा
बेशक प्रशांत किशोर एक यूटोपिया तैयार करते हैं और गंभीर भावुक और सामाजिक मु्द्दे उठाते हैं. लेकिन सियासत यूटोपिया से नहीं होती. शराबबंदी हो या पैतृक संपत्ति में महिलाओं के अधिकार का मुद्दा, इन दोनों मुद्दों की वजह से नीतीश कुमार का महिला वोट बैंक काफी मजबूत हो चुका है. प्रशांत किशोर इसे कैसे काट पाएंगे? क्या केवल महिला उम्मीदवारों को लेकर सामने आने से महिलाएं वोट दे देंगी? दूसरी तरफ बीजेपी ने हुकुमदेव नारायण यादव से लेकर रामकृपाल यादव तक लालू के खिलाफ बिहार में कई यादव खड़े करने की कोशिश की, लेकिन लालू-तेजस्वी के माय समीकरण को तोड़ नहीं पाई. प्रशांत किशोर इस पर कैसे विजय पा सकेंगे? इन सवालों के आगे जनसुराज को सफल बनाने के लिए उनका डायरेक्शन फिलहाल दांव पर है.
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