प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
78वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले के प्राचीर से भाषण तो 98 मिनट का दिया, लेकिन सबसे चर्चा उनके सेक्युलर सिविल कोड पर दिए गए बयानों की हो रही है. मोदी ने कहा है कि देश में अब तक कम्युनल सिविल कोड चल रहा है, जिसका सुप्रीम कोर्ट ने भी विरोध किया है. अब देश की मांग है कि कम्युनल की जगह पर सेक्युलर सिविल कोड हो.
यह पहली बार है, जब नागरिक संहिता को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले के प्राचीर से खुलकर बोला है. ऐसे में प्रधानमंत्री के इस बयान के मायने से लेकर टाइमिंग तक पर सवाल उठ रहे हैं. इतना ही नहीं, चर्चा इस बात की भी है कि क्या सिविल कोड विपक्ष के पीडीए फॉर्मूले की काट है?
पहले जानिए लाल किले से क्यों बोले PM?
लाल किले से बोलने के पीछे की सबसे बड़ी वजह बयान की गंभीरता है. मोदी सरकार यह नहीं चाहती है कि इस मामले में उसके बयान को हल्के में लिया जाए. 2019 में जब मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से 370 हटाने का निर्णय लिया था, तब उसने सीधे लोकसभा में बिल पेश किया था. वर्तमान में संसद का सत्र नहीं चल रहा है. ऐसे में सरकार ने लाल किले से ही इस बयान को देना मुनासिफ समझा है.
दरअसल, लंबे वक्त से देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की मांग हो रही है. उत्तराखंड जैसे राज्यों में इस पर प्रस्ताव भी आ चुका है. कई बीजेपी के सांसद इस पर बयान भी दे रहे थे, लेकिन पीएम ने अब लाल किले के प्राचीर से बोलकर सरकार की मंशा को साफ कर दिया है.
यूनिफॉर्म की जगह सेक्युलर कोड का जिक्र क्यों?
प्रधानमंत्री ने यूनिफॉर्म सिविल कोड की जगह सेक्युलर सिविल कोड का जिक्र किया है. इसको लेकर भी सवाल उठ रहे हैं कि आखिर प्रधानमंत्री ने यूनिफॉर्म की जगह पर सेक्युलर सिविल कोड का जिक्र क्यों किया है?
दरअसल, यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब होता है- एक सामान नियम. देश में सिख और आदिवासी समुदाय इसका विरोध करते रहे हैं. आदिवासी समुदाय का कहना है कि इसे लाकर सरकार हमारे अधिकार को छीनना चाहती है.
सिख समुदाय का भी यही तर्क है. ऐसे में कहा जा रहा है कि सरकार यूनिफॉर्म के बदले सेक्युलर सिविल कोड का जिक्र कर आदिवासी और सिख समुदाय को नाराज नहीं करना चाहती है.
लोकसभा चुनाव में विपक्ष के पीडीए की गूंज
लोकसभा के हालिया चुनाव में विपक्ष के पीडीए (पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक) फॉर्मूले की गूंज सुनाई दी. इस फॉर्मूले की वजह से उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान जैसे राज्यों का चुनाव जाति आधारित हो गया, जिसका सीधा नुकसान बीजेपी को हुआ.
सीएसडीएस के मुताबिक यूपी में नॉन जाटव दलित, ओबीसी और मुस्लिम समुदाय ने एकतरफा विपक्ष के पक्ष में वोट किया. इसी तरह महाराष्ट्र में ओबीसी, दलित और मुस्लिम समुदाय का वोट महाविकास अघाडी को मिला. बिहार और राजस्थान में विपक्ष लीड तो नहीं ले पाई, लेकिन यहां भी इस समुदाय ने विपक्ष को समर्थन दिया.
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80, महाराष्ट्र में 48, बिहार में 40 और राजस्थान में 25 सीटें हैं. लोकसभा चुनाव के बाद संसद में भी पीडीए फॉर्मूले की गूंज सुनाई दी. बजट भाषण पर बोलते हुए लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने जातीय जनगणना की मांग की थी. लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी सपा भी इस फॉर्मूले को खूब उठाया.
संसद में अखिलेश यादव ने फ्रंट सीट पर अपने बगल में अयोध्या के दलित सांसद अवधेश प्रसाद की सीट आवंटित करा दी.
जाति की धार तोड़ने के लिए सिविल कोड?
1990 के दशक में बीजेपी ने विपक्ष के मंडल (ओबीसी आरणक्ष) को तोड़ने के लिए कमंडल (राम मंदिर) का मुद्दा उठाया था. यह मुद्दा बीजेपी के लिए संजीवनी साबित हुआ. 2 सीटों वाली बीजेपी सीधे सरकार में जा बैठी. वर्तमान में राम मंदिर मुद्दे का समाधान हो चुका है.
बीजेपी के पास हिंदुत्व में अब सिविल कोड का ही बड़ा मुद्दा बचा है. ऐसे में कहा जा रहा है कि जिस तरह से प्रधानमंत्री ने इसे उठाया है, उससे आगे अब पार्टी इसे धार दे सकती है.
सिविल कोड के जरिए बीजेपी हिंदुत्व के वोटरों को एकजुट करने की कोशिश करेगी और अपनी पुरानी रणनीति 85 वर्सेज 15 की राजनीति को फिर से मजबूत करेगी.
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