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मिलिंद नार्वेकर से दिलीप पाटिल तक कहानी पावरफुल पीएस की, जो माननीय बन गए | Milind Narvekar MLC Election to Dilip Walse Patil Sanjay Yadav Story of Powerful PS Who Became Honorable

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Jul 13, 2024    150846 views     Online Now 385
मिलिंद नार्वेकर से दिलीप पाटिल तक कहानी पावरफुल पीएस की, जो माननीय बन गए

मिलिंद नार्वेकर, संजय यादव और दिलीप वलसे पाटिल

महाराष्ट्र में हुए विधानपरिषद चुनाव में जीत के बाद उद्धव ठाकरे के निजी सचिव मिलिंद नार्वेकर सुर्खियों में हैं. उन्हें कोई जॉइंट किलर की उपाधि दे रहा है तो कई लोग नार्वेकर को उद्धव की साख को वापस लाने वाले नेता के रूप में देख रहा है. करीब 20 साल तक उद्धव के निजी सचिव नार्वेकर अब उसी सदन में बैठेंगे, जहां पर उनके बॉस और शिवसेना (यूबीटी) के सुप्रीमो बैठते हैं.

हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब किसी नेता के पर्सनल सेक्रेटरी (पीएस) किसी सदन का सदस्य बना हो. बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक ऐसे पीएस की एक लंबी फेहरिस्त है. इनमें से कोई मंत्री बन बैठा है तो कोई सांसद. दिलचस्प बात है कि हाल के वर्षों में पर्सनल सेक्रेटरी के सदन में पहुंचने की रफ्तार में तेजी आई है.

इस स्टोरी में पीएस से माननीय बने ऐसे ही नेताओं के बारे में डिटेल में जानते हैं…

1. मिलिंद नार्वेकर- उद्धव ठाकरे जब राजनीति में आए, तब उन्हें एक सहयोगी की जरूरत थी. उस वक्त नार्वेकर शिवसेना के कार्यकर्ता थे. उद्धव ने नार्वेकर को अपने साथ ले लिया और उन्हें अपना पीएस नियुक्त कर दिया, तब से नार्वेकर उद्धव के साथ ही हैं. नार्वेकर को उद्धव का काफी विश्वसत करीबी माना जाता है.

नार्वेकर पहली बार तब सुर्खियों में आए थे, जब सीएम रहे नारायण राणे ने पार्टी छोड़ी थी. उन्होंने नार्वेकर पर शिवसेना चलाने का आरोप लगाया था. इसी तरह का आरोप 2022 में भी नार्वेकर पर लगा था.

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2022 में एकनाथ शिंदे ने बगावत की थी, उस वक्त भी नार्वेकर को ही निशाने पर लिया गया था. हालांकि, उद्धव उनका हमेशा बचाव करते रहे. 10वीं पास नार्वेकर और उनकी पत्नी के नाम से करोड़ों की संपत्ति है. यह खुलासा हाल ही में उनके द्वारा दाखिल हलफनामे से हुआ.

इस बार के विधानपरिषद चुनाव में आखिर वक्त में उद्धव ठाकरे ने नार्वेकर के नाम की घोषणा की थी. पहले नार्वेकर की ही कुर्सी पर खतरा माना जा रहा था, लेकिन आखिर वक्त में नार्वेकर चुनाव जीत गए. नार्वेकर अब उसी सदन में बैठेंगे, जहां उनके बॉस उद्धव ठाकरे बैठते हैं. शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे वर्तमान में विधानपरिषद के ही सदस्य हैं.

2. दिलीप वलसे पाटिल- एकनाथ शिंदे सरकार में मंत्री दिलीप वलसे पाटिल एक वक्त शरद पवार के निजी सहायक थे. पाटिल को शरद पवार राजनीति में लाए और उन्हें कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़वाया. पाटिल 1990 में अंबागांव विधानसभा सीट से विधायक चुने गए. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

शरद ने जब कांग्रेस छोड़कर खुद की पार्टी बना ली, तब पाटिल उनके साथ आ गए. पाटिल अब तक 7 बार विधायक चुने जा चुके हैं. वे विलासराव देशमुख, अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण, उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे की सरकार में मंत्री रह चुके हैं. पाटिल 2009 से लेकर 2014 तक विधानसभा के स्पीकर भी रहे हैं. वर्तमान में वे अजित पवार की मोर्चे वाली एनसीपी के हिस्सा हैं. शरद पवार से उनकी बगावत ने काफी सुर्खियां बटोरी थी.

3. संजय यादव- बिहार से हाल ही में राज्यसभा सांसद चुने गए संजय यादव भी अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत तेजस्वी यादव के निजी सचिव के तौर पर ही की है. आरजेडी के भीतर उनका पद राजनीतिक सलाहकार की है. संजय 2015 में पहली बार तब सुर्खियों में आए थे, जब तेजस्वी बिहार के डिप्टी सीएम बने थे.

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2021 में लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप ने संजय पर पार्टी को खत्म करने का आरोप भी लगाया था. हालांकि, लालू यादव के दखल के बाद मामला शांत हो गया था. संजय मूल रूप से हरियाणा के रहने वाल हैं और कहा जाता है कि क्रिकेट प्रैक्टिस के दौरान वे तेजस्वी के संपर्क में आए थे.

तेजस्वी ने जब क्रिकेट छोड़ने की घोषणा की, तब संजय एक एमएनसी कंपनी में थे. तेजस्वी के कहने पर वे यहां से सीधे बिहार आ गए. तब से उनके साथ ही हैं.

4. संजय कुमार झा- जेडीयू के राज्यसभा सांसद संजय कुमार झा ने भी अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी के सहयोगी और सलाहकार के तौर पर की थी. संजय झा अभी जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हैं.

वे बिहार सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. 2006 में पहली बार झा विधानपरिषद के लिए चुने गए थे. 2012 में झा ने नीतीश कुमार का दामन थाम लिया था. उस वक्त वे नीतीश कुमार का ब्लॉग मैनेजमेंट का काम देखते थे.

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