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बांग्लादेश की हिंसा, शरणार्थी, घुसपैठ… क्या पश्चिम बंगाल के लिए बन जाएगा नासूर? जानिए क्या हैं चुनौतियां | Bangladesh’s violence, refugees, infiltration… will it become a problem for West Bengal? Know what are the challenges

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Aug 6, 2024    150840 views     Online Now 419

शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद भी बांग्लादेश हिंसा की आग में जल रहा है. बांग्लादेश से सटे भारत के पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और असम जैसे राज्यों में हिंसा की चिंगारी पहुंचने की आशंका और उसके दुष्प्रभाव को लेकर पूरा देश चिंतित है. दिल्ली में केंद्र सरकार ने सर्वदलीय बैठक के माध्यम से सभी राजनीतिक दलों को स्थिति से अवगत कराया और बांग्लादेश को लेकर एक राय बनाने की कोशिश की है, वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सभी राजनीतिक दलों और समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों को शांति, सांप्रदायिक सौहार्द और सयंम बरतने की अपील की है.

बीएसएफ के महानिदेशक ने खुद भारत-बांग्लादेश की सीमा पेट्रोपोल में जाकर स्थिति की जायजा लिया है. बीएसएफ हाईअलर्ट पर है. कुल मिलाकर बांग्लादेश में हिंसा की आग की चिंगारी भारत तक नहीं पहुंचे. इसकी हर तरफ से कोशिश की जा रही है, लेकिन जब पड़ोसी के घर में आग लगी हो तो उसका प्रभाव निश्चित रूप से कुछ न कुछ हमारे घर पर भी पड़ना स्वाभाविक है.

भारत और बांग्लादेश के बीच लगभग 4096 किलोमीटर सीमा है. इसमें केवल पश्चिम बंगाल बांग्लादेश के साथ 2,216 किलोमीटर की सीमा साझा करती है. साथ ही बांग्लादेश की भाषा, संस्कृति, बोलचाल, खानपान और रहन सहन सभी एक जैसा ही हैं. पश्चिम बंगाल के अतिरिक्त भारत के दो अन्य राज्य त्रिपुरा और असम में भारी संख्या में एक ही मूल और एक ही भाषा बोलने वालों का वास है.

ऐसे में बांग्लादेश के लोगों को इनसे आसानी से मिल जाने की संभावना बनी रहती है. इसलिए पश्चिम बंगाल के साथ इन दो राज्यों पर भी बांग्लादेश की हिंसा का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ने की संभावना हैं. आइए समझते हैं कि अस्थिर बांग्लादेश, हिंसा की आग में जलते बांग्लादेश और इस्मालिक कट्टरपंथी पार्टी जमात-ए-इस्लामी और पाकिस्तान और चीन समर्थित पार्टी बीएनपी के बांग्लादेश में हावी होने पर पश्चिम बंगाल सहित भारत के इन राज्यों के सामने क्यों चुनौतियां हैंः-

शरणार्थियों की बाढ़ के साथ आएगी चुनौतियां

शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से ही अल्पसंख्यकों हिंदू, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैनियों एवं आवामी लीग के समर्थकों पर अत्याचार शुरू हो गए हैं. हिंसा के दौरान 14 पुलिसकर्मियों की हत्या की गई है. इनमें 9 हिंदू हैं. हिंदुओं की दुकानें लूटी जा रही है. मंदिर तोड़े जा रहे हैं. इस्कॉन पर हमले हुए हैं. हिंदू परिवारों को चुन-चुन कर निशाना बनाया जा रहा है. आवामी लीग के नेताओं को हिरासत में लिया जा रहा है.

स्वाभाविक है इस हिंसा के बाद बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदू अब भारत को आश्रय स्थल के रूप में देख रहे हैं. सूत्रों के अनुसार आवामी लीग के कई स्थानीय नेता बांग्लादेश की सीमा पार कर भारत की सीमा में प्रवेश कर चुके हैं. भारत और बांग्लादेश की सीमा का एक बड़ा हिस्सा नदी का या फिर बिना तार के बाड़ का है. ऐसी स्थिति में बड़ी संख्या में शरणार्थियों के भारत में प्रवेश करने की संभावना है. पश्चिम बंगाल में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने दावा किया है कि करीब एक करोड़ शरणार्थी बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल आएंगे. राज्य इसके लिए तैयार रहे.

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बता दें कि यह पहली बार नहीं है कि जब बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और असम में शरणार्थियों की बाढ़ आई थी. इन राज्यों ने 1947 में भारत के विभाजन के बाद से कई बार शरणार्थियों का पलायन देखा है. पहला बड़ा पलायन देश में स्वतंत्रता के समय विभाजन के दौरान हुआ था, जब सांप्रदायिक हिंसा से बचने के लिए लाखों हिंदू पूर्वी पाकिस्तान से पश्चिम बंगाल भाग गए थे. दूसरी लहर 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान आई थी, जब पाकिस्तानी सेना द्वारा किए गए नरसंहार से बचने के लिए लगभग एक करोड़ लोग सीमा पार कर गए थे.

