दिल्ली एयरपोर्ट की पूरी व्यवस्था जीएमआर और उसके ज्वाइंट वेंचर के हाथों में है.
इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के टर्मिनल 1 की छत गिरने से एक आदमी की मौत हो गई. टर्मिनल से सभी फ्लाइट्स को कैंसल कर दिया गया है. अधिकारी व्यवस्था बनाने में जुटे हुए हैं. एविएशन मिनिस्टर ने मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायदा लिया है. वैसे तो दिल्ली के एयरपोर्ट का इतिहास काफी पुराना है. लेकिन क्या आपको जानकारी है कि इस एयरपोर्ट को निजी हाथों में सौंपने की बात सरकार के दिमाग में कब आई? जिस जीएमआर कंपनी की चर्चा इस हादसे दौरान चल रही है? क्यों वो अकेले इस पूरे एयरपोर्ट को संभाल रही है? आखिर जीएमआर का दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट को बनाने में किस तरह का रोल रहा है? इन तमाम सवालों के जवाब हम आपको देने की कोशिश करेंगे. खास बात तो ये है कि इस हादसे के बाद जीएमआर एयरपोर्ट्स के शेयरों में 3.50 फीसदी की गिरावट देखने को मिल चुकी है.
जब एक और टर्मिनल बनाने की शुरू हुई सोच
2000 के दशक में टी1 और टी2 दोनों की चरमरा चुके थे. दोनों ही टर्मिनल्स पर पैसेंजर्स का प्रेशर बढ़ रहा था. T1 अपनी क्षमता से 45 फीसदी से ज्यादा पैसेंजर्स को संभाल रहा था. अधिक आधुनिक सुविधाओं की आवश्यकता के साथ, टी2 भी तेजी से भरने लगा. दूसरे टर्मिनल बनने के दो दशक के बाद एयरपोर्ट में बढ़ते पैसेंजर्स के दबाव को देखते एक और टर्मिनल के साथ एयरपोर्ट को और भी ज्यादा बेहतर करने की जरुरत महसूस की गई. साल 1986 में जब टी2 शुरू हुआ था, तब इसे सिर्फ इंटरनेशनल फ्लाइट्स के लिए ही इस्तेमाल किया जाता.
ऐसे हुई जीएमआर की एंट्री
अब टर्मिनल3 को बनाने के लिए प्राइवेट कंपनियों को आमंत्रित करने की बारी थी. ऐसे में जीएमआर ग्रुप ने एक कंसोर्टियम बनाया. जिसमें जीएमआर एयरपोर्ट, फ्रापोर्ट, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया शामिल थे. इस ज्वाइंट वेंचर का नाम डायल रखा गया. इस ज्वाइंट वेंचर ने एयरपोर्ट के पूरे प्रोजेक्ट के लिए 8975 करोड़ रुपए के बजट को मंजूर किया था. जब साल 2010 में ये पूरा प्रोजेक्ट कंप्लीट हुआ तो 12,857 करोड़ रुपए खर्च हो चुके थे. इस ज्वाइंट वेंचर में जीएमआर की हिस्सेदारी 64 फीसदी बताई जा रही है. वहीं एएआई की हिस्सेदारी 26 फीसदी और फ्रापोर्ट की हिस्सेदारी 10 फीसदी है.
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जीते हैं कई प्राइस
ज्वाइंट वेंचर के नेतृत्व में, टी3 की क्षमता हर साल 34 मिलियन पैसेंजर्स को सर्विस देने की है. हालांकि यह कैपेसिटी ग्लोबल लेवल पर दूसरे प्रमुख एयरपोर्ट की तुलना में काफी कम है. उसके बाद भी ये कैपेसिटी T1 और T2 की कैपेसिटी की तुलना में काफी बेहतर है. टी3 शुरू होने के बाद टी2 को रिन्यु करने के लिए बंद कर दिया गया. टी3 से सभी इंटरनेशनल फ्लाइट्स उड़ान भरनी शुरू हुई. वहीं इंटरनेशनल सर्विस के अलावा, चुनिंदा एयरलाइनों ने एअर इंडिया सहित अपने डॉमेस्टिक ऑपरेशंस को भी टी3 पर ट्रांसफर कर दिया. टर्मिनल 3 ने अपनी सर्विस और डिजाइन के लिए कई पुरस्कार जीते हैं, जिससे एक हब के रूप में इसकी ग्लोबल इमेज में काफी इजाफा हुआ है.
किस तरह की हैं प्रॉब्लम?
हालांकि आईजीआई एयरपोर्ट दक्षिण एशिया में सबसे बेहतरीन एयरपोर्ट में से एक हो सकता है, इसे कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ता है. एक बड़ी समस्या टर्मिनल्स के बीच कनेक्टिविटी को लेकर है. टर्मिनल 1, 2 और 3 के बीच कोई एयरसाइड कनेक्टिविटी नहीं है. इसका मतलब है कि पैसेंजर्स को अधिकांश घरेलू उड़ानों में जाने के लिए इमिग्रेशन क्लीयर करना होगा. अगर कोई इमिग्रेशन को क्लीयर करने का ऑप्शन चुनता भी है, इंटर-टर्मिनल ट्रांसपोर्टेशन काफी लिमिटेड है.
टी2 और टी3 काफी करीब हैं, टी1 तक पहुंचने में सामान्य दिन में 15 मिनट और ट्रैफिक दिनों के दिनों में और ज्यादा समय लग जाता है. कोई सेंट्रलाइज्ड एयरपोर्ट प्लानिंग और कंस्ट्रक्शन ना होने की वजह से, दिल्ली ग्लोबल लेवल पर दूसरे एयरपोर्ट पर मौजूद आसान कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए संघर्ष कर रही है.
कंपनी के शेयर में गिरावट
इस हादसे के बाद से जीएमआर एयरपोर्ट के शेयरों में साढ़े तीन फीसदी तक की गिरावट देखने को मिल चुकी है. बीएसई के आंकड़ों के अनुसार 3.52 फीसदी की गिरावट के साथ 95.74 रुपए के लोअर लेवल पर पहुंच चुका है. मौजूदा समय 2 बजकर 50 मिरनट पर कंपनी का शेयर करीब दो फीसदी की गिरावट के साथ 97.33 रुपए पर कारोबार कर रहा है. वैसे एक दिन पहले कंपनी का शेयर 99.23 रुपए बंद हुआ था और शुक्रवार को 99.50 रुपए पर ओपन हुआ था. मौजूदा समय में कंपनी का मार्केट कैप 58,602.99 करोड़ रुपए है.
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