
फ्रांज फर्डिनेंड ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के युवराज थे और सम्राट फ्रांज जोसेफ के उत्तराधिकारी माने जाते थे.
आज से ठीक 111 साल पहले यूरोप के एक कोने में एक राजकुमार की हत्या कर दी गई. इस हत्या के बाद पहले यूरोप और फिर बाद में पूरी दुनिया दो हिस्सों में बंट गई और रख दी गई पहले विश्व युद्ध की नींव. फिर तो न जाने कितने देश आमने-सामने आ गए. देश गुटों में बंट गए. सब एक-दूसरे पर हमलावर हो गए. आइए, जानते हैं कि आखिर कौन थे राजकुमार, जिनकी हत्या विश्व युद्ध का कारण बन गई? कितने देश इस युद्ध में शामिल हुए? इस युद्ध का परिणाम क्या हुआ? कितने लोग मारे गए? दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कितनी तबाही मची? एक-एक सवाल का जवाब जानेंगे.
28 जुलाई 1914 के दिन ही पहले विश्वयुद्ध की शुरुआत हुई थी. इसी दिन सर्बिया में ऑस्ट्रिया के राजकुमार फ्रांसिस फर्डिनेंड की हत्या कर दी गई थी. इससे गुस्साए ऑस्ट्रिया ने हंगरी के साथ मिलकर सर्बिया पर हमला कर दिया था. यहीं से शुरू हुए युद्ध ने धीरे-धीरे करीब आधी से ज्यादा दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था. और दुनिया के कई देशों में काफी तबाही मच गई.
कैसे पूरी दुनिया जंग में कूद गई?
28 जुलाई का दिन इतिहास में एक ऐसे मोड़ के रूप में दर्ज है, जिसने न केवल यूरोप बल्कि पूरी दुनिया की दिशा बदल दी. इस दिन प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत हुई, जिसकी जड़ें एक अप्रत्याशित घटना में छुपी थीं, ऑस्ट्रिया-हंगरी के राजकुमार फ्रांज फर्डिनेंड (Archduke Franz Ferdinand) की हत्या. यह घटना इतनी बड़ी थी कि उसने महज कुछ हफ्तों में ही यूरोप के कई देशों को युद्ध की आग में झोंक दिया और देखते ही देखते यह जंग वैश्विक स्तर पर फैल गई.
कौन थे राजकुमार फ्रांज फर्डिनेंड?
फ्रांज फर्डिनेंड ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के युवराज थे और सम्राट फ्रांज जोसेफ के उत्तराधिकारी माने जाते थे. 28 जून 1914 को वे अपनी पत्नी सोफी के साथ बोस्निया की राजधानी साराजेवो के दौरे पर थे. इसी दौरान एक सर्ब राष्ट्रवादी संगठन ‘ब्लैक हैंड’ के सदस्य गावरिलो प्रिंसिप ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी. इस हत्या के पीछे सर्ब राष्ट्रवादियों की मंशा थी कि बोस्निया को ऑस्ट्रिया-हंगरी के कब्जे से आज़ाद कर सर्बिया में मिला दिया जाए.

फ्रांज फर्डिनेंड ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के युवराज थे.
हत्या के बाद क्या हुआ?
फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या ने ऑस्ट्रिया-हंगरी को गुस्से से भर दिया. उसने सर्बिया पर सख्त शर्तों के साथ एक अल्टीमेटम भेजा, जिसे सर्बिया ने आंशिक रूप से ही स्वीकार किया. इससे नाराज होकर ऑस्ट्रिया-हंगरी ने 28 जुलाई 1914 को सर्बिया के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी. यह एक छोटी-सी लड़ाई लग सकती थी, लेकिन यूरोप के देशों के बीच पहले से बने सैन्य गठबंधनों ने इसे एक विशाल युद्ध में बदल दिया.
कैसे फैला युद्ध?
यूरोप में दो बड़े सैन्य गुट बन चुके थे, ‘मित्र राष्ट्र’ (Allied Powers) और ‘मध्य शक्तियाँ’ (Central Powers). ऑस्ट्रिया-हंगरी के साथ जर्मनी, ऑटोमन साम्राज्य (तुर्की) और बुल्गारिया थे, जबकि सर्बिया के समर्थन में रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, जापान और बाद में अमेरिका भी आ गए. इन गठबंधनों के कारण एक देश पर हमला होते ही उसके सहयोगी भी युद्ध में कूद पड़े. देखते ही देखते यह युद्ध यूरोप से निकलकर एशिया, अफ्रीका और अमेरिका तक फैल गया.
कितने देश और कितनी तबाही?
