निधन के बाद नहीं हुआ था तारक मेहता का अंतिम संस्कार : मशहूर टेलीविजन शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ ( Taarak Mehta ka Ooltah Chashmah ) की लोकप्रियता आज इतनी बढ़ गई है कि यह शो हर घर में देखा जाता है ! इतना ही नहीं, यह शो आज दर्शकों के पसंदीदा शो में से एक बन गया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह शो भारत के मशहूर कॉमेडियन और नाटककार तारक मेहता की देन है। यह शो तारक मेहता ( Taarak Mehta ) की रचना ‘दुनिया ने उंधा चश्मा’ से प्रेरित है। आज ही के दिन तारक मेहता का 87 साल की उम्र में निधन हो गया था। तारक मेहता को पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
निधन के बाद नहीं हुआ था तारक मेहता का अंतिम संस्कार
‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ ( Taarak Mehta ka Ooltah Chashmah ) शो के कारण तारक मेहता का नाम आज बच्चे-बच्चे की जुबान पर है, लेकिन आज भी कई लोग ऐसे हैं जो असली तारक मेहता ( Taarak Mehta ) के बारे में नहीं जानते। तारक मेहता द्वारा लिखित रचना ‘दुनिया ने उंधा चश्मा’ गुजराती भाषा में लिखी गई थी। इसी रचना पर आधारित ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ नाम का टीवी शो शुरू हुआ, जो आज लोगों की खूब वाहवाही बटोर रहा है।
Taarak Mehta ka Ooltah Chashmah
तारक मेहता ( Taarak Mehta ) का लंबी बीमारी के बाद अहमदाबाद में निधन हो गया। उनकी मौत से न सिर्फ गुजरात में उनके प्रशंसक दुखी हैं, बल्कि देशभर के लोगों को उनकी मौत पर गहरा अफसोस है। उनका योगदान अतुलनीय है। आज भी जब ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ ( Taarak Mehta ka Ooltah Chashmah ) शो के निर्माता असित मोदी तारक मेहता शो की चर्चा करते हैं तो उनका नाम जरूर लिया जाता है, क्योंकि अगर उन्होंने इसे नहीं बनाया होता तो आज यह शो दर्शकों के बीच इतना लोकप्रिय नहीं होता।
80 से ज्यादा लिखी किताबे
तारक मेहता ( Taarak Mehta ) ने 80 से ज्यादा किताबें लिखी थीं। उनकी रचनाओं का कोई सानी नहीं था। पाठक उनकी रचनाओं को पढ़ना बहुत पसंद करते हैं, क्योंकि उनकी लेखन शैली अन्य सभी लेखकों से बिल्कुल अलग थी। उनका उपन्यास ‘दुनिया ने उंधा चश्मा’ लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ ( Taarak Mehta ka Ooltah Chashmah ) का शो काफी समय से चला जा रहा है !
निधन के बाद नहीं हुआ था Taarak Mehta का अंतिम संस्कार
आपको बता दें कि तारक मेहता ( Taarak Mehta ) की मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया था, बल्कि उनका शरीर दान कर दिया गया था। परिवार के मुताबिक ये उनकी आखिरी इच्छा थी। वह हमेशा इस बात को दोहराते थे कि जब उनकी मृत्यु होगी तो वह अपना शरीर दान कर सकते हैं और सामाजिक कल्याण में अपनी भागीदारी दर्ज करा सकते हैं। ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ ( Taarak Mehta ka Ooltah Chashmah ) आज उनके न रहने के बाद भी देश उन्हें याद करता रहेगा।
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