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धर्म बदला पर नहीं हटा अछूत होने का टैग… SC में हलफनामा, जांच से आयोग का इंकार

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Jul 12, 2025    150813 views     Online Now 345
धर्म बदला पर नहीं हटा अछूत होने का टैग... SC में हलफनामा, जांच से आयोग का इंकार

सुप्रीम कोर्ट

तिरुचिरापल्ली के कोट्टापलायम गांव के दलित ईसाई ग्रामीणों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी. याचिका में उन्होंने आरोप लगाया कि ईसाई धर्म अपनाने के बावजूद उनके साथ जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता रहा है. इसी मामले को लेकर सर्वोच्च अदालत ने 21 फरवरी को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, तमिलनाडु पुलिस और चर्च अधिकारियों समेत अन्य से जवाब मांगा था.

केंद्रीय आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को इस याचिका का जवाब देते हुए कहा कि दलित ईसाई जे दौस प्रकाश समेत अन्य ने मद्रास हाईकोर्ट में राज्य पुलिस के रिपोर्ट पर कोई उत्तर दाखिल नहीं किया. ऐसी स्थित में केंद्रीय आयोग इस मामले को लेकर किसी भी कार्रवाई को आगे नहीं बढ़ा सकता है. आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से याचिकाकर्ताओं के सभी आरोपों को नकारते हुए इस याचिका खारिज करने की मांग की है.

धर्म परिवर्तन के बावजूद भी भेदभाव

याचिका में आरोप लगाया गया है कि ईसाई धर्म अपनाने के बावजूद उनके साथ जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता रहा है. उन्होंने कहा कि उनके साथ अछूत जैसा बर्ताव किया जा रहा है. साथ ही याचिकाकर्ताओं ने इस बात पर दुख जताया कि उन्हें चर्च के उत्सवों में भाग लेने की अनुमति नहीं है और वार्षिक उत्सव के दौरान उनकी गली में कार नहीं आती. उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें चर्च का सदस्य भी नहीं माना जाता और उन्हें सामुदायिक भवन में कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति नहीं दी जाती.

आयोग ने स्पष्ट की अपनी स्थिति

आयोग ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है कि सर्वोच्च अदालत से पहले यह मामला हाईकोर्ट में था, जहां याचिकाकर्ताओं ने पुलिस की रिपोर्ट पर जवाब नहीं दाखिल किया. ऐसे में आयोग आगे कदम नहीं बढ़ा सकता. दूसरी ओर याचिका में कहा गया है कि दलित ईकाईयों ने इस मुद्दे पर जिला और राज्य अधिकारियों को कई बार ज्ञापन दिया, लेकिन किसी भी अधिकारी द्वारा कोई उचित या पूर्ण कार्रवाई नहीं की गई.

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हाईकोर्ट ने रद्द कर दी थी याचिका

याचिका में कहा गया है कि पिछले साल 30 अप्रैल को मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने याचिका खारिज कर दी थी, क्योंकि उसका मानना था कि इस तरह के मुद्दे का समाधान सिविल अदालत में हो सकता है और अंतिम निर्णय राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को करना चाहिए. हाईकोर्ट ने आदेश में यह भी कहा था कि मान लीजिए कि जाति के नाम पर कोई कथित भेदभाव होता है और वह एक सार्वजनिक मुद्दा बन जाता है तो संबंधित अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि जाति के नाम पर ऐसा कोई भेदभाव न हो.

गौरतलब है कि याचिकाकर्ताओं के आवेदन पर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने राज्य पुलिस को पत्र भेजा था, जिन्होंने जांच कर आयोग को रिपोर्ट भेजी. जांच रिपोर्ट हाईकोर्ट में भी दायर की गई, जिसमें पुलिस ने भेदभाव होने की बात से इंकार किया था.

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