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48 घंटे में 3 मिसाइल टेस्ट… नेवी में INS निस्तार की एंट्री, पाकिस्तान के लिए क्यों है साइलेंट किलर?

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Jul 19, 2025    150813 views     Online Now 316
48 घंटे में 3 मिसाइल टेस्ट... नेवी में INS निस्तार की एंट्री, पाकिस्तान के लिए क्यों है साइलेंट किलर?

नेवी में INS निस्तार की एंट्री

भारत ने पिछले करीब 48 घंटे 3 अलग अलग मिसाइलों के सफल टेस्ट किए हैं. जिनमें अग्नि-1, पृथ्वी-2 और आकाश प्राइम शामिल है. दूसरा भारतीय नौसेना की बढ़ती ताकत से जुड़ा है. शुक्रवार को INS निस्तार को नेवी में शामिल कर लिया गया है. तीसरा अपडेट उस स्वदेशी AK राइफल से जुड़ा है जो अब पाकिस्तानी आतंकियों का इलाज करेगी. ये AK राइफल अब पूरी तरह स्वदेशी होने जा रही है. जिसके बाद इसका नाम AK-203 शेर राइफल होगा.

सबसे पहले बात करते हैं भारतीय नौसेना को मिले नए बाहुबली की. शुक्रवार को नेवी में शामिल INS निस्तार एक आधुनिक डाइविंग सपोर्ट वेसल यानी DSV है. INS निस्तार का इस्तेमाल किसी भी आपात स्थिति में किया जा सकता है. ये सिर्फ एक सपोर्ट शिप नहीं है, बल्कि समुद्र की गहराइयों में दुश्मन की किसी भी चाल को नाकाम करने वाला साइलेंट किलर है. INS निस्तार का भारतीय नौसेना के इतिहास से बेहद गहरा संबंध रहा है. 1971 की भारत-पाकिस्तान जंग में पाकिस्तान ने अपनी सबसे घातक पनडुब्बी PNS गाजी को INS विक्रांत को निशाना बनाने भेजा था.

80 फीसदी स्वदेशी तकनीक से लैस

भारतीय नौसेना आज ‘INS निस्तार’ एक अत्याधुनिक डाइविंग सपोर्ट वेसल (DSV) को अपने बेड़े में शामिल कर लिया है. यह जहाज 80 फीसदी स्वदेशी तकनीक से बना है और 650 मीटर तक गहराई में फंसी पनडुब्बियों को बचा सकता है. यह भारत की पनडुब्बी सुरक्षा क्षमता को मजबूत करेगा और ‘मेक इन इंडिया’ पहल को भी बढ़ावा देगा.

INS निस्तार का नाम सुनते ही 1971 की भारत-पाकिस्तान जंग की याद ताजा हो जाती है. उस जंग में पाकिस्तान ने अपनी सबसे घातक पनडुब्बी PNS गाजी को INS विक्रांत को निशाना बनाने भेजा था. लेकिन भारतीय नौसेना की चतुराई से गाजी को विशाखापट्टनम के पास समंदर की गहराई में ही खत्म कर दिया गया. उस ऑपरेशन में जो डाइविंग टेंडर इस्तेमाल हुआ था, उसी का नाम INS निस्तार था. अब उसी विरासत को नया जीवन देकर भारत ने INS निस्तार को और आधुनिक रूप में तैयार किया है. इसलिए इसे साइलेंट किलर कहा जा रहा है.

INS निस्तार क्यों है खास?

