पहली बार रॉयल कमीशन ने भारतीय अधिकारियों को पेंशन देने की बात की थी.
केंद्र सरकार ने शनिवार को यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) को मंजूरी दे दी है. जानकारी के मुताबिक नया पेंशन सिस्टम 1 अप्रैल, 2025 से लागू किया जाएगा. सूचना मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि यूपीएस के तहत सरकारी कर्मचारी अब सेवानिवृत्ति से पहले अंतिम 12 महीनों में मिले मूल वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में पाने के हकदार होंगे. कर्मचारियों के पास एनपीएस और यूपीएस स्कीम में से किसी एक को चुनने की आजादी होगी. इस बीच आइए जानते हैं कि भारत में पेंशन दिए जाने का इतिहास कितना पुराना है. अंग्रेजों के समय क्या हाल था.
भारत में पेंशन सिस्टम की शुरूआत ब्रिटिश राज में हुई थी. उससे पहले तक लोग तब तक काम करते थे, जब तक उनका शरीर उनका साथ देता था. राजा के दरबारियों को कोई पेंशन स्कीम का लाभ नहीं मिलता था. रिपोर्ट के मुताबिक, 1881 में पहली बार सरकारी कर्मचारियों को पेंशन लाभ मिला था. रॉयल कमीशन ऑन सिविल एस्टेब्लिशमेंट ने यह पेंशन दी थी.
कब और कैसे शुरू हुआ पेंशन सिस्टम?
यूनाइटेड किंगडम में पेंशन सिस्टम 1600 के दशक के अंत में दिखाई दिया था. यूके की Civil Servant वेबासइट के अनुसार, पहली सिविल सेवा पेंशन 1684 में दी गई थी. तब पोर्ट ऑफ लंदन का एक वरिष्ठ अधिकारी इतना बीमार हो गया था कि उसे नौकरी पर नहीं रखा जा सकता था, और उसके उत्तराधिकारी को 80 यूरो के वेतन पर नियुक्त किया गया था. उसे इस शर्त पर नियुक्त गया था कि इसमें से 40 यूरो का भुगतान उस बीमार वरिष्ठ अधिकारी को किया जाएगा. बताया जाता है कि इस तरह पहली 50% पेंशन शुरू हुई.
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यह सिस्टम दूसरे क्षेत्र में पनपा. 1760 और 70 के दशक में इसमें महत्वपूर्ण विकास हुआ. एक बार 1847 में 200 वरिष्ठ कप्तानों की हालत ऐसी हो गई थी कि वो समुद्र में नहीं जा सकते थे. तब उन सब को प्रमोट करके रियर एडमिरल बना दिया गया और उन्हें पेंशन के रूप में आधे वेतन पर रखा गया. समय के साथ रॉयल कमीशन की रिपोर्ट आई और उन्होंने पेंशन पाने के लिए उम्र, सर्विस ईयर जैसे मानकों को निर्धारित किया.
अंग्रेजों के समय में कितनी पेंशन थी?
1881 में पहली बार रॉयल कमीशन ने पेंशन देने की बात की थी. उसके बाद भारत सरकार के 1919 और 1935 के अधिनियमों ने और प्रावधान किए गए. ब्रिटिश राज में कर्मचारियों को कितनी पेंशन मिलती थी, इसका अंदाजा 1924 की रॉयल कमीशन की रिपोर्ट से लगा सकते हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि पेंशन में नए प्रावधान भारतीय अधिकारियों के अनुरोध पर किया जा रहे हैं. भारतीय अधिकारियों को शिकायत है कि उनकी पेंशन पर्याप्त नहीं है. मिलने वाली पेंशन बच्चों की पढ़ाई की लागत और बढ़ती महंगाई को देखकर बदली जानी चाहिए. रॉयल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में परिषद के सदस्यों और प्रांतों के राज्यपालों पर खासतौर पर ध्यान दिया है.
रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि परिषद के सदस्यों की पेंशन 50 यूरो/साल के दर से और प्रांतों के राज्यपालों की पेंशन 100 यूरो/साल के दर से बढ़नी चाहिए. इस तरह उनकी कुल पेंशन क्रमानुसार 1,250 यूरो और 1,500 यूरो हो जाएगी. हाई कोर्ट के जज, जिन्होंने 11.5 साल की सर्विस की है, को 1,200 यूरो की पेंशन दी जाती थी.
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