
मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई.
महाराष्ट्र एवं गोवा बार काउंसिल की ओर से रविवार को सुप्रीम कोर्ट के नवनियुक्त मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई के सम्मान में एक समारोह का आयोजन किया गया. इस अवसर पर मुख्य न्यायाधीश ने महाराष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारियों की अनुपस्थिति पर नाराजगी व्यक्त की है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि लोकतंत्र के तीन स्तंभ न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका समान हैं. संविधान के प्रत्येक अंग को दूसरों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि अगर भारत के मुख्य न्यायाधीश पहली बार महाराष्ट्र का दौरा कर रहे हैं और राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और मुंबई पुलिस आयुक्त को वहां उपस्थित रहना उचित नहीं लगता है, तो उन्हें इस पर विचार करने की जरूरत है. प्रोटोकॉल में कुछ भी नया नहीं है. यह एक संवैधानिक संस्था से दूसरी संवैधानिक संस्था के प्रति सम्मान का मामला है.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जब किसी संवैधानिक संस्था का प्रमुख पहली बार राज्य के दौरे पर आता है, तो उसका किस तरह से स्वागत किया जाता है, इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए. अगर ऐसी स्थिति में हममें से कोई होता, तो अनुच्छेद 142 के बारे में चर्चा हो सकती थी.
सम्मान समारोह में भावुक हो गये मुख्य न्यायाधीश
इस कार्यक्रम में बोलते हुए मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई काफी भावुक हो गए. आप सभी की शुभकामनाओं और प्यार से मैं अभिभूत हूं. उन्होंने कहा कि शपथ लेते ही देश की जनता ने मुझे प्यार दिया. आज की घटना जीवन के अंत तक याद रहेगी. मेरी यात्रा अमरावती जिले से शुरू हुई, जहां मैंने नगरपालिका स्कूल में पढ़ाई की और बड़ा हुआ हूं. आज मैं जो कुछ भी हूं, मेरे माता-पिता की वजह से हूं. डॉ गवई ने कहा है कि इसमें बाबासाहेब आंबेडकर के विचारों की बड़ी भूमिका है.
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि मेरे पिता ने मेरे जीवन में प्रमुख भूमिका निभाई है. मेरे पिता वकील बनना चाहते थे, लेकिन किसी कारणवश वे अपना सपना पूरा नहीं कर सके, इसलिए उन्होंने मुझमें वह सपना देखा. मैंने राजाभाऊ से कानून की पढ़ाई शुरू की और वहीं से मेरी यात्रा शुरू हुई.
मैंने अपने पिता का सपना पूरा किया
उन्होंने कहा कि मैंने मुंबई में काम किया, फिर नागपुर आ गया. जब मैंने दस साल तक वकालत की, तो विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री बने और फिर उन्होंने मुझे नागपुर में सरकारी वकील के रूप में काम करने के लिए कहा. फिर, 40 साल की उम्र में, मैं सुप्रीम कोर्ट गया. उसके बाद मैं वरिष्ठ अधिवक्ता बन गया. कई जगह कठिनाइयां आईं, लेकिन रास्ता निकल आया. मैंने अपने पिता का सपना पूरा किया.
उन्होंने कहा कि यहां 2003 और 2019 की घटना का उल्लेख करना आवश्यक है. इतने वर्षों के बाद भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए अभी तक कोई न्यायाधीश नहीं है. उसके बाद मुझसे पूछा गया कि इस दौरान मैं कई अच्छे निर्णय ले पाया. नागपुर में कई झुग्गी-झोपड़ियां थीं. उस समय, मैं बहुत मूल्यवान निर्णय देने में सक्षम था.
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