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क्या हत्या के केस में उम्रकैद काट रहे कैदी को सरकार कभी भी रिहा कर सकती है? पूर्व BJP विधायक की रिहाई चर्चा में | Former BJP mla udaybhan karwariya released Can State government release prisoner serving life imprisonment in murder case

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Jul 25, 2024    150848 views     Online Now 169
क्या हत्या के केस में उम्रकैद काट रहे कैदी को सरकार कभी भी रिहा कर सकती है? पूर्व BJP विधायक की रिहाई चर्चा में

आजीवन कैद की सजा काट रहे पूर्व BJP विधायक उदयभान करवरिया को रिहा कर दिया गया है.

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 2014 से आजीवन कैद की सजा काट रहे पूर्व BJP विधायक उदयभान करवरिया को रिहा कर दिया गया है. समाजवादी पार्टी के विधायक रहे जवाहर पंडित की हत्या के मामले में उन्हें दोषी करार दिया गया था. योगी सरकार की पैरवी पर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करके उदयभान की रिहाई का आदेश दिया. यह आदेश 19 जुलाई को जारी किया गया था.

हत्या जैसे जघन्य अपराध के बाद उदयभान की रिहाई पर सवाल उठ रहे हैं. ऐसे में जानना जरूरी है कि क्या है राज्यपाल को कैदी की रिहाई की पावर देने वाला अनुच्छेद 161, क्या उम्रकैद की सजा काट रहे कैदी को सरकार कभी भी रिहा कर सकती है, इस मामले में कैदियों के पास क्या हैं अधिकार?

क्या कहता है अनुच्छेद 161, कितनी मिलती हैंशक्तियां ?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 161 कहता है, राज्यपाल के पास यह शक्ति है कि वो किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए कैदी की सज़ा को माफ कर सकते हैं, राहत दे सकते हैं. इसके अलावा उनके पास छूट देने या निलंबित करने, हटाने या सजा को कम करने की शक्ति है.

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राज्यपाल को मिली इस पावर की तुलना कई बार राष्ट्रपति की शाक्ति से की जाती है. हालांकि, भारतीय संविधान में दोनों के बीच की शक्तियों का अंतर समझाया गया है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का दायरा अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की क्षमादान शक्ति से कहीं ज्यादा बड़ा है.

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राष्ट्रपति के पास यह पावर है कि वो कोर्ट मार्शल के तहत सजा पाने वाले इंसान की सजा माफ कर करते हैं, लेकिन राज्यपाल के पास यह अधिकार नहीं है. राष्ट्रपति के पास उन मामलों में क्षमादान देने का अधिकार है जहां मौत की सजा सुनाई गई हो जबकि राज्यपाल की क्षमादान शक्ति मौत की सजा केस में लागू नहीं होती.

क्या हैंकैदी की रिहाई केनियम?

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट आशीष पांडे कहते हैं, ऐसी सजा काट रहे कैदियों की रिहाई दो तरह से हो सकती है. पहला, राज्य सरकार के पास यह अधिकार है कि वो इसको लेकर पॉलिसी बना सकते हैं. राज्य सरकार कैदी की सजा माफ तब माफ कर सकते हैं जब कैदी 14 साल की जेल की सजा काट चुका हो. सीआरपीसी की धारा 433A में कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति को ऐसे अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है जहां आजीवन कारावास की सज़ा दी जाती है या जिसके लिए मृत्युदंड की सजा है तो आजीवन कारावास मिलने के बाद उसे तब तक रिहा नहीं किया जा सकता जब तक वो 14 साल की सजा पूरी न कर चुका हो.

दूसरा, अनुच्छेद 161 धारा 433A से काफी अलग है. धारा 433A राज्यपाल या राष्ट्रपति को मिली क्षमादान की शक्तियों को प्रभावित नहीं कर सकती. इस तरह राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों के पास सजा को माफ करने के अधिकार हैं.

कितने साल बाद मिलता है रिहाई का अधिकार?

अगर किसी कैदी को आजीवन कारावास की सजा मिली है या एक ऐसे मामले में सजा मिली है जिसमें एक सजा मृत्युदंड की भी हो सकती है तो कैदी को रिहाई का अधिकार होता है. वो इसके लिए दो तरह से आवेदन कर सकते हैं. पहला राज्य सरकार के पास. वो राज्य सरकार से आवेदन तभी कर पाएंगे जब उनकी उम्रकैद की सजा 14 साल पूरी हो गई हो. इसके बाद राज्य सरकार तय करेगी कि क्या फैसला करना है. यह निर्णय पूरी तरह से राज्य सरकार का होगा.

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दूसरी स्थिति में वो कैदी अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल से सजा माफी के लिए आवेदन कर सकते हैं. खास बात है कि इसके लिए 14 साल की सजा पूरी करने की बाध्यता नहीं होती. अगर राज्यपाल इस पर फैसला लेते हैं तो वो राज्य सरकार को भी यह जानकारी देंगे. राज्य सरकार की सलाह के बाद वो इस पर अंतिम मुहर लगाएंगे.

इस तरह राज्य सरकार मंत्रिमंडल की सिफारिश के बाद ऐसे कैदी की सजा माफ करने के लिए कह सकती है, भले ही उसने 14 साल की सजा पूरी की हो या न की हो.

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