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अमेरिका की तकनीक से लैस है रूस के हथियार? रिपोर्ट में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

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Jul 5, 2025    150813 views     Online Now 404
अमेरिका की तकनीक से लैस है रूस के हथियार? रिपोर्ट में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन.

रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को तीन साल हो चुके हैं, और अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने रूस पर भारी पाबंदियां लगा रखी हैं. इसके बावजूद एक नई रिपोर्ट ने दुनिया को हैरान कर दिया है. ये रिपोर्ट इंटरनेशन पार्टनरशिप फॉर ह्यूमन राइट्स (IPHR), इंडिपेंडेंट एंटी करप्शन कमिशन (NAKO) और मीडिया संगठन हंटरबूक ने मिलकर तैयार की है.

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि रूसी फाइटर जेट्स और हथियारों में आज भी अमेरिकी कंपनियों के बनाए पुर्जे इस्तेमाल हो रहे हैं. वो भी ऐसे रास्तों से जिन पर किसी का ध्यान तक नहीं जाता. रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हुआ है कि कैसे ये पार्ट्स तीसरे देशों के जरिए रूस तक पहुंच रहे हैं. तो कैसे पार की गईं ये पाबंदियों की दीवारें? कौन हैं इस छुपे सप्लाई रूट के खिलाड़ी?

पाबंदियों को चकमा देते हुए पहुंचते हैं अमेरिकी पुर्जे

यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने रूस पर व्यापारिक और तकनीकी पाबंदियों की झड़ी लगा दी थी. मकसद था रूस की युद्ध-क्षमता को कमजोर करना. लेकिन इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि रूस ने ‘इंटरमीडिएट ट्रेड रूट्स’ यानी तीसरे देशों के जरिए पश्चिमी तकनीक हासिल करनी जारी रखी. यही वजह है कि रूस के फाइटर जेट्स और मिसाइल सिस्टम में अब भी अमेरिकी कंपनियों के इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स मिल रहे हैं.

तीन संस्थाओं की संयुक्त रिपोर्ट से खुलासा

ये रिपोर्ट इंटरनेशन पार्टनरशिप फॉर ह्यूमन राइट्स (IPHR), इंडिपेंडेंट एंटी करप्शन कमिशन (NAKO) और मीडिया संगठन हंटरब्रूक ने मिलकर तैयार की है. रिपोर्ट में ये भी साफ किया गया है कि इन अमेरिकी कंपनियों की ओर से जानबूझकर कोई गैकानूनी काम नहीं किया गया है. ये पुर्जे अक्सर कई हाथों और देशों से गुजरते हुए रूस पहुंचते हैं जिससे कंपनियों को खुद पता नहीं होता कि उनका सामान आखिर कहां जा रहा है.

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ग्लोबल सप्लाई चेन का गड़बड़झाला

आज के दौर में वैश्विक सप्लाई चेन इतनी जटिल और फैली हुई है कि यह पता लगाना लगभग नामुमकिन हो जाता है कि एक छोटा सा चिप या सर्किट आखिरकार किसके हथियार में लगेगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि रूस ने कई छोटे एशियाई और मध्य एशियाई देशों के जरिए इन पुर्जों को मंगवाने का नेटवर्क बना लिया है. जिससे अमेरिकी पाबंदियों का सीधे उल्लंघन तो नहीं होता, लेकिन मकसद वहीं पूरा हो जाता है.

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