
सीजेआई बीआर गवई
जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने बीते 14 मई (बुधवार) को भारत के 52वें चीफ जस्टिस (CJI) के रूप में शपथ ली. उन्होंने जस्टिस संजीव खन्ना की जगह ली. जस्टिस गवई का कार्यकाल कई महत्वपूर्ण फैसलों से भरा रहा है. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कुछ ऐसे अहम फैसले दिए जिसकी वजह से वो काफी सुर्खियों में रहे. आर्टिकल 370 को हटाने, चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करने और नोटबंदी जैसे जैसे मामलों में उन्होंने अहम भूमिका निभाई है
जस्टिस गवई का कार्यकाल 14 मई से 25 नंवबर 2025 तक रहेगा. इससे पहले वह सुप्रीम कोर्ट के जज के रुप में कार्यभार संभाल रहे थे. लेकिन क्या आपको पता है कि वह जज का प्रस्ताव स्वीकार करने को लेकर काफी अजमंजस में थे. इस बात का खुलासा खुद जस्टिस गवई ने किया है. आइए जानते हैं कि इस बात को लेकर जस्टिस गवई ने क्या कहा?.
जज का प्रस्ताव स्वीकार करने में था असमंजस
जस्टिस गवई ने बताया कि वह इस बात को लेकर निश्चित नहीं थे कि वह जज का प्रस्ताव स्वीकार करें या नहीं. उन्होंने बताया ‘मेरे पिता ने मुझसे कहा था कि अगर आप वकील रहोगे तो भले ही पैसे कमा लोगे, लेकिन जब आप जज बनोगे तो डॉ. आंबेडकर की सोच और परंपरा को आगे ले जाओगे. मुझे इस बात की खुशी हो रही है मैंने अपने पिता की बात मानी और जज के प्रस्ताव को स्वीकार किया’.
‘जितना भी काम किया सर्वश्रेष्ठ दिया’
जस्टिस गवई ने कहा ‘मैंने अपने पिता की बात मानकर 22 साल तक हाईकोर्ट में जज और 6 साल तक सुप्रीम कोर्ट के जज के रुप में काम किया’. इसके आगे उन्होंने कहा ‘मुझे यह बताने में खुशी हो रही है कि मैंने अपने इस कार्यकाल के दौरान अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिया. मुझे अपने काम से कोई शिकायत नहीं रही. मैंने हमेशा से राजनितिक और सामाजिक न्याय को ध्यान में रखकर फैसला किया है’. इसके बाद उन्होंने केशवानंद भारती केश का भी जिक्र करते हुए कहा कि केशवानंद भारती में फैसला हमेशा हमारे पक्ष में रहा. केशवानंद भारती में यह संकल्प लिया गया कि मौलिक अधिकार भारत के संविधान की आत्मा है.
जस्टिस गवई के कुछ अहम फैसले
जस्टिस गवई पहले तो जज बनना नहीं चाहते थे लेकिन जज बनने के बाद उन्होंने जो फैसले लिए उसके बाद हर जगह उनके फैसले की तारीफ होने लगी. उन्होंने अपने कार्यकाल में कुछ अहम फैसले लिए हैं जिनका समाज पर काफी असर पड़ा, जैसे नोटबंदी, बलडोजर प्रथा पर रोक, राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों की रिहाई आदि प्रमुख हैं. अब उनके सामने सुप्रीम कोर्ट में करीब 81,000 से ज्यादा लंबित मामलों को निपटाने और वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सुनवाई करने की बड़ी जिम्मेदारी है, जिस पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं.
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