तीसरी लहर 1975 में बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद आई थी, जब उनके समर्थकों और धर्मनिरपेक्ष लोगों ने पश्चिम बंगाल में शरण ली थी. चौथी लहर 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद आई, जब बांग्लादेश में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे और अब फिर शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद शरणार्थियों की बड़ी खेप आने के लिए तैयार है. शरणार्थियों के आने से राज्य की राजनीति, जनसांख्यिकी और संस्कृति पर असर पड़ेगा, लेकिन इसके साथ ही कई बड़ी चुनौतियां भी आएंगी. राज्य में पहले से ही उच्च जनसंख्या घनत्व है, प्रति वर्ग किलोमीटर 1,000 से अधिक लोग रहते हैं. शरणार्थियों के आने से यह बोझ और बढ़ जाएगा, जिससे सार्वजनिक सेवाओं, बुनियादी ढांचे और संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा.

घुसपैठ में इजाफे की आशंका

शरणार्थियों के साथ-साथ बांग्लादेश से सटे राज्यों को भी घुसपैठ का सामना करना पड़ेगा. बांग्लादेश से पहले ही होने वाले घुसपैठ पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और असम जैसे राज्यों के लिए चिंता का विषय है. घुसपैठ की वजह से पश्चिम बंगाल की सीमावर्ती जिलों मुर्शिदाबाद, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर, उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, नदिया यहां तक की कोलकाता की डेमोग्राफी बदल गई है और मुस्लिम आबादी में तेजी से इजाफा हो रहा है.

साल 2011 की जनसंख्या के अनुसार पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी 27 फीसदी है और एक आंकड़े के अनुसार यह अब बढ़कर 34 फीसदी हो गया है. अब बांग्लादेश में हिंसा के बाद घुसपैठ के बाद मुस्लिमों की आबादी में तेजी से इजाफा होने के आसार हैं. इससे डेमोग्राफी में और भी बदलाव होगा और इसके साथ ही चुनौतियां और तनाव भी बढ़ने की आशंका है.

सांप्रदायिक तनाव और हिंसा की आशंका

बांग्लादेश मामलों के विशेषज्ञ पार्थ मुखोपाध्याय बताते हैं कि बांग्लादेश में हिंसा और अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार से पश्चिम बंगाल के लोगों में काफी आक्रोश है. टेलीविजन चैनल से लेकर सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो की भरमार हैं, जिनसे यह दिख रहा है कि वहां अल्पसंख्यकों पर किस तरह का अत्याचार हो रहा है. इससे पश्चिम बंगाल में रहने वाले हिंदू संप्रदाय के लोग आक्रोशित हैं.

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विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों ने केंद्र सरकार से मांग की है कि हिंदुओं पर हो रहे आक्रमण को रोकने के लिए केंद्र सरकार पहल करे और इस मामले में हस्तक्षेप करें. अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार से पश्चिम बंगाल का संप्रदायिक सद्भाव बिगड़ने के आसार हैं. पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी की सरकार के सामने यह बहुत बड़ी चुनौती है कि वह राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव को बिगड़ने नहीं दे.

कट्टरपंथी शक्तियों का बढ़ सकता है उत्पात

रामनवमी के अवसर पर पश्चिम बंगाल के हावड़ा, हुगली, मुर्शिदाबाद और मालदा जैसे इलाकों में कट्टरपंथी ताकतें हिंसा का तांडव मचा चुकी है. ऐसे में जब बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी सहित मुस्लिम कट्टरपंथी शक्तियों की ताकत बढ़ी है. पश्चिम बंगाल में भी ये शक्तियां उत्पाद मचा सकती है. हालांकि पश्चिम बंगाल पुलिस पूरी तरह से सतर्क है और राज्य की सीएम ममता बनर्जी ने भी सभी से सयंम बरतने की अपील की है, लेकिन कट्टरपंथी ताकतों की एक चिंगारी पश्चिम बंगाल को भी हिंसा की आग में ढकेल सकता है. ऐसे में इन ताकतों पर कड़ी निगरानी की जरूरत है.

जेल से कैदी भागे, बंगाल का बढ़ा खतरा

बांग्लादेश में हिंसा के दौरान पांच जेलों को तोड़ दिया गया है. केवल शेरपुर जेल से कम से 518 कैदी भाग गये हैं. इनमें से 100 ऐसे कैदी थे, जिन्हें मौत की सजा दी गयी थी. भारत-बांग्लादेश सीमा से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित इस जेल से कैदियों की भागने के बाद भारत के लिए खतरा बढ़ गये हैं. हालांकि बीएसएफ और भारत सरकार ने सीमा पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है, लेकिन भारत और बांग्लादेश की सीमा की वर्तमान हालत में इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि जेलों से भागे अपराधी और आतंकी भारत की ओर रूख करेंगे.

