
बांके बिहारी
वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर भारत समेत विदेशों में भी काफी लोकप्रिय है. दूर-दूर से भक्त वृंदावन आकर बांके बिहारी के दर्शन करते हैं. इस मंदिर में भगवान कृष्ण के बालस्वरूप यानी बांके बिहारी की आराधना की जाती है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान कृष्ण को बांके बिहारी क्यों बोलते हैं? अगर नहीं, तो चलिए हम आपको बताएंगे कि भगवान कृष्ण का नाम बांके बिहारी क्यों पड़ा और इसका मतलब क्या होता है.
बांके बिहारी कृष्ण का ही एक अवतार हैं और उनके इस नाम के पीछे एक पौराणिक कथा मिलती है. ऐसा माना जाता है कि स्वामी हरिदास जी के अनुरोध करने पर भगवान कृष्ण ने यह रूप लिया था और उनके इस रूप को स्वामी हरिदास जी ने ही बांके बिहारी नाम दिया. कहते हैं कि भगवान कृष्ण के इस विग्रह रूप के जो भी दर्शन करता उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं.
कृष्ण भगवान को बांके बिहारी क्यों कहते हैं?
संगीत सम्राट तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास भगवान श्रीकृष्ण को अपना आराध्य मानते थे और उन्होंने अपना संगीत भी श्रीकृष्ण को समर्पित कर रखा था. वे अक्सर वृंदावन स्थित श्रीकृष्ण की रासलीला स्थली में बैठकर संगीत से भगवान कृष्ण की आराधना करते थे. कहते हैं कि जब भी स्वामी हरिदास श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होते तो श्रीकृष्ण उन्हें दर्शन दिया करते थे.
एक दिन स्वामी हरिदास के शिष्य ने कहा कि बाकी लोग भी राधे कृष्ण के दर्शन करना चाहते हैं. ऐसे में अन्य लोगों की भावनाओं का ध्यान रखकर स्वामी हरिदास भगवान कृष्ण का भजन गाने लगे. जब श्रीकृष्ण और राधा रानी ने स्वामी हरिदास जी को दर्शन दिए तो उन्होंने भक्तों की इच्छा उनसे जाहिर की.
तब राधा-कृष्ण ने उसी रूप में उनके पास ठहरने की बात कही. इस पर हरिदास ने कहा कि कान्हा मैं तो संत हूं, तुम्हें तो कैसे भी रख लूंगा, लेकिन राधा रानी के लिए रोज नए आभूषण और वस्त्र मैं कहां से लाऊंगा. भक्त की बात सुनकर भगवान कृष्ण मुस्कुराए और इसके बाद राधा कृष्ण की युगल जोड़ी एकाकार होकर एक विग्रह रूप में प्रकट हुई. फिर स्वामी हरिदास जी ने भगवान कृष्ण के इस विग्रह रूप का नाम रखा बांके बिहारी.
बांके:- “बांके” शब्द संस्कृत के “बंका” शब्द से आया है, जिसका मतलब है “मुड़ा हुआ” या “वक्र”. यह भगवान कृष्ण की त्रिभंगी मुद्रा को दर्शाता है, जिसमें उनका शरीर तीन स्थानों पर (होंठ, कमर और पैर) थोड़ा झुका हुआ होता है. यह मुद्रा उनकी चंचलता और आनंदमय स्वभाव का प्रतीक मानी जाती है.
बिहारी:- “बिहारी” शब्द का मतलब है “विहार करने वाला” या “आनंद लेने वाला”. यह भगवान कृष्ण के वृंदावन में लीलाएं करने और आनंदित स्वभाव को दर्शाता है.
त्रिभंगी मुद्रा:- भगवान कृष्ण की इस त्रिभंगी मुद्रा में उनका शरीर तीन स्थानों पर मुड़ा हुआ होता है, जो कि उनकी सुंदरता और आकर्षण का एक महत्वपूर्ण पहलू है.
भक्तों के लिए प्रिय:- भगवान कृष्ण की यह छवि, जिसमें वे त्रिभंगी मुद्रा में खड़े हैं और आनंदित हैं, भक्तों को बहुत प्रिय मानी गई है.
(Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
[ Achchhikhar.in Join Whatsapp Channal –
https://www.whatsapp.com/channel/0029VaB80fC8Pgs8CkpRmN3X
Join Telegram – https://t.me/smartrservices
Join Algo Trading – https://smart-algo.in/login
Join Stock Market Trading – https://onstock.in/login
Join Social marketing campaigns – https://www.startmarket.in/login