  • INS निस्तार भारतीय नौसेना का पहला डेडिकेटेड डायविंग सपोर्ट वेसल (DSV) होगा.
  • यह आपात स्थिति में किसी भी पनडुब्बी को बचाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.
  • यह जहाज करीब 80 फीसदी स्वदेशी तकनीक और सामग्री से बना है. इसका वजन 9350 टन है और यह 120 मीटर लंबा है.
  • INS निस्तार में 200 से ज्यादा नौ-सैनिक तैनात रह सकते हैं और यह बिना बंदरगाह लौटे 60 दिन तक समंदर में ऑपरेशन कर सकता है.
  • इसमें डीप सबमर्जेंस रेस्क्यू व्हीकल (DSRV) लगी है, जो समंदर में 650 मीटर गहराई तक जाकर किसी भी फंसी पनडुब्बी के सैनिकों को बचा सकती है.
  • इसमें हेलिकॉप्टर ऑपरेशन की सुविधा भी है, जिससे आपात स्थिति में राहत और बचाव कार्य तेजी से किया जा सकेगा.
  • अब तक भारतीय नौसेना को पनडुब्बी हादसों या रेस्क्यू मिशन में ONGC या निजी कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ता था.
  • INS निस्तार को पूर्वी तट यानी ईस्ट कोस्ट पर तैनात किया जाएगा, जबकि INS निपुण पश्चिमी तट यानी वेस्ट कोस्ट पर रहेगा.
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डाइविंग टेंडर एक छोटी नाव या सहायक जहाज होता है, जो बड़े जहाजों या नौसेना के ऑपरेशनों में गोताखोरों (डाइवर्स) को समुद्र में ले जाने, उनकी सहायता करने और जरूरी उपकरणों को ले जाने के लिए इस्तेमाल होता है. यह गोताखोरों को समुद्र के अंदर काम करने के लिए सही जगह तक पहुंचाता है और उनके लिए एक आधार की तरह काम करता है. डाइविंग टेंडर में आमतौर पर गोताखोरी के उपकरण, ऑक्सीजन सिलेंडर, और अन्य जरूरी सामान होते हैं. इसे सपोर्ट बोट भी कहा जा सकता है, जो बड़े जहाजों से गोताखोरों को उथले या खतरनाक इलाकों में ले जाता है.

AK-203 असॉल्ट राइफल अब बनेगी भारत की शेर

भारतीय सेना की ताकत बढ़ाने वाली AK-203 असॉल्ट राइफल अब पूरी तरह से स्वदेशी बनने जा रही है. अब इसका नाम होगा ‘शेर’. क्योंकि ये वही राइफल है जिसने सेना में शामिल होते ही ऑपरेशन सिंदूर में अपना लोहा मनवाया. यूपी के अमेठी जिले के कोरवा में बन रही है भारतीय सेना के लिए असॉल्ट राइफल AK-203, भारत और रूस का जॉइंट वेंचर है.

अभी यहां जो राइफल बन रही हैं उसमें 50 फीसदी स्वदेशी कंटेंट है लेकिन इसी साल 31 दिसंबर को यहां जो राइफल तैयार होगी उसमें 100 फीसदी स्वदेशी कंटेंट होगा और AK-203 बन जाएगी. इसके बाद हर महीने यहां 12 हजार राइफलें बनेंगी. जो हां पूरी तरह स्वदेशी AK-203 का नाम शेर होगा. फैक्ट्री में तैयार हो रही इन राइफलों को 121 प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है इसके बाद ये तैयार होती है. अगले साल तक यहां हर दिन 600 राइफल बनने लगेगी, यानी हर 100 सेकंड में 1 राइफल.

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कैसे होती है इन राइफलों की टेस्टिंग?

जब राइफल तैयार हो जाती है तो इसका फायरिंग टेस्ट होता है. टेस्ट के लिए एक राइफल से 63 राउंड फायर होता है और अलग-अलग तरह के 20 और टेस्ट होते हैं. AK-203 की लाइफ 50 हजार राउंड फायर की है. ये इंसास राइफल से कई गुना लाइट है. सेना INSAS राइफल्स को पूरी तरह हटाने की योजना बना रही है और AK-203 उसे रिप्लेस करेगा.

भारतीय सेना के मेजर जनरल एस के शर्मा IRRPL के सीईओ और एमडी हैं. मेजर जनरल शर्मा ने टीवी9 को बताया कि इस फैक्ट्री से 5 परसेंट स्वदेशी कंटेंट वाली 35 हजार राइफल 2024 में भारतीय सेना को डिलीवर की गई. इस साल अब तक 13 हजार राइफल्स दे दी गई हैं, जो 15 परसेंट स्वदेशी कंटेंट वाली हैं. 15 अगस्त तक ऐसी 7 हजार और राइफल सेना को मिल जाएंगी.

फिर 30 अक्टूबर तक 30 पर्सेंट स्वदेशी कंटेंट वाली 10 हजार राइफल डिलीवर होंगी. 31 दिसंबर तक 70 परसेंट स्वदेशी कंटेंट वाली 5 हजार राइफल्स सेना को मिल जाएंगी. अभी तक सेना को 48 हजार राइफल्स डिलीवर हो चुकी हैं, जो LAC, LoC और काउंटर इनसरजेंसी ऑपरेशंस में भी तैनात हैं. 31 दिसंबर तक कुल 70 हजार राइफल्स डिलीवर हो जाएंगी.

