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आरक्षित वन भूमि संबंधित विभाग को सौंपे… सुप्रीम कोर्ट का राज्यों और केद्रशासित प्रदेशों को आदेश

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May 16, 2025    15087 views     Online Now 273
आरक्षित वन भूमि संबंधित विभाग को सौंपे... सुप्रीम कोर्ट का राज्यों और केद्रशासित प्रदेशों को आदेश

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश जारी करते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे राजस्व विभाग के कब्जे में मौजूद उन सभी भूखंडों को, जिन्हें वन भूमि के रूप में चिह्नित किया गया है, तीन महीने के भीतर वन विभाग को सौंप दें. मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने यह निर्देश पुणे जिले के कोंढवा बुद्रुक में आरक्षित वन भूमि के अवैध आवंटन से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान दिया.

शीर्ष अदालत ने अपने 88 पन्नों के विस्तृत फैसले में इस मामले को राजनेताओं, नौकरशाहों और बिल्डरों की साठगांठ का उदाहरण बताया, जिसमें कीमती वन भूमि को व्यावसायिक उपयोग के लिए गलत तरीके से परिवर्तित किया गया.

जांच के लिए विशेष टीमों के गठन का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को निर्देश दिया है कि वे विशेष जांच दल (SIT) गठित करें, जो यह जांच करें कि कहीं वन भूमि को गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए किसी निजी संस्था या व्यक्ति को गैरकानूनी रूप से आवंटित तो नहीं किया गया.

साथ ही अदालत ने राज्य सरकारों को यह भी निर्देश दिया कि वे ऐसे भूखंडों की पहचान के लिए विशेष टीमें बनाएं और यह सुनिश्चित करें कि सभी चिन्हित भूखंड एक वर्ष की अवधि के भीतर वन विभाग को सौंप दिए जाएं.

जानें सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में क्या कहा

अदालत ने 28 अगस्त 1998 को महाराष्ट्र के पुणे जिले के कोंढवा बुद्रुक में 11.89 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि को कृषि उद्देश्य के लिए आवंटित करने और बाद में 30 अक्टूबर 1999 को RRRCHS (रॉयल रेसीडेंशियल को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी) को बेचने को पूरी तरह से अवैध ठहराया है. इसके साथ ही, 3 जुलाई 2007 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गई पर्यावरण मंजूरी को भी सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया.

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मुख्य न्यायाधीश ने फैसला लिखते हुए टिप्पणी की कि यह मामला इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि कैसे राजनेता, अधिकारी और बिल्डर आपस में मिलकर पिछड़े वर्ग के लोगों के पुनर्वास की आड़ में कीमती वन भूमि को व्यावसायिक हितों के लिए इस्तेमाल करते हैं.

पीठ ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि तत्कालीन राजस्व मंत्री और संभागीय आयुक्त ने सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत को पूरी तरह दरकिनार कर दिया. रिकॉर्ड में दर्ज तथ्य स्पष्ट रूप से इन कृत्यों को उजागर करते हैं.”

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