
सुप्रीम कोर्ट और तिरंगा.
उच्चतम न्यायालय 14 जुलाई को एक महत्वपूर्ण याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें केंद्र सरकार और भारत निर्वाचन आयोग को निर्देश देने की मांग की गई है कि वे किसी भी राजनीतिक दल या धार्मिक संगठन द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के “राजनीतिक या धार्मिक उद्देश्यों” के लिए किए जा रहे उपयोग पर प्रभावी रोक लगाने के लिए कदम उठाएं.
यह याचिका राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 और भारतीय ध्वज संहिता, 2002 के प्रावधानों को सख्ती से लागू करने की मांग करती है, ताकि तिरंगे का सम्मान बना रहे और उसका कोई दुरुपयोग न हो.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ की ओर से इस याचिका पर सुनवाई की जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका
याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया है कि वह केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग को उचित रिट या आदेश जारी कर यह सुनिश्चित करें कि तिरंगे का उपयोग किसी भी राजनीतिक दल या धार्मिक संस्था द्वारा उनके प्रचार या विचारधारा के समर्थन में न किया जाए.
याचिका में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रीय ध्वज पर पार्टी का लोगो, धार्मिक प्रतीक या किसी प्रकार का लेख अंकित करना न केवल असंवैधानिक है बल्कि यह राष्ट्रध्वज की गरिमा के विरुद्ध भी है. इसमें राजनीतिक रैलियों, धार्मिक आयोजनों या चुनाव प्रचार के दौरान तिरंगे का इस्तेमाल रोकने की मांग भी शामिल है.
याचिका पर 14 जुलाई को होगी सुनवाई
भारतीय ध्वज संहिता, 2002 और राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 में तिरंगे के प्रयोग से जुड़ी स्पष्ट व्यवस्थाएं हैं, जिनका उल्लंघन करने पर दंड का प्रावधान है. बावजूद इसके, पिछले कुछ वर्षों में कई अवसरों पर तिरंगे का राजनीतिक और धार्मिक उद्देश्यों के लिए प्रयोग देखा गया है. सुप्रीम कोर्ट में इस बाबत दायर याचिका पर 14 जुलाई को सुनवाई होगी.
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