
प्राडा और कोल्हापुरी चप्पल.
कोल्हापुरी चप्पलों के डिज़ाइन की नकल करने की आलोचना के बाद फुटवियर की इंटरनेशनल ब्रांड प्राडा’ ब्रांड ने कोल्हापुरी चप्पल उद्योग के साथ जुड़ने के लिए कदम उठाए हैं. बता दें कि इटली से आई प्राडा’ की एक टीम ने कोल्हापुरी चप्पल बनाने वाले कारीगरों से मुलाकात की.
महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर (MACCIA) के सहयोग से प्राडा’ की तकनीकी टीम कोल्हापुर पहुंच गई है. MACCIA के अध्यक्ष ललित गांधी के नेतृत्व में इटली से आई प्राडा’ टीम ने कोल्हापुर का दौरा किया.
कोल्हापुरी चप्पलों को किया था फीचर
दरअसल प्राडा’ ने अपने मिलान में हुए मेन्स 2026 स्प्रिंग/समर शो में भारत की मशहूर कोल्हापुरी चप्पलों को फीचर किया था. प्राडा के रैंप पर मॉडल्स जिन चप्पलों को पहने नजर आए थे वो कोल्हापुरी चप्पल थी या उसे देखकर या फिर उससे इंस्पिरेशन लेकर बनाई गई थी लेकिन इसका किसी तरह का क्रेडिट भारत या कोल्हापुरी चप्पल बनाने वाले कारीगरों को नहीं दिया गया था.
इसके बाद ब्रांड को लोकल कारीगरों को किसी तरह का क्रेडिट ना देने के लिए ट्रोल भी किया गया. इसके बाद प्राडा की टीम ने आधिकारिक बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने पुष्टि की थी कि उनके द्वारा जिस फुटवियर को फीचर किया गया और अपना बताया गया वो असल में भारत की मशहूर कोल्हापुरी चप्पल है.
कोल्हापुर के कारीगरों से मिली PRADA की टीम
बता दें कि कारीगरों ने मुआवजे की मांग की तो मामला बॉम्बे हाई कोर्ट तक पहुंचा, जिसके बाद प्राडा और कारीगर संगठनों के बीच सहयोग की मांग की गई. वहीं अब प्राडा की 6 लोगों की टीम ने कोल्हापुर के कारीगरों से मुलाकात की है. मुलाकात में कारीगरों ने टीम का सम्मान किया. प्राडा की टीम को चप्पलों के बारे में बताया गया, कोल्हापुरी चप्पलें बनाते हुए दिखाई गईं.
इस मुलाकात में प्राडा की टीम कोल्हापुर के कारीगरों से सीधा इन चप्पलों को खरीदे और बेचे. कोल्हापुर के कारीगरों की इच्छा है कि इन चप्पलों को विश्व के अलग-अलग देशों तक पहुंचाया जा सके.
इन राज्यों में मशहूर हैं कोल्हापुरी चप्पलें
कोल्हापुरी चप्पलें महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर समेत सांगली, सतारा और सोलापुर के साथ ही कर्नाटक में हस्तनिर्मित की जाती हैं. चमड़े से बनी ये चप्पलें पूरी तरह से हाथ से बनाई जाती हैं. इनमें कील या फिर सिंथेटिक चीजों का इस्तेमाल नहीं होता है.
कोल्हापुरी चप्पलों को शो में दिखाया
भारत में 400 से 1000 रुपए में मिलने वाली कोल्हापुरी चप्पलों को प्राडा ने अपने शो में दिखाया था और इसकी कीमत 1.25 लाख यानी सवा लाख रखी थी. इन चप्पलों को पहले कापशी, पायटान, बक्कलनाली औक कच्छकडी जैसे नामों से भी जाना जाता था. जिन गांवों में ये बनती थीं आमतौर पर उन्हीं नामों के आधार पर इन चप्पलों को नाम दिया जाता था. 1960 के बाद से इन चप्पलों की मांग तेजी से बढ़ी थी, जिसके बाद साल 2019 में कोल्हापुरी चप्पलों को भौगोलिक संकेतक यानी जीआई टैग मिला था.
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