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क्या इजराइल के हमलों का समर्थन करते हैं ईरान में रहने वाले यहूदी?

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Jun 19, 2025    150819 views     Online Now 264
क्या इजराइल के हमलों का समर्थन करते हैं ईरान में रहने वाले यहूदी?

ईरान-इजराइल जंग के बीच सबसे ज़्यादा उलझन में है ईरान का यहूदी समुदाय.

एक तरफ इजराइल और ईरान के बीच खुलकर जंग छिड़ी है. दोनों देशों के नेताओं की तरफ से बयानबाजी भी जारी है. वहीं दूसरी तरफ एक ऐसा तबका भी है जो इस पूरी जंग के बीच बड़ी उलझन में फंसा है. ये हैं ईरान में रहने वाले यहूदी. ये उस ईरान में रहते हैं जहां इजराइल को दुश्मन कहा जाता है, वहां आज भी हजारों यहूदी रहते हैं, अपने धर्म का पालन करते हैं, और एक पहचान के साथ जीते हैं.

ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या ये यहूदी इजराइल के समर्थन में हैं? या ईरान के साथ खड़े हैं? और सबसे अहम इस वक्त जब तेहरान, इस्फहान और शिराज जैसे यहूदी आबादी वाले शहरों पर बमबारी हो रही है, तो इन लोगों के मन में डर है, गुस्सा है, या असमंजस? आइए जानते हैं.

ईरान में यहूदी कौन हैं और कहां रहते हैं?

ईरान में यहूदी समुदाय की जड़े हजारों साल पुरानी है. माना जाता है कि बेबेलुनियन निर्वासन के दौरान यहूदी लोग ईरान(तब का फारस) आए और यहीं बस गए. आज ईरान में अनुमानित 9 हजार से 15 हजार यहूदी रहते हैं जिनमें से आधे से ज्यादा तेहरान में हैं. इसके अलावा शिराज, इस्फहान और यज्द जैसे शहरों में भी यहूदी समुदाय मौजूद हैं.

तेहरान में तो एक दर्जन से ज्यादा सिनेगॉग (यहूदी पूजा स्थल), कोशर मीट की दुकानों, यहूदी पुस्तकालय और यहां तक कि एक यहूदी अखबार तक की मौजूदगी है. ईरान का संविधान यहूदियों को धार्मिक स्वतंत्रता देता और संसद में उनके लिए एक सीट भी आरक्षित है. मौजूद प्रतिनिधि होमायून सामेह हैं जिन्हें 2020 में चुना गया था.

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इजराइल-ईरान जंग में क्या सोचते हैं ईरानी यहूदी?

जब इजराइल ने हाल ही में ईरान के कई शहरों पर एयरस्ट्राइक की, तो तेहरान और इस्फहान जैसे शहर भी निशाने पर थे, जहां यहूदी समुदाय रहता है. इस हमले के बाद ईरानी संसद में यहूदी प्रतिनिधि होमायून सामेह ने इजराइल की निंदा करते हुए कहा कि ये हमला साबित करता है कि इजराइल एक बर्बर, बच्चों की हत्याएं करने वाला शासन है. ईरान को ऐसा जवाब देना चाहिए जिसे वो कभी न भूलें. इसी तरह इस्फहान की यहूदी कम्युनिटी एसोसिएशन ने भी इजराइल के हमले की निंदा की और इसे अमानवीय करार दिया.

डर सरकार का नहीं, भीड़ का है

ईरान में रहने वाले यहूदी आज सबसे ज्यादा जिस चीज से डरते हैं, वो है भीड़ का गुस्सा. उन्हें डर है कि इजराइल के हमलों का गुस्सा आम जनता उनके ऊपर ना उतार दे. कहीं कोई लिंचिंग न हो जाए, या कोई हिंसा न कर बैठे. इस्लामिक शासन के बावजूद ईरानी यहूदी खुद को पहले ईरानी और फिर यहूदी मानते हैं. उनका मानना है कि यह देश उनका घर है, उनके पूर्वज यहीं रहे, और वो जब चाहें, तब देश छोड़ सकते हैं पर उन्होंने नहीं छोड़ा.

धार्मिक आज़ादी है, पर सिविल राइट्स में पाबंदियां

ईरान में यहूदी अपनी धार्मिक रीति-रिवाज बिना रोक-टोक निभाते हैं. त्योहार मनाते हैं, पूजा करते हैं, स्कूल चलाते हैं. पर जब बात सिविल राइट्स या राजनीतिक आजादी की आती है तो वहां तस्वीर उतनी आसान नहीं है. ईरान में शरीयत कानून लागू है, जो मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच भेद करता है, गैर-मुस्लिम सीनियर सरकारी पदों पर नहीं बैठ सकते, जज नहीं बन सकते और सेना में कमांडर की भूमिका नहीं निभा सकते. कोर्ट में एक यहूदी की गवाही एक मुसलमान की तुलना में कम वज़न रखती है. हालांकि जानकार मानते हैं कि ये भेदभाव सिर्फ यहूदियों के लिए नहीं, बल्कि हर धार्मिक अल्पसंख्यक के लिए है — चाहे वो जरथुस्त्री हों या आर्मीनियन क्रिश्चियन.

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एक दौर वो भी था….

1925 में जब रेजा शाह पहलवी सत्ता में आए, तो यहूदियों के लिए एक सुनहरा दौर शुरू हुआ. उन्होंने जबरन धर्म परिवर्तन पर रोक लगाई, यहूदियों को सरकारी नौकरी दी, और यहां तक कि यहूदी स्कूलों में हिब्रू भाषा की पढ़ाई भी अनुमति दी. इस्फहान की एक सिनेगॉग में उन्होंने खुद प्रार्थना की थी, जो यहूदी समुदाय के साथ एकजुटता का प्रतीक माना गया.

फिर आई क्रांति और पलायन का दौर

1979 में इस्लामिक क्रांति आई. शाह को सत्ता से हटाया गया. हालांकि अयातुल्ला खुमैनी ने यहूदियों को सुरक्षा देने का फ़तवा जारी किया और ज़ायोनिज्म (इज़राइल समर्थक सोच) और यहूदियों में फर्क बताया. फिर भी डर का माहौल बना. इस्लामिक क्रांति से पहले करीब 80 हजार यहूदी रहा करते थे. एक यहूदी व्यापारी हबीब एलघानियन को इज़राइल से संपर्क रखने के आरोप में फांसी दी गई. उसके बाद करीब 60,000 यहूदी देश छोड़कर इज़राइल और अमेरिका चले गए.

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