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Independence Day 2024: क्या है चौरी चौरा कांड की कहानी? जिसके बाद गांधी जी को वापस लेना पड़ा था असहयोग आंदोलन | independence day 2024 story of chauri chaura incident forced mahatma gandhi to postpone non cooperation movement stwas

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Aug 15, 2024    150846 views     Online Now 355
Independence Day 2024: क्या है चौरी-चौरा कांड की कहानी? जिसके बाद गांधी जी को वापस लेना पड़ा था असहयोग आंदोलन

गोरखपुर जिले में चौरी-चौरा नाम स्थान पर घटी थी ये घटना.

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में अब से लगभग 102 साल पहले ‘चौरी-चौरा’ कांड हुआ था. यह घटना 4 फरवरी 1922 को घटित हुई, जहां अंग्रेजी हुकूमत से परेशान भारतीयों ने हिंसक होकर एक पुलिस चौकी में आग लगा दी. साथ ही 23 पुलिसकर्मियों को जिंदा आग के हवाले कर दिया. इस घटना में सभी पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी. इस हिंसक घटना के बाद 1 अगस्त 1920 को शुरू हुए असहयोग आंदोलन को महात्मा गांधी ने वापस लेने का ऐलान कर दिया. साथ ही इस घटना से गांधी जी बहुत आहत भी हुए थे.

आज हम आजादी की 78वीं सालगिरह का जश्न मना रहे हैं. ऐसे में हम अगर हवा में सांस ले पा रहे हैं तो आजाद भारत में इस दिन हम देश के उन क्रांतिकारियों को याद करते हैं, जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया था. ऐसे में चौरी-चौरा कांड का जिक्र होना भी आजादी का एक हिस्सा है. वहीं, इस घटना को इतिहास के पन्नों में चौरी-चौरा कांड के नाम से जाना जाता है.

चौरी-चौरा कांड भी था आजादी का एक हिस्सा

4 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा कांड हिंदुस्तान की आजादी का एक ऐसा पड़ाव था, जहां मालूम चलता है कि दमन और अन्याय का प्रतिरोध कभी भी हिंसा में बदल सकता है. चौरी-चौरा का जुलूस ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक तरह से किसानों के प्रतिरोध था, जहां गुस्साई और अनियंत्रित भीड़ अचानक हिंसक हो गई. इस घटना में भीड़ ने पुलिस स्टेशन में तैनात 23 पुलिसकर्मियों को आग के हवाले कर दिया. सभी पुलिसकर्मी अपनी-अपनी ड्यूटी पर तैनात थे. इसलिए उन्हें शहीद घोषित किया गया. इसके अलावा कई सत्याग्रही भी शहीद हो गए थे. इस वजह से भारत में 4 फरवरी को शहादत दिवस के रूप में भी मनाया जाता है.

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चौरी-चौरा कांड का इतिहास

महात्मा गांधी ने 1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन की शुरूआत की थी. इसी आंदोलन को लेकर गोरखपुर में 4 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा थाने के बाहर किसानों के साथ ग्रामीण एकत्र हुए थे. ऐसे में असहयोग आंदोलन और चौरी-चौरा कांड एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. वहीं, महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन से अंग्रेजी हुकूमत परेशान हो गई थी. बता दें कि असहयोग आंदोलन गांधी जी का अंग्रेजों के खिलाफ किया गया पहला जन आंदोलन था, जहां शहर से लेकर ग्रामीण जनता असहयोग आंदोलन में गांधी जी के साथ चल रही थी.

जानें क्यों हुआ था असहयोग आंदोलन

असहयोग आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ, जलियांवाला बाग, रोलट एक्ट और जनता के उत्पीड़न के खिलाफ स्वराज्य पाने के लिए शुरू किया गया था, जहां महात्मा गांधी ने प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों को सहयोग के बदले दी गई केसर-ए-हिंद की उपाधि को भी वापस लौटा दिया था. इस दौरान कई भारतीयों ने अपनी-अपनी पदवी वापस कर दी थी. इसके साथ ही कलकत्ता में कांग्रेस के अधिवेशन में 4 सितंबर 1920 को असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पारित हुआ, जहां निर्णय लिया गया कि सभी भारतीय स्कूल, कॉलेज और कोर्ट में न जाएं और न ही अंग्रेजों को कोई टैक्स दें. इस आंदोलन का शहरी और ग्रामीण इलाकों के साथ ही आदिवासियों का भी समर्थन मिला.

Gorakhpur News

वहीं, कांग्रेस ने 1921 में चौरी-चौरा में आंदोलन के लिए मंडल का गठन किया, जहां 3 जनवरी 1922 को लाल मोहम्मद सांई ने गोरखपुर कांग्रेस खिलाफत कमेटी के हकीम आरिफ को असहयोग आंदोलन का जिम्मा सौंपा, जहां 25 जनवरी 1922 को चौरी-चौरा में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मुंडेरा में कुछ लोगों से नोकझोंक हो गई. इसके बाद कांग्रेस ने मुंडेरा बाजार में एक जनसभा का आयोजन किया. बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे. इसी दौरान चौरी-चौरा के इंस्पेक्टर गुप्तेश्वर सिंह ने भगवान अहीर समेत कई लोगों को पकड़ कर जेल में डाल दिया. भीड़ की थानेदार से बहस हो गई, जहां गुस्साई भीड़ ने थाने में आग लगा दी. इस घटना में 23 पुलिसकर्मी जिंदा जल कर मर गए.

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गांधी जी को हुई थी 6 साल की सजा

चौरी-चौरा हिंसक घटना में 23 पुलिसकर्मियों के जिंदा जलकर मौत की घटना से क्षुब्ध होकर महात्मा गांधी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापस लेने का एलान कर दिया और उन्होंने 5 दिनों तक उपवास पर रहने का फैसला किया. गांधी जी ने कहा कि वह “आंदोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मौत भी सहने को तैयार हैं.” इस आंदोलन को वापस लेने पर गांधी जी की लोकप्रियता पर भी असर पड़ा. 10 मार्च 1922 को गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया. साथ ही जज ब्रूम फील्ड ने गांधी जी को 6 साल की कैद की सजा दी. हालांकि सेहत में गड़बड़ी की वजह से उन्हें 5 फरवरी 1924 को ही रिहा कर दिया गया.

चौरी-चौरा कांड में 19 लोगों को दी गई थी फांसी

चौरी-चौरा घटना के बाद अंग्रेजों ने 225 लोगों को गिरफ्तार किया, जहां 173 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई. हाईकोर्ट में अपील के बाद 19 लोगों को दोषी ठहराया गया. साथ ही उन्हें फांसी के फंदे पर लटका दिया गया. आरोप था कि इन लोगों ने अहिंसक आंदोलन को हिंसक बनाने के लिए लोगों को उकसाया था. साल 1973 में चौरी-चौरा शहीद स्मारक समिति बनाकर 12.2 मीटर लंबी मीनार बनाई गई. अंग्रेजों ने साल 1924 में चौरी-चौरा थाने को पुलिस स्मारक के तौर पर नामित कर दिया था. बाद में भारत सरकार ने शहीदों की याद में एक अलग शहीद स्मारक बनवाया. इसे ही हम आज मुख्य शहीद स्मारक के तौर पर जानते हैं.

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