वक्फ बिल में बड़े बदलाव से यूपी में पड़ेगा ज्यादा असर
मोदी सरकार वक्फ अधिनियम में बड़े बदलाव करने की दिशा में कदम उठाने के लिए कई बड़े संशोधन का फैसला किया है. केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री किरेन रिजिजू ने वक्फ एक्ट 1995 में संशोधन के लिए वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 और मुसलमान वक्फ एक्ट 1923 को समाप्त करने के लिए मुसलमान वक्फ (रिपील) बिल 2024 को लोकसभा में पेश किया है. मोदी सरकार वक्फ से जुड़े दोनों बिल को संसद से पास करने और उसे कानूनी अमलीजामा पहनाने में कामयाब रहती है तो सबसे बड़ा असर उत्तर प्रदेश पर पड़ेगा.
देश में सबसे ज्यादा वक्फ की संपत्तियां उत्तर प्रदेश में हैं. इसके अलावा यूपी में वक्फ बोर्ड शिया और सुन्नी के बीच बंटा हुआ है. यूपी में सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास 1,24,735 वक्फ हैं. इस तरह सुन्नी वक्फ कुल 2 लाख 10 हजार 239 संपत्तियां हैं. शिया वक्फ बोर्ड के पास 7275 वक्फ हैं, जिसके तहत 15 हजार 386 संपत्तियां हैं. यूपी में सुन्नी वक्फ बोर्ड की सबसे ज्यादा संपत्तियां मुरादाबाद में हैं तो शिया वक्फ बोर्ड के पास लखनऊ में सबसे अधिक संपत्ति है. यूपी में सबसे अधिक वक्फ संपत्तियों हैं तो उससे जुड़े ढेरों विवाद भी हैं.
क्या होता है वक्फ
वक्फ अरबी भाषा के वकुफा शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है ठहरना. वक्फ का मतलब है ट्रस्ट-जायदाद को जन-कल्याण के लिए समर्पित करना. इस्लाम में वक्फ उस संपत्ति को कहते हैं, जो अल्लाह के नाम पर जन-कल्याण के लिए दान कर दी जाती है. एक बार संपत्ति वक्फ हो गई तो फिर उसे मालिक भी वापस नहीं ले सकता है. वक्फ भी दो तरह की होती हैं, एक वक्फ अलल औलाद और दूसरा अलल खैर. वक्फ अलल औलाद का मतलब यह वक्फ संपत्ति परिवार के ही किसी सदस्य के लिए होगी. उस वक्फ का मुतवल्ली (प्रबंधक) का पद परिवार के सदस्य के पास ही रहेगा, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहेगा.
दूसरा वक्फ अलल खैर, इसका मतलब यह सार्वजनिक वक्फ है. इस संपत्ति को जनता के लिए वक्फ किया गया है. इसकी देखभाल की जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड की होती है, जिसके देखभाल के लिए वक्फ बोर्ड एक मुतव्वली (प्रबंधक) नियुक्त करता है. इन संपत्तियों का उपयोग व्यवसाय और मदरसों के लिए किया जा रहा है. इससे होने वाली आमदनी को मुसलमानों के विकास पर खर्चा किया जा सकता है.
वक्फ संपत्तियों का मालिक नहीं होता बोर्ड
ऐसे में वक्फ बोर्ड, वक्फ संपत्तियों का मालिक नहीं, बल्कि देख-रेख करने का जिम्मा होता है. वह किसी भी संपत्ति का मालिक नहीं होता, बल्कि इस्लाम धर्म के अनुसार धार्मिक क्रिया-कलापों के लिए दान की गई संपत्ति की देखरेख करता है. बोर्ड यह सुनिश्चित करता है कि वक्फ संपत्तियों का उपयोग धार्मिक और चैरिटेबल के कामों के लिए हो रहा है.
उत्तर प्रदेश समेत देश के सभी जगहों पर जो भी वक्फ की संपत्तियां मौजूदा समय में हैं, उसमें से 80 फीसदी संपत्तियां आजादी से पहले की हैं. साल 1947 के बाद जब जमींदारी उन्मूलन कानून आया, उस समय मुसलमानों ने काफी संपत्ति वक्फ कर दी गई थी. इसके बाद मस्जिद और इमामबाड़े के लिए संपत्तियां वक्फ होती रही हैं.
आजादी के बाद देश में पहला वक्फ अधिनियम 1954 में पारित किया गया था. इसके वक्फ में पहला संशोधन 1995 में पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार किया गया. वक्फ एक्ट 1954 में संशोधन किया गया और नए-नए प्रावधानों को जोड़कर वक्फ बोर्ड को काफी शक्तियां देने का काम किया. इसके बाद साल 2013 में दूसरी बार वक्फ एक्ट में संशोधन कर उसे और अधिक ताकतवर बनाया गया.
