
थाइलैंड कंबोडिया के बीच गहराया सीमा तनाव
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच एक बार फिर सीमा पर तनाव गहराता जा रहा है. थाईलैंड ने कंबोडिया के सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले शुरू कर दिए हैं. इससे पहले दोनों देशों के सैनिकों ने गुरुवार सुबह सीमा के पास एक-दूसरे पर फायरिंग की. था
कंबोडिया के विदेश मंत्रालय ने आरोप लगाया कि थाई सैनिकों ने पहले गोली चलाई. जबकि थाईलैंड की सेना ने कहा कि कंबोडिया ने सेना भेजने से पहले एक ड्रोन तैनात किया था, इसके बाद तोप और लंबी दूरी के BM21 रॉकेटों से गोलीबारी शुरू कर दी थी.
दोनों देशों के बीच इस संघर्ष की वजह वही पुरानी है. एक 1100 साल पुराना शिव मंदिर जिसे प्रेह विहेयर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर को 9वीं सदी में खमेर सम्राट सूर्यवर्मन ने भगवान शिव के लिए बनवाया था. लेकिन वक्त के साथ यह मंदिर सिर्फ आस्था का केंद्र नहीं रहा, बल्कि राष्ट्रवाद, राजनीति और सैन्य ताकत का अखाड़ा बन गया है.
प्रधानमंत्री की कुर्सी तक चली गई
2 जुलाई 2025 को, थाईलैंड की प्रधानमंत्री पैतोंगतर्न शिनावात्रा को अदालत ने निलंबित कर दिया. वजह बनी एक फोन कॉल, जिसमें वो कंबोडिया के एक वरिष्ठ नेता से चाचा कहकर बात कर रही थीं. वो भी तब, जब सीमा पर हालात बेहद तनावपूर्ण थे. यह बातचीत जब लीक हुई, तो जनता ने इसे राष्ट्रगौरव के खिलाफ माना. देखते ही देखते यह कॉल सियासी तूफान बन गई और प्रधानमंत्री को कुर्सी गंवानी पड़ी.
दोनों पक्षों का क्या कहना है?
कंबोडिया का दावा है कि मंदिर उसकी सीमा में स्थित है, जबकि थाईलैंड कहता है कि मंदिर का कुछ हिस्सा उसके सुरिन प्रांत में आता है. दरअसल, ये मंदिर डांगरेक पहाड़ियों में एक रणनीतिक दर्रे पर स्थित है जहां से कभी ऐतिहासिक खमेर राजमार्ग गुजरता था, जो आज के अंगकोर (कंबोडिया) से फीमाई (थाईलैंड) को जोड़ता था. बीते दशकों में यह विवाद थमा नहीं, बल्कि वक्त के साथ और भड़कता गया. और अब, यह विवाद देश की राजनीति तक को हिला चुका है.
विवाद की जड़ कहां है?
इस विवाद की शुरुआत 20वीं सदी की शुरुआत से मानी जाती है. 1904 में तय हुआ था कि सीमा प्राकृतिक जल विभाजक के आधार पर बनेगी. लेकिन 1907 में फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों ने जो नक्शा तैयार किया, उसमें मंदिर को कंबोडिया में दिखाया गया. थाईलैंड ने तब इसे माना, लेकिन 1930 के दशक में आकर विरोध किया जो बहुत देर से किया गया, और ICJ (अंतरराष्ट्रीय न्यायालय) ने इस विरोध को खारिज कर दिया.
1962 में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) ने मंदिर पर अधिकार कंबोडिया को दे दिया था. हालांकि थाईलैंड ने यह फैसला कभी पूरी तरह नहीं माना और मंदिर से सटे इलाके पर उसका अब भी दावा बना हुआ है. 2008 में जब कंबोडिया ने मंदिर को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल करवाया, तब से दोनों देशों के बीच तनाव और भी बढ़ गया. 2008 से 2011 के बीच मंदिर क्षेत्र को लेकर कई बार झड़पें हुईं. 2011 में एक हफ्ते तक भारी गोलाबारी चली थी, जिसमें दोनों देशों के कुल 42 लोग मारे गए जिनमें सैनिकों के अलावा आम नागरिक भी शामिल थे. इनमें कंबोडिया के 19 सैनिक और 3 आम नागरिक तो थाईलैंड के 16 सैनिक और 4 नागरिक शामिल हैं.
ताज़ा विवाद कैसे भड़का?
मई 2025 में एक बार फिर हालात बिगड़ गए. थाईलैंड ने दावा किया कि कंबोडिया की एक ड्रोन निगरानी गतिविधि को उसकी सीमा में देखा गया, जो उकसावे की कार्रवाई थी. इसके बाद दोनों देशों के बीच रॉकेट फायरिंग और हवाई हमलों की खबरें सामने आईं. थाईलैंड ने F-16 लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल भी किया. वहीं कंबोडिया का आरोप है कि थाई सेना ने बिना उकसावे के हमला किया, और उनकी सेना ने सिर्फ आत्मरक्षा में कार्रवाई की.
राष्ट्रवाद और राजनीति की चिंगारी
मंदिर के आसपास दोनों देशों के सैनिकों की मौजूदगी कोई नई बात नहीं है. बीते कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच तीर्थयात्रियों के लिए एक साझा समझौता भी बना था. लेकिन मंदिर को लेकर सैन्य शक्ति का प्रदर्शन दोनों ओर राष्ट्रवादी भावनाओं को हवा देता है. फरवरी 2025 में, कंबोडिया के सैनिकों ने मंदिर क्षेत्र में घुसकर राष्ट्रगान गाया और थाई सेना को खुली चुनौती दी. हालांकि अप्रैल में दोनों देशों के बीच स्थानीय स्तर पर समझौता हो गया था.
ICJ और ASEAN की भूमिका
1 जून को कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेट ने ऐलान किया कि वो एक बार फिर मामले को ICJ में ले जाएंगे. संसद से भी उन्हें मंजूरी मिल गई. हालांकि थाईलैंड ICJ के अधिकार क्षेत्र को मान्यता नहीं देता, लेकिन 14 जून को Joint Boundary Committee के तहत दोनों देशों ने सीमा पर बातचीत शुरू कर दी. 2011 में जब स्थिति बिगड़ी थी, तब मामला UNSC से ASEAN को सौंपा गया था और इंडोनेशिया की पहल पर दोनों देश निगरानी टीम पर सहमत हुए थे. लेकिन इस बार ASEAN की तरफ से कोई ठोस पहल अब तक नहीं हुई है.
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