पार्थ मुखोपाध्याय कहते हैं कि जेल से भागे कैदियों से सबसे ज्यादा खतरा पश्चिम बंगाल को है. भारत में यदि ये आतंकी और अपराधी प्रवेश कर जाते हैं कि राज्य की सुरक्षा के साथ-साथ पूरे देश के लिए ये एक बड़ा खतरा होगा. जेएमबी आतंकियों को पहले से ही पाकिस्तान का सहयोग मिलता रहा है और खगड़ागढ़ सहित कई इलाकों में बम विस्फोट में इनके हाथ पाये गये हैं. अब पाकिस्तान की मदद से ये आतंकी देश में और भी अस्थिरता पैदा करने की कोशिश करेंगे.

रोहिंग्या के घुसपैठ की आशंका बढ़ी

म्यांमार से भाग कर आए रोहिंग्या को हसीना सरकार ने कॉक्स बाजार के शिविर में रखा था. इसके बावजूद छिटपुट रोहिंग्या का भारत आना जारी था. केवल पश्चिम बंगाल ही नहीं, बल्कि भारत के विभिन्न शहरों और महानगरों में रोहिंग्या की गिरफ्तारी होती रही है. अब जब बांग्लादेश में एक अस्थिर और कट्टरपंथी पार्टियों की सरकार बनने जा रही है. इससे रोहिग्या की देश में घुसपैठ की आशंका और भी बढ़ गयी है और इससे पश्चिम बंगाल की स्थिति और भी विकट होगी.

ममता बनर्जी की बढ़ी चुनौती

बांग्लादेश में हिंसा और शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट के बाद राज्य की ममता बनर्जी की सरकार की चुनौती और भी बढ़ेगी. ममता बनर्जी के लिए राज्य में शांति और सद्भाव बनाए रखना और बांग्लादेश की आग पश्चिम बंगाल तक नहीं पहुंच पाए, इसे रोकना सबसे बड़ी चुनौती है. इस कारण ही पहले बांग्लादेश के शरणार्थियों के लिए राज्य का दरवाजा खोलने का बयान देने वाली ममता बनर्जी अब पूरी तरह से सतर्क हैं और राज्य में शांति और सद्भाव बनाये रखने की अपील कर रही हैं और ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने भी अपना सुर नरम करते हुए कि केंद्र सरकार जो भी फैसला लेती है. पार्टी उसके साथ है, लेकिन वह ममता बनर्जी को विश्वास में लेकर कदम उठाए.

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सीएए और एनआरसी का मुद्दा फिर गरमाएगा

बांग्लादेश से आये शरणार्थियों और घुसपैठ के बाद राज्य में फिर से सीएए और एनआरसी का मुद्दा गरमायेगा. ममता बनर्जी अभी तक सीएए का विरोध करती रही हैं, लेकिन सीएए के प्रावधान में पड़ोसी देश के अत्याचारित हिंदु, बौद्ध, सिख सहित अल्पसंख्यकों को शरण और नागरिकता देने की बात कही गयी है. ऐसे में अत्याचार के शिकार होकर आए अल्पसंख्यक शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने को लेकर भी दवाब बढ़ेगा. ममता बनर्जी अभी इसका विरोध कर रही हैं, लेकिन इस मुद्दे पर ममता बनर्जी सवालों से घिर सकती हैं और इसे लेकर बीजेपी ममता सरकार पर दवाब बना सकती है.

अर्थव्यवस्था और कारोबार पर पड़ेगा असर

बांग्लादेश में हिंसा और अस्थिर सरकार से भारत और बांग्लादेश के बीच होने वाले व्यापार पर बड़ा असर पड़ने की संभावना है. बांग्लादेश और भारत खास कर पश्चिम बंगाल की सीमाओं से बड़ी संख्या में आयात-निर्यात होता है. हिंसा की वजह से इन पर प्रभाव पड़ेगा. हसीना सरकार के दौरान बांग्लादेश रेडीमेड गार्मेंट्स के एक बड़े बाजार के रूप में उभरा था. कोलकाता के मटियाब्रुज और मंगलाहाट के बाजार में बड़ी संख्या में रेडीमेड गार्मेंट्स आते थे. इस हिंसा से उन पर भी प्रभाव पड़ेगा. इसके अतिरिक्त मछली, चावल, जूट सहित अन्य उत्पादों के आयात-निर्यात भी प्रभावित होंगे. और इनका साधी असर दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा.

चीन और पाकिस्तान का खतरा बढ़ा

बांग्लादेश में आवामी लीग की सरकार भारत और चीन के बीच समान दूरी बनाए रखने पर विश्वास करती थी, लेकिन बीएनपी और इस्लामिक संगठनों के हाथ में देश की सत्ता जाने से चीन और पाकिस्तान के प्रति उनकी नजदीकी बढ़ सकती है. बांग्लादेश चीन और पाकिस्तान के बीच एक बफर राष्ट्र का काम करता था, लेकिन बांग्लादेश में बदलाव से सीधे चीन और पाकिस्तान के हस्तक्षेप का खतरा बढ़ सकता है. इससे पश्चिम बंगाल सहित पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवादी और अलगाववादी ताकतों को बल और मदद मिल सकती है. इससे देश की संप्रभुता और अखंडता को लेकर भी चुनौती बढ़ सकती है.

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