ईरान और इजराइल के बीच चल रही जंग अपने पीक पर पहुंच चुकी है. तेहरान को खाली कराने बातें सामने आ रही हैं. दोनों ओर से बमवर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही है. आने वाले दिनों में क्या होगा कोई नहीं जानता. वैसे कुछ देशों ने ईरान और इजराइल के बीच वॉर खत्म करने को लेकर मध्यस्थता कराने की बात कही है. जिसमें रूस का नाम भी सामने आया है. लेकिन कहानी कुछ और भी हो सकती है. ऐसे में ईरान के पड़ोसी देश ने एक ऐसी चेतावनी दे डाली है कि अगर ये युद्ध लंबा खिंच गया तो दुनिया में एक ऐसी तबाही मचेगी जो न्यूक्लीयर बम से भी ज्यादा खतरनाक होगी. इसकी चपेट में भारत समेत दुनिया के 50 से ज्यादा देश आ सकते हैं. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर ऐसा कौन सा हथियार है जोकि दुनिया के 50 से ज्यादा देशों में तबाही मचा सकता है.
ईरान के पड़ोसी की चेतावनी
ईरान और इजराइल के बीच का संघर्ष दुनिया में एनर्जी क्राइसिस पैदा सकता है. ईरान के पड़ोसी देश इराक के विदेश मंत्री ने चेतावनी दी है कि अगर स्थिति बिगड़ती है, तो तेल की कीमतें तेजी से बढ़ सकती हैं, खासकर अगर होर्मुज जलडमरूमध्य जैसे महत्वपूर्ण एनर्जी रूट अवरुद्ध हो जाते हैं. इराक के डिप्टी प्राइम मिनिस्टर और फॉरेन मिनिस्टर फौद हुसैन ने कहा कि तेल की कीमतें 200-300 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ सकती हैं. उन्होंने जर्मन विदेश मंत्री जोहान वेडफुल के साथ इस पर चर्चा की. हुसैन ने कहा कि होर्मुज स्ट्रेट के बंद होने से बाजार से प्रतिदिन पांच मिलियन बैरल तेल निकल सकता है. इसमें से अधिकांश तेल फारस की खाड़ी और इराक से आता है. जिसका असर कच्चे तेल की कीमतों में देखने को मिल सकता है. शुक्रवार को ब्रेंट क्रूड वायदा 7 फीसदी उछलकर 74.23 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया था जबकि कारोबारी सत्र के दौरान ब्रेंट क्रूड ऑयल यह 13 फीसदी से अधिक बढ़कर 78.50 डॉलर के हाई पर चला गया था. रात भर हुए हमलों के बाद शुक्रवार को कच्चे तेल की कीमतें एक समय 13 प्रतिशत से अधिक बढ़ गईं – जो जनवरी के बाद से उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं थी.
क्या मौजूदा कीमतें?
अगर बात मौजूदा समय की करें तो इंटरनेशनल मार्केट में ब्रेंट क्रूड ऑयल 1.27 फीसदी की तेजी के साथ 74.13 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा है. खास बात तो ये है कि 10 जून के बाद ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतों में 8 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा यानी 11 फीसदी की तेजी देखने को मिल चुकी है. वहीं दूसरी ओर अमेरिकी कच्चे तेल की कीमतों बात करें तो अमेरिकी ऑयल की कीमतों में 1 फीसदी की तेजी देखने को मिल रही है. मौजूदा समय में दाम 71 डॉलर प्रति बैरल पर है. वैसे 4 जून के बाद से अमेरिकी कच्चेल की कीमतों में 13 फीसदी का इजाफा देखने को मिल रहा है. जानकारों के अनुसार कच्चे तेल की कीमतों में कितना इजाफा देखने को मिल सकता है.
दुनिया में कैसे तबाही मचा सकता है तबाही?