अगले साल से 100 फीसदी स्वदेशी कंटेंट वाली राइफल

31 दिसंबर को जो पहली राइफल तैयार होगी वह 100 फीसदी स्वदेशी कंटेंट वाली होगी और तब हम इसे AK-203 शेर कहेंगे. इसके बाद हर महीने 12 हजार राइफल्स यहां तैयार होंगी. दिसंबर 2030 तक इंडियन आर्म्ड फोर्सेस को पूरी 601427 राइफल्स डिलीवर हो जाएंगी. जो असली समय सीमा दिसंबर 2032 से 22 महीने पहले है. यह 5200 करोड़ रुपए की परियोजना है, जो ‘मेक इन इंडिया’ के तहत अमेठी में शुरू की गई.

वैसे कॉन्ट्रैक्ट के हिसाब से ये अक्टूबर 2032 तक डिलीवर होनी थी, लेकिन ये 22 महीने पहले ही डिलीवर हो जाएंगी. अगले साल से हर साल 1 लाख 50 हजार राइफल्स तैयार होगी, जिसमें से 1 लाख 20 हजार आर्म्ड फोर्सेस को मिलेंगी और बाकी 30 हजार एक्सपोर्ट और डोमेस्टिक यूजर्स के लिए होंगी. करीब 20 राज्यों की पुलिस और सीएपीएफ भी AK-203 के लिए बात कर चुके हैं. भारत और रूस के मित्र देशों को भी एक्सपोर्ट करने पर काम चल रहा है.

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AK-203 की खासियतें

राइफल की शुरुआत: AK-203 रूस की प्रसिद्ध AK-सीरीज़ की नई पीढ़ी की राइफल है. यह AK-47 और AK-103 जैसी पुरानी AK राइफलों का आधुनिक संस्करण है.

कैलिबर: यह 7.62×39 mm की गोलियां चलाती है यही कैलिबर AK-47 में भी इस्तेमाल होता है. इस कैलिबर की मारक क्षमता ज्यादा होती है, और घने जंगल या शहरी लड़ाई में काफी असरदार होता है.
रेंज: इसकी प्रभावी रेंज करीब 400 मीटर तक मानी जाती है.

फायरिंग स्पीड: यह प्रति मिनट लगभग 600 राउंड (गोलियां) दाग सकती है यानी फुल ऑटोमेटिक मोड में यह बहुत तेजी से फायर करती है.

भार और लंबाई: यह हल्की है करीब 3.8 किलोग्राम इसलिए सैनिक इसे लंबी दूरी तक आसानी से ले जा सकते हैं.

मॉडर्न फीचर्स: इसमें आधुनिक ऑप्टिकल साइट्स, नाइट विजन, लेज़र साइट्स या ग्रेनेड लॉन्चर लग सकते हैं. इसमें बेहतर एर्गोनॉमिक्स है यानी पकड़ना और चलाना आसान है.
साथ ही इसकी मेंटेनेंस आसान है धूल, मिट्टी या पानी में भी जाम नहीं होती। यही AK सीरीज़ की सबसे बड़ी ताकत है

100 फीसदी स्वदेशी: भारत में अब यह अमेठी के कोरवा में बन रही है, जिससे यह पूरी तरह स्वदेशी बन जाएगी.

सैनिकों के लिए यह एक भरोसेमंद और जानलेवा हथियार है इसका गोलों का कैलिबर भारी मारक क्षमता देता है, और लगातार फायरिंग से दुश्मन को पीछे हटने पर मजबूर कर देता है. जंगल, रेगिस्तान, पहाड़ हर जगह यह बिना जाम हुए चल सकती है यही इसे खतरनाक और भरोसेमंद बनाता है.

AK-203 से जुड़ी रोचक बात

शुरुआत में रूस ने AK-103 ऑफर की थी, लेकिन तत्कालीन DG इन्फेंट्री जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने नवीनतम AK-203 और वह भी ‘मेड इन इंडिया’ की मांग की. यही वजह रही कि यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ.

(टीवी9 ब्यूरो रिपोर्ट)

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