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25 जून यानी काला दिवस: इमरजेंसी को याद कर पवैया बोले- जो संविधान के उपासक वो आज काला दिवस मना रहे

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Jun 25, 2024    150839 views     Online Now 348

कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 25 जून को आपातकाल काला दिवस के रूप में भारतीय जनता पार्टी ने मनाया। शहर के बाल भवन में आयोजित परिचर्चा कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में पूर्व सांसद और महाराष्ट्र के सह प्रभारी जयभान सिंह पवैया मौजूद रहे। पवैया ने इस मौके पर कहा कि जो संविधान के उपासक हैं वह 25 जून को आपातकाल काला दिवस के रूप में मनाते हैं।

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स्वामी विवेकानंद जी ने कहा कि अतीत को पढ़ो, फिर वर्तमान को गढ़ो, तब आगे बढ़ो, अतीत पढ़ना इसलिए जरूरी है, क्योंकि अतीत के गौरवमयी पन्ने हमें जीने की ताकत देते हैं। हमें प्रेरणा मिलती है। अतीत इसलिए पढ़ना जरूरी है क्योंकि कुछ काले पन्ने हमारे अतीत के इतिहास में भी होते हैं, कुछ काले अध्याय भी होते है, जिन अध्यायों को पढ़ने के बिना हमें सबक नहीं मिलता है। इसलिए 1975 की इस घटना से हम सबक लें, और हमारे प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने आज बोला- अगर सबक लेकर हम जागते रहे हिंदुस्तान के लोग तो इस धरती पर कोई मायका लाला ऐसा पैदा न  हो जो कि 25 जून को दफनाने की जरूरत कर सकें। 

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यह बात मंगलवार को पूर्व मंत्री एवं महाराष्ट्र के सहप्रभारी जयभान सिंह पवैया ने बाल भवन में आयोजित आपातकाल कालादिवस पर परिचर्चा में कही। पवैया ने कहा कि हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस ने लोगों में संविधान को बदलने का भ्रम फैलाया। जबकि उसी कांग्रेस ने कई बार संविधान में संशोधन किए। इस बात को सभी से छुपाया जाता है और हर बार कांग्रेस कोई न कोई झूठा बहाना लेकर भाजपा को घेरने का असफल प्रयास करती है। उन्होंने कहा कि इसी कारण आज लोगों ने कांग्रेस को नकार दिया है और फिर से एक बार मोदी पर अपना भरोसा जताया है। 

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उन्होंने कहा कि यह दिन भारत के इतिहास में लोकतंत्र की हत्या का दिन गिना जाता है। कांग्रेस सरकार ने 25 जून की रात को केवल अपनी कुर्सी बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी और संविधान का गला घोट दिया। आपातकाल लगाने के बाद राजनीतिक नेताओं, पत्रकारों और अन्य को जेल में डाल दिया। इस आपातकाल के दौरान जनता के सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। सरकार विरोधी भाषणों और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया। समाचार पत्रों को विशेष आचार सहिता का पालन करने के लिए विवश किया गया और सरकारी सेंसर से गुजरना पड़ता था। घोषणा के साथ ही विरोधी दल के नेताओं को गिरफ्तार करवाकर अज्ञात स्थानों पर रखा गया, सरकार ने मीसा के तहत कदम उठाया। 

यह ऐसा कानून था जिसके तहत गिरफ्तार व्यक्ति को कोर्ट में पेश करने और जमानत मांगने का भी अधिकार नहीं था। विपक्षी दलों के बड़े नेता मोरारजी देसाई, अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जार्ज फर्नांडिस, जयप्रकाश नारायण सभी को जेल भेज दिया गया। आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज होती देख इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर 1977 में चुनाव करने की सिफारिश की। 

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