राजस्थान में शिक्षा व्यवस्था की एक और दीवार गिर गई. इस बार ये दीवार 7 मासूम बच्चों की जान लेकर गिरी. झालावाड़ के पिपलोदी गांव में मंगलवार को स्कूल की दीवार ढही, लेकिन अब जो जानकारी सामने आई है, उसने पूरे सिस्टम की नींव को हिला कर रख दिया है.
दरअसल जिस स्कूल में ये दर्दनाक हादसा हुआ, वो राज्य सरकार की ‘जर्जर स्कूल’ की सूची में था ही नही. ना पीडब्ल्यूडी को इसकी कोई भनक थी, ना जिला शिक्षा अधिकारी को इसकी कोई चिंता. और तो और, संस्था प्रधान ने भी कभी कोई प्रस्ताव नहीं भेजा कि स्कूल की दीवार मरम्मत मांग रही है. अब सवाल ये उठता है कि जब मौत आने की दस्तक दे रही थी, तो प्रशासन क्यों सोता रहा?
राजस्थान के हर जिले में खतरा
राज्य सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2,256 स्कूल भवन जर्जर घोषित किए गए हैं. ये स्कूल प्रदेश के लगभग सभी जिलों में फैले हैं: अजमेर, अलवर, बालोतरा, भरतपुर, बांसवाड़ा, बारां, बाड़मेर, ब्यावर, भीलवाड़ा, बीकानेर, बूंदी, चित्तौड़गढ़, चूरू, दौसा, डीग, धौलपुर, डूंगरपुर, गंगानगर, हनुमानगढ़, जयपुर, जैसलमेर, जालौर, झालावाड़, झुंझुनू, जोधपुर, करौली, खैरथल, कोटा, कोटपुतली-बहरोड़, नागौर, पाली, फलोदी, प्रतापगढ़, राजसमंद, सवाई माधोपुर, सलूंबर, सीकर, सिरोही, टोंक और उदयपुर. हालांकि अब सवाल यह है कि क्या लिस्ट बनाना ही काफी है?
सिस्टम की सबसे बड़ी चूक
राज्य सरकार ने हादसे के अगले ही दिन 24 घंटे के भीतर राजस्थान के 2,256 जर्जर स्कूलों की सूची जारी की. हर जिले से रिपोर्ट मांगी गई. शिक्षा मंत्री ने माना कि हजारों स्कूल खतरे की कगार पर हैं. मगर उस लिस्ट में झालावाड़ के राउप्रावि पिपलोदी स्कूल का नाम नहीं था, जिसकी दीवार 50 बच्चों की मौजूदगी में ढही और 7 को हमेशा के लिए खामोश कर गई. और ये सिर्फ चूक नहीं थी, ये उस सिस्टम की संगठित लापरवाही का जीता-जागता सबूत है, जिसमें स्कूल भवनों की सुरक्षा एक औपचारिकता बन चुकी है.
रिपोर्ट में क्या निकला?
कलेक्टर्स कॉन्फ्रेंस में PWD ने रिपोर्ट दी थी कि जिले में कोई जर्जर स्कूल नहीं है. झालावाड़ के डीईओ की सूची में भी यह स्कूल नहीं था. मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी मनोहरथाना ने हादसे के बाद रिपोर्ट भेजी, जिसमें साफ लिखा कि संस्था प्रधान ने कभी मरम्मत का प्रस्ताव नहीं भेजा था. ये कोई मामूली चूक नहीं, बल्कि ये वो अपराध है जो कागजों के भरोसे बच्चों की जान तौल रहा था.
बारिश बनी वजह, लेकिन जिम्मेदार कौन?
भारी बारिश से स्कूल भवन की नींव में पानी भर गया, दीवार कमजोर हो गई और सुबह की घंटी से पहले धड़ाम हो गई. 1994-95 में बना ये भवन पिछले 30 सालों से जस का तस चल रहा था. स्कूल में 72 बच्चों का रजिस्ट्रेशन है, हादसे के वक्त 50 बच्चे मौजूद थे.
वहीं हादसे के दौरान स्कूल में तीन शिक्षक मीना गर्ग, जावेद अहमद और रामविलास मौजूद थे. जबकि दो शिक्षक बद्रीलाल लोधा और कन्हैयालाल सुमन गैरहाजिर थे. अब कौन देगा जवाब कि अगर ये स्कूल लिस्ट में नहीं था, तो क्या बाकियों की लिस्ट भरोसे के लायक है?
हर जिले में खतरा
राज्य सरकार की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान के 2,256 स्कूल भवन जर्जर हालत में पाए गए हैं. अजमेर से लेकर उदयपुर तक, हर जिले में खतरे की दीवारें खड़ी हैं. इसमें अजमेर, अलवर, भरतपुर, बाड़मेर, भीलवाड़ा, बीकानेर, दौसा, धौलपुर, डूंगरपुर, जयपुर, जोधपुर, करौली, कोटा, नागौर, पाली, प्रतापगढ़, सीकर, सिरोही, टोंक, उदयपुर सहित अन्य जिले शामिल हैं. मगर असल सवाल यही है कि जो स्कूल लिस्ट में नहीं, क्या वे सुरक्षित हैं? या फिर अगली दीवार कहीं और किसी और मासूम की जान लेगी?
क्या अब भी जागेगा सिस्टम?
हर हादसे के बाद सूची बनाना, मीटिंग करना, बयान जारी करना, आखिर ये सिलसिला कब तक चलेगा? क्या पिपलोदी की 7 कब्रें सिर्फ एक आंकड़ा बनकर रह जाएंगी? राज्य सरकार ने अब सभी CBEO को निर्देश दिए हैं कि ADPC को तत्काल जर्जर स्कूलों की नई सूची दें. पर असली सवाल यह है कि क्या अब लिस्ट कागज़ से जमीन तक जाएगी? या फिर अगली बारिश, अगली दीवार और अगली मौत तक इंतजार होगा?
अब और बहाने नहीं चाहिए
पिपलोदी में सिर्फ स्कूल की दीवार नहीं गिरी, बल्कि सिस्टम की संवेदनहीनता की नींव हिलाकर रख गई. अब भी अगर प्रशासन और सरकार ने आंखें नहीं खोलीं, तो अगली बार हादसे की जगह बदलेगी, पीड़ित बदलेगा लेकिन शायद मौत का तरीका वही रहेगा. ये खबर नहीं, चेतावनी है, हर अभिभावक, हर टीचर और हर अफसर के लिए.
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