
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप.
डोनाल्ड ट्रंप जिस गाजे-बाजे के साथ आए थे, अभी तक उस स्थिति में कोई खास फेरबदल नहीं हुआ है. उनके विरोधी उनको तनिक भी पसंद नहीं करते. दूसरी तरफ़ उनके समर्थक पूरी तरह उनके साथ हैं. शुरू-शुरू उनके टैरिफ़ अभियान के चलते अमेरिकन्स थोड़े सहमे ज़रूर थे पर अब वे भी मौन हैं. यद्यपि USA में कई सर्वेक्षण में उनके 100 दिनों के कार्यकाल में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ़ नीचे की ओर दिखाया गया है. किंतु इनकी सच्चाई पर संदेह है. बोस्टन में भारतीय मूल के वैज्ञानिक महेंद्र सिंह बताते हैं कि इन सर्वे पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता. अमेरिकन्स टोरी पार्टी की तरफ़ से कुछ दूर तो हुए हैं मगर अभी भी श्वेत अमेरिकियों का बड़ा हिस्सा रूढ़िवादी रिपब्लिकन पार्टी के प्रति समर्पित है. ऊपर अब से अश्वेत अमेरिकी भी ट्रंप को पसंद करने लगे हैं.
बहबूदी जताने में उस्ताद हैं ट्रंप
इसीलिए ट्रंप अपना बड़बोलापन दिखाने में खूब उस्ताद हैं. अभी 10 मई को जब भारत और पाकिस्तान में सीजफ़ायर हुआ तो उसका श्रेय ट्रंप ले गए. अपनी बहबूदी दिखाने में वो क़तई नहीं चूकते. उन्होंने राष्ट्रपति बनते ही रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त करने और इज़राइल-हमास की लड़ाई ख़त्म करवाने की घोषणा की थी. पर ऐसा करवा नहीं सके. बस यह किया कि यूक्रेन को नाटो की सहायता बंद करवा दी और बदले में जेलेंस्की पर दबाव डालकर यूक्रेन की खनिज संपदा पर अमेरिका का हक़ जमवा लिया. अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में उनकी छवि एक चतुर व्यापारी की है, जो हर आपदा में अवसर तलाश लेता है. कनाडा, मैक्सिको पर उन्होंने आयात कर बढ़ाया और बदले में इन देशों ने भी शुरू में तेवर तो दिखाए किंतु जल्द ही अमेरिका से व्यापार घाटे के चलते उनके तेवर नरम पड़ गए.
सबसे बड़ा ख़रीददार है USA
यही बात आज वो भारत और पाकिस्तान के संदर्भ में भी कह रहे हैं. उन्होंने मंगलवार को कहा, हमने ट्रेड कूटनीति खेली. हमने इन देशों से साफ़ कह दिया कि युद्ध बंद करोगे तब ही अमेरिका तुम्हारे साथ व्यापार करेगा. यह सच है कि अमेरिका आज भी दुनिया के सबसे धनी देशों में तो है ही. उसकी सबसे बड़ी ताक़त है आम अमेरिकन्स की खरीद क्षमता. भले अमेरिका से व्यापार में चीन होड़ ले रहा हो पर दुनिया भर का माल आज भी अमेरिका ही खरीदता है. चीन को भी अपना माल बेचना होगा तो वह भी अमेरिका की शरण लेगा. अमेरिका (USA) माल बनाता कम है, ख़रीदता अधिक है. यही चीज़ उसे आज भी सबसे ऊपर रखती है. दूसरे उसके पास आज भी दुनिया की सर्वोत्तम युद्ध सामग्री है. गिनती में एटम बम उसके पास रूस के मुक़ाबले कम हों लेकिन दूर तक मार करने वाली मिसाइलें और युद्धक विमान, जल पोत उसके पास सबसे अधिक हैं.
रूस की दोस्ती
1971 में उसने अपना नौसैनिक जहाज (सातवां बेड़ा) भारत की तरफ भेजकर सनसनी फैला दी थी. उस समय भारत की सेनाएं पश्चिमी और पूर्वी मोर्चे पर पाकिस्तानी फ़ौजों से टकरा रही थीं. तब अमेरिका खुल्लम-खुल्ला पाकिस्तान के साथ था और सोवियत संघ (रूस) भारत की तरफ़ लेकिन वह शीत युद्ध का दौर था. 1990 के बाद से स्थितियां बदल गई हैं. 1991 में सोवियत संघ के बिखराव के बाद से रूस आर्थिक मोर्चे पर कमजोर पड़ चुका है. इसके अतिरिक्त 2022 की फरवरी में जब यूक्रेन से उसने युद्ध शुरू किया, तब अमेरिका ने उससे व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया. नाटो (NATO) देशों ने उससे तेल खरीदना बंद कर दिया था. अलबत्ता भारत ने इस प्रतिबंध को नहीं माना था और उसने रूस से व्यापार जारी रखा. भारत को ख़ामियाज़ा भी उठाना पड़ा.