कच्चे तेल की कीमतें कैसे तबाही मचा सकता है इसके लिए हमें कुछ साल पहले रूस यूक्रेन वॉर के पन्नों को पलटना होगा. जब रूसी कच्चे पर लगे प्रतिबंधों की वजह से इंटरनेशनल मार्केट में ब्रेंट क्रूड ऑयल के दाम 135 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा हो गए थे. उस समय सिर्फ रूसी तेल प्रभावित हुआ था और खाड़ी देशों के तेल की सप्लाई में कोई व्यवधान नहीं था. उसके बाद भी क्रूड ऑयल की कीमतों में जबरदस्त इजाफा देखने को मिला था और दुनिया में महंगाई अपने पीक पर पहुंच गई थी. तब ग्लोबल इंफ्लेशन रेट 8.7 फीसदी पर था. अमेरिका और भारत समेत पूरे यूरोप के सेंट्रल बैंकों को अपनी ब्याज दरों में इजाफा करना पड़ा था. अगर कच्चे तेल के दाम 200 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए तो पूरी दुनिया में महंगाई का लेवल पर समझ जाइए क्या हो सकता है. एक एक्सपर्ट ने नाम ना प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि अगर कच्चे तेल के दाम 200 डॉलर प्रति बैरल पर आते हैं तो दुनिया की औसत महंगाई दर 16 से 20 फीसदी के बीच देखने को मिल सकती है.
भारत पर असर: उदाहरण के तौर पर समझें
भारत अपनी तेल ज़रूरतों का 85 फीसदी इंपोर्ट से पूरा करता है. कीमतों में उछाल से सरकार के पास सामाजिक कल्याण खर्च के लिए बहुत कम वित्तीय जगह बचेगी, क्योंकि इंपोर्ट और फ्यूल/फर्टीलाइजर सब्सिडी बिलों में वृद्धि होगी, जिससे चालू खाता घाटा प्रभावित होकर रुपया कमजोर होगा. कुल मिलाकर इसका असर जीडीपी ग्रोथ पर पर भी पड़ सकता है. तेल की कीमतों में निरंतर वृद्धि से व्यापक महंगाई का दबाव देखने को मिल सकता है. हालांकि, इसका सटीक प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि कीमतें कितने समय तक ऊंची रहेंगी.
ईवाई इंडिया के मुख्य नीति सलाहकार डीके श्रीवास्तव के अनुसार, देश का क्रूड ऑयल बास्केट, जो 2025-26 की शुरुआत में औसतन 64.3 डॉलर प्रति बैरल था, अगर कीमतें फिर से बढ़ती हैं, तो यह अपनी प्रवृत्ति को उलट सकता है. उन्होंने कहा कि तेल की कीमत में 10 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि रियल जीडीपी ग्रोथ को 0.3 फीसदी कम कर सकती है और रिटेल महंगाई को 0.4 फीसदी तक बढ़ा सकती है.
दुनिया के बाकी देशोें पर भी कुछ ऐसा ही असर
दुनिया में 50 से ज्यादा देश ऐसे हैं जो अपनी जरुरत का 60 से 90 फीसदी तक कच्चा तेल इंपोर्ट करते हैं. उन देशों की करेंसी की स्थिति भारत के मुकाबले में डॉलर से और भी ज्यादा खराब है. जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश, कई अफ्रीकी देश भी शामिल हैं. भारत का विदेशी मुद्रा भंडार दुनिया के कई देशों से ज्यादा है. ऐसे में वो कई महीनों तक महंगे कच्चे तेल का इंपोर्ट भी कर सकता है. इसके लिए कई ऑयल प्रोड्यूसर्स के साथ भारत के संबंध भी काफी अच्छे हैं. दुनिया के फाइनेंशियल लॉबी में भारत का क्रेडिट स्कोर भी दुनिया के कई देशों से काफह बेहतर है. ऐसे में कई देशों को महंगाई और कई तरह के फाइनेंशियल क्राइसिस के गुजरना पड़ सकता है. जिसका असर ओवरऑल ग्लोबल इकोनॉमी में देखने को मिल सकता है.
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