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झीलों और किलों का शहर है अलवर, महाभारत काल से भी है कनेक्शन | History of Alwar city of rajasthan Places to Visit Sariska Tiger Reserve Bhangarh Fort

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Jul 29, 2024    150845 views     Online Now 499

अलवर भारत के सबसे पुराने शहरों में एक माना जाता है. कहा जाता है पांडवों ने अपने वनवास के आखिरी दिन कुछ समय के लिए अलवर में गुजारे थे. इस शहर पर भी राजस्थान के दूसरे शहरों की तरह ही राजपूतों का राज रहा है. अलवर शहर राजस्थान की प्रमुख अरावली के पहाड़ों के बीच बसा हुआ है.

मानसून के मौसम में इन पहाड़ों की हरियाली देखते ही बनती है. इस शहर में देखने के लिए खूबसूरत महल, किले, बावड़ी मौजूद हैं. अरावली के पहाड़ों के बीच मौजूद नेशनल पार्क में जंगली जानवर मौजूद हैं. इसके अलावा अलवर में बहुत कुछ मौजूद है पर्यटकों के देखने के लिए. एक नजर डालते अलवर के दर्शनीय स्थलों पर.

बाला किला

इस किले का निर्माण काल 10वीं शताब्दी का माना जाता है, इसके निर्माण में मिट्टी और संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है. ये अरावली पहाड़ पर बना हुआ है. इस किले का डिजाइन में जालीदार खिड़कियों का इस्तेमाल किया गया है. इस किले में आने-जाने के लिए 6 दरवाजे बने हुए है. जिनको जय पोल, सूरज पोल, लक्ष्मण पोल, चांद पोल, कृष्ण पोल, अंधेरी गेट के नाम से जाना जाता है. इस किले को पर्यटक सुबह 6 बजे से शाम 4.30 बजे देख सकते हैं. बुधवार को ये किला बंद रहता है.

अलवर सिटी पैलेस

इस शहर का निर्माण साल सन 1793 में राजपूत राजा बख्तावर सिंह ने करवाया था. सिटी पैलेस को राजपूताना और इस्लामी वास्तुकला में बनाया गया था. इस पैलेस का मुख्य आकर्षण कमल के फूलों के आकार में सुंदर मार्बल के मंडप है. भारत में रियासत काल के खत्म होने और आजाद भारत में इस पैलेस में अब राज्य सरकार के कार्यालय बने हुए है. इस पैलेस को आसानी से देखा जा सकता है.

म्यूजियम

राजपूत राजाओं की जिंदगी को करीब से जानने-समझने वालों के लिए ये म्यूजियम देखना दिलचस्प है. इस म्यूजियम में राजपूत राजाओं की जिंदगी के बारे में बहुत कुछ दिखाया गया है. पर्यटक इस म्यूजियम में मुगल बादशाह बाबर की जिंदगी से जुड़ी चीजों को देख सकते हैं, इसके अलावा ऐतिहासिक पेंटिंग, राजाओं के द्वारा उपयोग किए जाने वाले हथियार भी मौजूद हैं.

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महारानी की छतरी

राजा बख्तावर सिंह और उनकी पत्नी ​​रानी मूसी की याद में बनाई गई इस समाधि स्थल को देख सकते हैं. रानी मूसी की छतरी का निर्माण इंडो-इस्लामिक शैली में किया गया है. इस छतरी के स्तंभों और गुंबद का निर्माण मार्बल से किया गया है. वहीं भवन कि दीवारों में धौलपुर के लाल पत्थर का उपयोग किया गया है. छतरी के अंदर राजा-रानी की मूर्तियां बनी हैं. इस छतरी के पास इसके आकर्षण को बढ़ाने के लिए एक मानव निर्मित झील का निर्माण किया गया है.

फ़तेह जंग का मकबरा

खूबसूरत गुंबदों और मीनारों से बना मुगल बादशाह शाहजहां के मंत्री फंतेह जंग का मकबरे का निर्माण इस्लामी वास्तुकला में किया गया है. इस मकबरे को इसके बड़े गुंबद की वजह से दूर से ही देखा जा सकता है.

पुरजन विहार

राजपूत राजा श्योदान सिंह ने इसका निर्माण सन 1868 में कराया था. इस स्थल को बनाने के पीछे राजा श्योदान सिंह का उद्देश्य राजस्थान की झुलसाने वाले गर्मी के मौसम से बचने के लिए किया गया था. इस उद्यान में एक मनोरम स्थान है, जिसे स्थानीय लोग अलवर का शिमला बोलते हैं. मई-जून की झुलसाने वाली गर्मी के दिनों में यहां बैठकर तेज धूप से बचा जाता था.

भानगढ़ का किला

17वी सदी में राजा माधो सिंह के द्वारा बनवाया गया ये किला पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है. इस किले के बारे में कई कहावतें प्रचलित हैं जिनमें से प्रमुख कहावत है कि इस किले को एक जादूगर ने श्राप दिया था. जिसके बाद से ये किला भूतों के गढ़ यानी की देश का सबसे बड़ा भूतिया किले के तौर पर मशहूर हो गया है. सरिस्का नेशनल पार्क से 50 किमी की दूरी पर स्थित इस किले को दिन की रोशनी में ही देखा जा सकता है. सूर्यास्त के बाद इस किले में जाने की मनाही वाले बोर्ड पर्यटन विभाग ने लगा रखे हैं.

