आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दुविधा में राजनीतिक दल.
कोटे में सब-कोटा… सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की आंच अब सभी राजनीतिक दलों के दरवाजे तक पहुंच गई है. देर-सवेर इस पर विवाद तय है. ग्राउंड पर इस विवाद की आहट अभी से सुनाई पड़ने लगी है. बीजेपी और कांग्रेस जैसी बड़ी राजनीतिक पार्टियां कनफ्यूजन में हैं. दोनों ही पार्टियां अब तक अपना स्टैंड तय नहीं कर पाई हैं. बीजेपी के सहयोगी दलों की भी राय अलग-अलग है. चिराग पासवान सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ हैं. उन्होंने कहा है कि उनकी पार्टी को ये मंजूर नहीं है. चिराग तो इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने की बात कर रहे हैं. यूपी में बीजेपी के सहयोगी दलों के नेता ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद अदालत के फैसले के साथ हैं. वो तो पिछड़ों में भी कोटे के अंदर कोटा वाला आरक्षण चाहते हैं.
यही हाल कांग्रेस और इंडिया गठबंधन में उसकी सहयोगी पार्टियों का है. कांग्रेस में एक बड़ी बैठक भी हुई. पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी भी इस मीटिंग में थे पर कुछ फाइनल नहीं हो पाया. कांग्रेस में साउथ इंडिया के नेता सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ हैं. तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी और कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया अदालत के फैसले का स्वागत कर चुके हैं.
हिंदी पट्टी के कांग्रेस नेता इसके खिलाफ
दोनों नेताओं का कहना है कि दलितों के आरक्षण के कोटे में सब-कोटा होना चाहिए. मगर, हिंदी पट्टी के कांग्रेस नेता इसके खिलाफ हैं. वो इस मामले में मायावती की तरह सोच रहे हैं. उन्हें लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ जाने से उन्हें नुकसान हो सकता है. इसीलिए कांग्रेस ने इस स्थिति से निकलने के लिए अलग स्टैंड ले लिया है.
राहुल गांधी वाली बैठक में तय हुआ कि पहले जातिगत जनगणना की मांग की जाए. फिर जो डेटा आएगा, उसके बाद पार्टी फैसला करेगी. बीजेपी के कुछ दलित सांसदों ने आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. पंजाब मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बातचीत हुई. बैठक के बाद भी इस मुद्दे पर पार्टी का स्टैंड गोल-मोल रहा. बीजेपी अभी किसी जल्दबाजी में नहीं है.
इस मुद्दे पर दुविधा में है बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व
एक कहावत है… हड़बड़ी में ब्याह, कनपटी में सिंदूर. इसी फॉर्मूले पर बीजेपी ने अभी वेट एंड वॉच में बने रहने का फैसला किया है. आज की बैठक में बस इतना तय हुआ कि क्रीमी लेयर वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया जाएगा. मगर, SC-ST के आरक्षण कोटे में सब-कैटेगरी बनाने पर बीजेपी बाद में अपना रुख तय करेगी. पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व इस मुद्दे पर दुविधा में है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का देश की राजनीति पर बड़ा असर पड़ सकता है. इसे लेकर अभी से राजनीतिक गोलबंदी तेज हो गई है. सबसे पहले अदालत के फैसले को जान लेना जरूरी है, जिसकी वजह से पिछड़ों और दलितों की वोट वाली राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकारें SC-ST रिजर्वेशन के भीतर कोटा बनांकर अलग से आरक्षण दे सकती हैं.
हर राजनीतिक दल कर रहा है विरोध
इस फैसले के मुताबिक दलित आदिवासी के रिजर्वेशन में राज्य सरकार कैटेगरी बना सकती है. पंजाब में ऐसा ही किया गया है लेकिन कोटे के अंदर आरक्षण का कोटा तय करने के लिए डेटा तैयार करना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि OBC की तरह SC-ST रिजर्वेशन में भी क्रीमी लेयर बनाई जा सकती है. इसका विरोध कमोबेश हर राजनीतिक दल कर रहा है.
आज पीएम मोदी से मिलकर बीजेपी सांसदों ने भी इसे गैर जरूरी बताया है. कांग्रेस और बीजेपी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दुविधा में हैं. मामला नॉर्थ इंडिया बनाम साउथ इंडिया का भी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेंलगाना में चुनाव प्रचार के दौरान कोटे के अंदर आरक्षण का कोटा देने का समर्थन किया था. मगर, अब पार्टी स्टैंड नहीं ले पा रही है.
राजनीति बिखरने और दलित वोट बैंक टूटने का डर
पीएम मोदी से मिलने के बाद बृजलाल ने कहा कि हम सबने यही अपील की है कि आरक्षण को लेकर जो व्यवस्था लागू है, वही बनी रहे. पीएम के पास जो बीजेपी का डेलीगेशन गया था, उसने क्रीमी लेयर का कड़ा विरोध किया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सबसे कड़ा विरोध बीएसपी अध्यक्ष मायावती कर रही हैं. उन्हें लगता है, अगर आरक्षित व्यवस्था में कोटे के अंदर कोटा लागू किया गया तो फिर उनकी राजनीति बिखर सकती है. ऐसा होने पर उनका दलित वोट बैंक टूट सकता है.
इसीलिए उन्होंने अभी से इसके खिलाफ ग्राउंड पर काम शुरू कर दिया है. उन्होंने पीएम मोदी से मिलकर बीजेपी सांसदों के अदालत के फैसले का विरोध करने का स्वागत किया है. उन्होंने कहा, अगर केंद्र सरकार सच में इस मामले को लेकर गंभीर हैं तो उसे एक कदम और बढ़ना होगा. मायावती चाहती हैं कि सरकार अब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले के खिलाफ संविधान संशोधन बिल लाए.
कोटे में कोटा वाला रिजर्वेशन का फॉर्मूला लागू कर नीतीश कुमार बिहार में सालों से सत्ता में बने हुए हैं. ओबीसी को उन्होंने पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग में बांट रखा है. इसी तरह एससी समाज को भी नीतीश कुमार ने दलित और दलित कैटेगरी में बांट दिया है. ऐसा करके उन्होंने अपने लिए नया वोट बैंक बना रखा है. इसके दम पर वो दिल्ली से लेकर पटना तक प्रासंगिक बने हुए हैं.
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