प्रथम विश्व युद्ध में लगभग 30 देश शामिल हुए. युद्ध चार साल (1914-1918) तक चला. इस दौरान आधुनिक हथियारों, टैंकों, जहाजों, जहरीली गैस और हवाई हमलों का पहली बार बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हुआ. युद्ध में अनुमानित 1.5 करोड़ से अधिक सैनिक और नागरिक मारे गए, जबकि दो करोड़ से ज्यादा लोग घायल हुए. लाखों लोग बेघर हो गए, शहर और गांव तबाह हो गए, और यूरोप की अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई.
युद्ध का परिणाम
साल 1918 में जर्मनी और उसकी सहयोगी सेनाओं की हार हुई. 11 नवंबर 1918 को युद्धविराम (Armistice) हुआ. इसके बाद साल 1919 में वर्साय की संधि (Treaty of Versailles) पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें जर्मनी को युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराया गया और उस पर भारी जुर्माना लगाया गया. ऑस्ट्रिया-हंगरी, ऑटोमन साम्राज्य और रूस के साम्राज्य टूट गए. कई नए देश अस्तित्व में आए, जैसे पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, यूगोस्लाविया आदि.
सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
युद्ध के कारण लाखों परिवार उजड़ गए. उन्होंने अपनों को खो दिया. उनका सब कुछ तबाह हो गया. यूरोप की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई, महंगाई और बेरोजगारी बढ़ गई. महिलाओं ने पहली बार बड़ी संख्या में फैक्ट्रियों और दफ्तरों में काम करना शुरू किया. युद्ध के बाद समाज में असंतोष और अस्थिरता बढ़ी, जिसने आगे चलकर द्वितीय विश्व युद्ध की नींव रखी.
तकनीकी और सैन्य बदलाव
प्रथम विश्व युद्ध ने युद्ध की तकनीक को पूरी तरह बदल दिया. टैंक, मशीन गन, जहरीली गैस, पनडुब्बी और हवाई जहाज का इस्तेमाल पहली बार बड़े पैमाने पर हुआ. इससे युद्ध और भी घातक और विनाशकारी हो गया.
क्या थी वर्साय की संधि?
वर्साय की संधि यानी Treaty of Versailles प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी और मित्र राष्ट्रों के बीच हुई एक शांति संधि थी, जिस पर 28 जून 1919 को पेरिस के वर्साय पैलेस में हस्ताक्षर किए गए थे. इस संधि का मुख्य उद्देश्य जर्मनी को युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराना और भविष्य में ऐसे किसी भी युद्ध को रोकने के लिए शर्तें लागू करना था. संधि के अनुच्छेद 231 में स्पष्ट रूप से कहा गया कि जर्मनी और उसके सहयोगी ही प्रथम विश्व युद्ध के लिए पूरी तरह जिम्मेदार थे. जर्मनी को अपनी काफी ज़मीन गंवानी पड़ी. अल्सेस-लोरेन क्षेत्र फ्रांस को वापस कर दिया गया, जिसे जर्मनी ने 1871 के फ्रेंको-प्रशिया युद्ध में जीता था. सार क्षेत्र का प्रशासन 15 साल के लिए राष्ट्र संघ (League of Nations) को दे दिया गया, और इसके कोयला खदानों का स्वामित्व फ्रांस को मिला. 1935 में जनमत संग्रह के बाद यह जर्मनी को वापस मिला.
राष्ट्र संघ की हुई स्थापना
संधि के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन, राष्ट्र संघ (League of Nations) की स्थापना की गई. इसका उद्देश्य भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करना और युद्धों को रोकना था. हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका कभी राष्ट्र संघ में शामिल नहीं हुआ, जिससे इसकी प्रभावशीलता कम हो गई. जर्मनी को ऑस्ट्रिया के साथ किसी भी प्रकार के विलय (Anschluss) से प्रतिबंधित किया गया.
वर्साय की संधि ने तैयार की दूसरे विश्व युद्ध की नींव
वर्साय की संधि को अक्सर एक कठोर संधि के रूप में देखा जाता है, जिसने जर्मनी में गहरा आक्रोश पैदा किया. कई इतिहासकारों का मानना है कि इस संधि की कठोर शर्तों ने जर्मनी में नाज़ीवाद के उदय और अंततः द्वितीय विश्व युद्ध के लिए जमीन तैयार की.
एक राजकुमार की हत्या से शुरू हुआ यह युद्ध मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक बन गया. इसने न केवल लाखों जिंदगियों को तबाह किया, बल्कि दुनिया के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक ढांचे को भी बदल दिया. प्रथम विश्व युद्ध ने यह सिखाया कि एक छोटी-सी घटना भी अगर समय और परिस्थितियां अनुकूल हों, तो पूरी दुनिया को बदल सकती है. आज भी यह युद्ध हमें शांति, सहिष्णुता और संवाद की अहमियत का एहसास कराता है. इसी युद्ध के बाद वर्साय की संधि हुई. जर्मनी पर अनेक प्रतिबंध लगे. उसे अपना बहुत कुछ खोना पड़ा और यहीं से दूसरे विश्व युद्ध की जमीन तैयार हुई.
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