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गर्भाजी का झरना

अलवर घूमने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों में गर्भाजी का झरना देखना किसी रोमांच से कम नहीं है. अरावली की चट्टानों से गिरे हुए पानी की धारा को देखने पर मन को बहुत सुकून मिलता है. यह झरना प्रकृति प्रेमियों की पहली पसंद है.

सिलिसर झील

अलवर शहर से करीब 15 किमी दूर जंगल में अरावली पहाड़ों के बीच एक शांत जगह है. इस सिलिसर झील के पास ही अलवर के राजा विनय सिंह ने अपनी पत्नी रानी शिला सिंह के लिए 1845 में इस महल का निर्माण करवाया था. इस महल के निर्माण का उद्देश्य शिकार के दौरान उपयोग किया जाता था.

आज इस महल को राजस्थान के पर्यटन विभाग ने लीज पर लेकर होटल बना दिया है. महल के पास बनी झील में यहां आने वाले पर्यटक नौका विहार का मजा उठा सकते हैं. सर्दियों के मौसम में इस सिलिसर झील का पानी प्रावसी पक्षियों के रहने-खाने का घर बन जाता है. जहां विदेशी पक्षियों की कई प्रजातियों को पास से देखने का मौका मिलता है.

सरिस्का नेशनल पार्क

इस पार्क में खूबसूरती पर्यटकों का दिल जीत लेती है. इस नेशनल पार्क की हरियाली, घना जंगल, पहाड़ और चट्टानों के बीच से गुजरते ऊंचे-नीचे रास्ते के बीच टाइगर को देखने का अपना ही मजा है. इस नेशनल पार्क में टाइगर के अलावा कई जंगली जानवरों और पक्षियों के भी देखा जा सकता है.

मोती डूंगरी

अलवर के शाही परिवार के रहने के लिए इस महल का निर्माण 1882 में किया गया था. ये महल 1928 तक शाही परिवार के रहने की जगह थी. साल 1928 में अलवर के महाराजा जय सिंह ने अपने इस पुराने महल को तोड़कर नया महल बनाया. जो अपने खूबसूरत बगीचे और भवन के लिए जाना जाता है.

नीमराना की बावड़ी

अलवर के नीमराना के महल के पास ही बनी ऐतिहासिक बावड़ी है. इस बावड़ी में नक्काशीदार 9 मंजिले हैं और हर मंजिल की ऊंचाई करीब 20 फीट है. ये बावड़ी अपनी राजपूताना वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है.

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तिजारा की लाल मस्जिद

अलवर जिले के तिजारा कस्बे में बनी इस मस्जिद का निर्माण धौलपुर के लाल पत्थर से किया गया था. लाल पत्थर से निर्मित होने के कारण ये मस्जिद लाल मस्जिद के नाम मशहूर है. इस लाल मस्जिद को सुबह से शाम तक देखा जा सकता है.

राजा भर्तृहरि भवन

मालवा शासक राजा भर्तृहरि अध्यात्म की तालाश में अलवर के जंगलों में पहुंच गए थे. जंगल में रहकर ही राजा भर्तृहरि ने अपनी तपस्या की थी. राजा भर्तृहरि की तपस्या वाले स्थान पर ही इस भवन का निर्माण हुआ था, जिसे पैनोरमा भवन के नाम से जाना जाता है. अलवर आने वाले पर्यटकों के लिए इस भवन के देखे बिना उनकी यात्रा अधूरी सी रह जाती है.

शहीद हसन खान मेवाती भवन

मेवात के शासक महान देशभक्त हसन खान मेवाती के मुगल बादशाह बाबर के खिलाफ खानवा की लड़ाई और अलवर महाराजा महाराणा सांगा के बारे में पूरी गाथा को बयान किया गया है. इस भवन में हसन खान मेवाती की एक आदमकद मूर्ति लगी हुई है.

कैसे पहुंचे अलवर ?

सड़क मार्ग- अलवर राजधानी दिल्ली से करीब 180 किमी की दूरी पर स्थित है. दिल्ली के सरायकाले खां बस अड्डे और धौलाकुंआ से सीधे हरियाणा और राजस्थान सड़क परिवहन की बस से आसानी से पहुंचा जा सकता है. वहीं कोटा, सवाई माधौपुर, और मध्य प्रदेश के श्योपुर जाने वाली निजी बसों से भी अलवर पहुंचा जा सकता है. इसके अलावा प्राइवेट टैक्सी से भी अलवर 2 से 3 घंटे में आसानी से पहुंच सकते हैं.

रेल मार्ग : अलवर के लिए कई भी हैं, जिनमें से प्रमुख है दिल्ली-अजमेर शताब्दी एक्सप्रेस, जिससे आसानी से 2 घंटे में अलवर पहुंच सकते हैं.

हवाई मार्ग : अलवर पहुंचने के लिए सबसे नजदीक का एयरपोर्ट दिल्ली का इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट है.

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