सुप्रीम कोर्ट ने को राजस्थान की बिजली वितरण कंपनियों की उस अपील को खारिज कर दिया जिसमें अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड (एपीआरएल) के पक्ष में दिए गए बिजली अपीलीय न्यायाधिकरण के फैसले को चुनौती दी गई थी. इस आदेश के तहत अडानी पावर राजस्थान को 186 करोड़ रुपए का मोटा भुगतान होना था. न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड और राजस्थान बिजली वितरण कंपनियों की अपील में कोई दम नहीं है. पीठ ने बिजली अपीलीय न्यायाधिकरण (एपीटीईएल) के उस निष्कर्ष को बरकरार रखा कि कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) द्वारा लगाया गया निकासी सुविधा शुल्क ‘कानून में बदलाव’ है, जो अडानी पॉवर को बिजली खरीद समझौते (पीपीए) के तहत मुआवजे का हकदार बनाता है.
कुछ ऐसा है मामला
हालांकि, अदालत ने कहा कि अडानी ने 2017 में अधिसूचना जारी होने के तुरंत बाद कानून में बदलाव की सूचना नहीं दी थी. राजस्थान की चार डिस्कॉम – जयपुर विद्युत वितरण निगम, अजमेर विद्युत वितरण निगम, जोधपुर विद्युत वितरण निगम और राजस्थान ऊर्जा विकास निगम (अब राजस्थान ऊर्जा विकास और आईटी सर्विसेज) – ने आरोप लगाया था कि एप्टेल ने अडानी के पक्ष में भारी मुनाफा/अप्रत्याशित लाभ की अनुमति दी थी, जबकि मुकदमे में देरी के लिए अडानी को ही दोषी ठहराया गया था.
2009 में, अदानी पावर ने प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया में राजस्थान के कवाई पावर प्रोजेक्ट में उत्पादित 1200 मेगावाट बिजली की सप्लाई के लिए डिस्कॉम को अनुबंध प्राप्त किया था, ताकि राज्य की बिजली आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके. चारों डिस्कॉम ने 3.238 रुपये प्रति यूनिट के स्तरीकृत टैरिफ पर 1200 मेगावाट कुल अनुबंधित क्षमता की आपूर्ति के लिए अदानी पावर के साथ एक बिजली पीपीए में प्रवेश किया था. इस समझौते को राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग ने भी मंजूरी दी थी.
कोल इंडिया ने जारी किया था नोटिफिकेशन
उसके बाद कोल इंडिया लिमिटेड ने दिसंबर, 2017 में एक अधिसूचना जारी कर 50 रुपये प्रति टन का निकासी सुविधा शुल्क (ईएफसी) लगा दिया था. इसे अडानी पॉवर ने पीपीए के अनुच्छेद 10 के तहत ‘कानून में बदलाव’ बताते हुए मुआवजे की मांग की थी. बिजली वितरण कंपनियों से कोई जवाब न मिलने पर अडानी ग्रुप की कंपनी ने राजस्थान विद्युत नियामक आयोग (आरईआरसी) से संपर्क किया, जिसने आंशिक रूप से उसके दावों को स्वीकार कर लिया. इसके बाद दोनों पक्षों ने एपीटीईएल से संपर्क किया, जिसने अप्रैल 2024 में अडानी पावर के पक्ष में फैसला सुना दिया था.
न्यायमूर्ति सुंदरेश ने पीठ के लिए लिखे फैसले में कहा कि सीआईएल जैसी सरकारी इकाई द्वारा नया वैधानिक शुल्क लगाना कानून में बदलाव के बराबर है. ऐसी स्थिति में बिजली उत्पादक को पुरानी आर्थिक स्थिति में वापस लाने के लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए. एपीटीईएल ने अपने फैसले में कहा था कि एपीआरएल उस तारीख से मुआवजे की हकदार होगी, जिस दिन कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा जारी अधिसूचना लागू की गई थी.
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