
सालबेग की मजार
विश्व प्रसिद्ध पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि एकता और भक्ति का प्रतीक भी माना जाती है. इस पवित्र यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बल भद्र और बहन सुभद्रा अपने-अपने रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए जाते हैं. इसी यात्रा के दौरान तीनों रथ एक विशेष जगह के सामने रुक जाते हैं. यह जगह है जगन्नाथ भगवान के एक मुस्लिम भक्त, सालबेग की मजार. जगन्नाथ रथ यात्रा की यह परंपरा है, जो सदियों से चली आ रही है और इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी मिलती है. आइए जानते हैं.
पुरी जगन्नाथ मंदिर से चलकर करीब 200 मीटर की दूरी पर जगन्नाथ रथ यात्रा रुक जाती है और कुछ देर ठहरने के बाद ये तीनों रथ फिर से आगे बढ़ते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं आखिर क्या है इसके पीछे की वजह.
मजार के सामने रुकती है जगन्नाथ रथ यात्रा?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सालबेग एक मुगल सूबेदार के बेटे थे और एक बार वो किसी काम से पुरी पहुंचे. वहां उन्होंने भगवान जगन्नाथ की महिमा सुनी, जिसे सुनकर उनके मन में इच्छा जागी कि वे भी भगवान के दर्शन करें. हालांकि, मुस्लिम होने की वजह से सालबेग को पुरी जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं मिली. हालांकि, इस उनकी भक्ति फिर भी कम नहीं हुई और वे भगवान जगन्नाथ के भजन और कीर्तन गाते रहे.
सालबेग पड़ गए थे बीमार
ऐसी मान्यता है कि एक बार सालबेग बीमार पड़ गए और उन्होंने भगवान जगन्नाथ से स्वस्थ होने की प्रार्थना की, जिससे वे पुरी रथ यात्रा में शामिल हो सकें. जब जन्नाथ रथ यात्रा शुरू हुई और सालबेग मंदिर नहीं पहुंच पाए. ऐसे में भगवान जगन्नाथ का रथ अचानक सालबेग की कुटिया के सामने रुक गया. लाख कोशिशों के बाद भी रथ एक इंच भी नहीं हिला. यह देख सभ बहुत परेशान हो गए. तब मंदिर के मुख्य पुजारी को एक सपना आया, जिसमें भगवान जगन्नाथ ने उन्हें बताया कि ‘वे अपने प्रिय भक्त सालबेग का इंतजार करने के लिए रुके हैं’.
सात दिनों तक वहीं रुका रहा रथ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसे में सात दिनों तक भगवान जगन्नाथ का रथ वहीं रुका रहा और मंदिर के सभी अनुष्ठान रथ पर ही पूर्ण किए गए. जब सालबेग ठीक हुए और उन्होंने भगवान के दर्शन किए, तब जाकर रथ आगे बढ़ पाया.
आज भी निभाई जाती है ये परंपरा
सालबेग की इस भक्ति को सम्मान देने के लिए हर साल रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बल भद्र और सुभद्रा के रथ सालबेग की मजार के सामने थोड़ी देर के लिए रुकते हैं. यह ठहराव न सिर्फ सालबेग को श्रद्धांजलि देने का एक तरीका है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भगवान की कृपा और प्यार सभी के लिए एक समान है.
(Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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