उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद जिला विश्व भर में अपने पीतल उद्योग के लिए प्रसिद्ध है. इसके साथ ही, यह जिला स्वतंत्रता संग्राम की गौरवशाली गाथाओं का भी साक्षी रहा है. 1857 की क्रांति में मुरादाबाद के वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति देकर अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ी और देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया. मुरादाबाद की ऐतिहासिक महत्व का एक प्रतीक शहर की सबसे पुरानी कोतवाली मुगलपुरा कोतवाली है. यह कोतवाली न केवल मुरादाबाद की प्रशासनिक व्यवस्था का केंद्र रही, बल्कि इसकी सीमाएं उत्तराखंड के नैनीताल तक फैली हुई थीं, जो इसे एक विशाल क्षेत्र का प्रशासनिक केंद्र बनाती थी.
मुगलपुरा कोतवाली का इतिहास 1857 की क्रांति से जुड़ा हुआ है. उस समय मुरादाबाद के कुछ हिस्सों पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था. रामगंगा नदी के किनारे से 100-200 मीटर की दूरी पर स्थित इस कोतवाली का नाम उस दौर में क्षेत्र के नाम पर पड़ा, जिसे ‘मुगलपुरा’ कहा जाता था. अंग्रेजी शासनकाल में यह कोतवाली मुरादाबाद जिले का सबसे महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र थी.
इतिहासकारों के अनुसार, इसकी सीमा काशीपुर से लेकर नैनीताल तक विस्तृत थी. उस समय उत्तराखंड के कई क्षेत्र, जैसे उधम सिंह नगर (तब उज्जैन के नाम से जाना जाता था) और नैनीताल, मुगलपुरा कोतवाली के अधीन आते थे. आज भी उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में मुगलपुरा का नाम देखने को मिलता है, जो इस ऐतिहासिक कोतवाली की विशालता को दर्शाता है.
1857 की क्रांति से जुड़ा है इतिहास
1857 की क्रांति के दौरान मुगलपुरा कोतवाली अंग्रेजी प्रशासन का महत्वपूर्ण केंद्र थी. जब स्वतंत्रता संग्राम की आग मुरादाबाद में भड़कीं, तो क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया. इस विद्रोह ने अंग्रेज अधिकारियों को शहर छोड़ने पर मजबूर कर दिया. इतिहास बताता है कि मुगलपुरा कोतवाली से भागने वाले कुछ ऐसे अंग्रेज अधिकारी थे, जो क्रांतिकारियों के दबाव में अपनी जान बचाकर भागे. इस दौरान कोतवाली ने स्वतंत्रता संग्राम के कई महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को देखा और यह क्रांतिकारियों के लिए एक रणनीतिक केंद्र बन गया. उस समय मुरादाबाद से नैनीताल की दूरी, जो आज सड़क मार्ग से लगभग 117 किलोमीटर और तीन घंटे की यात्रा है, तब घोड़ों और पैदल यात्रा के माध्यम से तय की जाती थी.
कानून-व्यवस्था बनाए रखने का केंद्र
पुलिस गश्त के लिए निकलने वाली टीमें हफ्तों तक जंगलों और कठिन रास्तों से होकर नैनीताल पहुंचती थीं. उस दौर यात्रा करना आसान नहीं था. घने जंगलों, असुरक्षित रास्तों और जंगली जानवरों के खतरे के बीच पुलिस टीमें गश्त करती थीं, जिसके कारण एक गश्त का दौर पूरा होने में कई सप्ताह लग जाते थे. यह कोतवाली न केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखने का केंद्र थी, बल्कि क्षेत्र की सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी गवाह रही.
ऐतिहासिक विरासत को संजोए हुए
मुगलपुरा कोतवाली मुरादाबाद शहर के एक महत्वपूर्ण हिस्से में स्थित है और अपनी ऐतिहासिक विरासत को संजोए हुए है. यह कोतवाली न केवल प्रशासनिक महत्व रखती है, बल्कि मुरादाबाद के स्वतंत्रता संग्राम और ऐतिहासिक गौरव की कहानियों को भी जीवंत रखती है. उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में आज भी ‘मुगलपुरा’ नाम के बोर्ड देखे जा सकते हैं, जो इस कोतवाली के विशाल प्रभाव क्षेत्र की याद दिलाते हैं. यह कोतवाली मुरादाबाद के गौरवशाली अतीत और स्वतंत्रता संग्राम में इसके योगदान का प्रतीक है.
[ Achchhikhar.in Join Whatsapp Channal –
https://www.whatsapp.com/channel/0029VaB80fC8Pgs8CkpRmN3X
Join Telegram – https://t.me/smartrservices
Join Algo Trading – https://smart-algo.in/login
Join Stock Market Trading – https://onstock.in/login
Join Social marketing campaigns – https://www.startmarket.in/login