मोदी सरकार कर रही बदलाव
मोदी सरकार अब वक्फ एक्ट में तीसरा संशोधन करने के लिए दो विधेयक लेकर आई है. वक्फ विधेयक 1954 को समाप्त करके उसकी जगह नया बिल लाई है तो 1995 के वक्फ एक्ट में भी संशोधन कर रही है. मोदी सरकार इस वक्फ संशोधित विधेयक के जरिए वक्फ बोर्डों को मिले असीमित अधिकारों पर अंकुश लगाने की तैयारी में है.
संशोधन के बाद बोर्ड की ओर से किसी जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित करने से पहले उसका सत्यापन कराना होगा. राज्यों के बोर्ड की ओर से दावा की गई विवादित जमीनों का नए सिरे से सत्यापन भी किया जाएगा. वक्फ बोर्ड के गठन (संरचना) को लेकर भी बदलाव किए जा रहे हैं, जिसमें महिलाओं और गैर-मुस्लिमों को भागीदारी देने के लिए प्रावधान रखा गया है.
यूपी में पड़ेगा सबसे ज्यादा असर
मुस्लिम समुदाय के लोग और विपक्षी दल वक्फ बिल में संशोधन को लेकर मोदी सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर रहे हैं. मुस्लिम संगठन और उलेमाओं का कहना है कि मोदी सरकार वक्फ की संपत्तियों को अपने अधिकार में लेने के लिए बदलाव कर रही है. यूपी में सुन्नी और शिया वक्फ बोर्ड के पास उनकी कितनी संपत्तियों पर अवैध कब्जा है, इसका सरकार के पास कोई लेखा-जोखा नहीं है. सुन्नी और शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के मुताबिक, राज्य सरकार वक्फ की संपत्तियों और उनके विवादों की सूची बना रही है, जिसके लिए सर्वे का काम भी किया गया है.
वक्फ बोर्ड यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है कि वक्फ संपत्ति से हुई आय का उपयोग मुस्लिम समुदाय के विकास के लिए किया जाए. कानून में सबसे अहम यह है कि वक्फ बोर्ड की संपत्तियों से जुड़े विवाद किसी कोर्ट में नहीं ले जाया जा सकेगा. उनकी सुनवाई ट्राइब्यूनल में ही होगी. वक्फ बोर्ड से जुड़ी वक्फ संपत्तियों में विवाद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्तमान में 65 हजार से अधिक मामले वक्फ ट्रिब्यूनल में लंबित है.
उत्तर प्रदेश में वक्फ से संबंधित 26 मामले इलाहाबाद हाईकोर्ट की इलाहाबाद बेंच में है तो 71 मामले इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में लंबित हैं. इस तरह वक्फ ट्रिब्यूनल के पास 308 मामले लंबित हैं. इनमें ज्यादातर मामले कब्जे को लेकर हैं. मोदी सरकार के इस बदलाव के बाद उत्तर प्रदेश में शिया और सुन्नी दोनों ही वक्फ की संपत्तियों पर असर पड़ेगा.
मुरादाबाद में सुन्नी, लखनऊ में शिया वक्फ
उत्तर प्रदेश में सुन्नी वक्फ बोर्ड की सबसे ज्यादा संपत्तियां मुरादाबाद में हैं तो शिया वक्फ बोर्ड के पास सबसे ज्यादा संपत्तियां लखनऊ में हैं. सुन्नी वक्फ बोर्ड की मुरादाबाद में 10,386 संपत्तियां हैं, जबकि शिया वक्फ बोर्ड की मुरादाबाद में 3603 संपत्तियां हैं. इसके बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड की सहारनपुर में 9812, आगरा में 8436, मेरठ में 8215 और बाराबंकी में 8228 संपत्तियां हैं. वहीं, शिया वक्फ बोर्ड के पास 3603 संपत्तियां लखनऊ में है. इसके बाद शिया वक्फ बोर्ड की मुजफ्फरनगर में 1260, फर्रुखाबाद में 1203, जौनपुर में 1156 और गाजीपुर में 962 संपत्तियां है.
सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास यूपी में प्रमुख वक्फ संपत्तियों में टीले वाली मस्जिद, लखनऊ जामा मस्जिद, नादान महल मकबरा, शाही अटाला मस्जिद जौनपुर, दरगाह सैयद सालार मसूद गाजी बहराइच,फतेहपुर सीकरी की सलीम चिश्ती का मकबरा और वाराणसी धरहरा मस्जिद है.
वहीं, शिया वक्फ बोर्ड के पास लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा, रामपुर का इमामबाड़ा किला ए मुअल्ला, मकबरा जनाब-ए-आलिया, इमामबाड़ा खासबाग, फैजाबाद में बहू बेगम का मकबरा, बिजनौर का दररगाहे आलिया नजफ-ए-हिंद और आगरा का मजार शहीद-ए-सालिस शामिल हैं. यूपी में शिया वक्फ संपत्तियों का बड़ा हिस्सा मौलाना कल्बे जव्वाद के पास हैं तो सुन्नी वक्फ की संपत्तियां मदनी बंधुओं के पास है.
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