भारतीयों ने ट्रंप का साथ दिया
उस समय ट्रंप के पूर्ववर्ती जो बाइडेन ने भारत में सिख आतंकवाद के नेताओं को अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर प्रश्रय दिया. इसके लिए उन्होंने कनाडा और वहां के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का भी इस्तेमाल किया था. इसलिए भारतीयों का हित डोनाल्ड ट्रंप के जीतने में था परंतु 2020 के विपरीत इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप के पक्ष में जनमत तैयार करने के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. इसके बावजूद अमेरिका में बसे भारतीय समुदाय ने ट्रंप के लिए प्रचार किया. यह भी उल्लेखनीय है कि ट्रंप के डेप्युटी जेडी वेंस की पत्नी भारतीय मूल की हैं. इसलिए भी अमेरिका में भारतीयों ने ट्रंप को वोट किया लेकिन जीतने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध रूप से USA में घुसने की कोशिश कर रहे भारतीयों के साथ बहुत कड़ाई बरती. दो बार विमानों में उन्हें ठूंसकर अमृतसर भेजा गया.
ट्रंप ने भारतीयों के प्रति बेरुख़ी दिखाई
भारतीयों को USA का वीज़ा मिलने के रास्ते में अवरोध उत्पन्न किए गए. यहां तक कि USA में वैध रूप से रह रहे भारतीयों के लिए भी पग-पग पर खतरा था. हालांकि भारतीय माल के निर्यात में कोई बाधा नहीं आई. शायद इसीलिए डोनाल्ड ट्रंप ने अपना ट्रंप कार्ड खेला. 10 मई को भारत ने जब पाकिस्तान के साथ सीजफायर की घोषणा की. उसके पूर्व डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर लिखा कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम के लिए मध्यस्थता की. भारत के लिए ट्रंप का यह ट्वीट अपमानजनक था. ट्रंप कितना भी ट्रेड ट्रीटी की बात करें लेकिन किसे नहीं पता था कि भारत की सैन्य ताक़त पाकिस्तान के मुक़ाबले प्रबल थी. पाकिस्तान द्वारा एटम बम की धमकी पूरी तरह गीदड़ भभकी थी. कोई भी देश इस बात को मानने के लिए राज़ी नहीं था कि पाकिस्तान भारत पर परमाणु हमला कर सकता है.
सीजफायर एक रणनीति थी
परमाणु हमले की जरा भी आशंका होती तो नई दिल्ली का चाणक्यपुरी इलाक़ा पूरी तरह खाली हो जाता. सारे विदेशी राजनयिक फौरन दिल्ली से निकल जाते. इसलिए भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफ़ायर में व्यापार एक गुत्थी थी. यूं भी भारत 22 अप्रैल की पहलगाम घटना का जवाब छह और सात मई की रात को दे चुका था. पाकिस्तान स्थित 9 आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करते ही उसका मक़सद पूरा हो चुका था. इसलिए उसे युद्ध खींचने की कोई जरूरत नहीं थी. पाकिस्तान को भी पता था कि वह भारत से अधिक दिनों तक युद्ध नहीं कर सकता. तुर्किये और चीन व फ़्रांस के हथियार उसका बचाव नहीं कर सकते. चीन सिर्फ हथियार बेच रहा था उसे पाकिस्तान की तरफदारी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. इधर रूस भी इस बार भारत के पक्ष में पूरी तरह नहीं खड़ा था.
रूस ने तटस्थता बरती
जिस रूस के खिलाफ यूक्रेन युद्ध की बाबत भारत ने 2022 से 2025 तक एक शब्द नहीं कहा, वह भी चीन के दबाव में भारत के प्रति तटस्थ था. इसलिए भारत ने सीजफ़ायर की घोषणा की. पाकिस्तान तो खुद ही इस पहल को राजी था. यही कारण है कि USA में बसे भारतीय डोनाल्ड ट्रंप के दावे के प्रति कोई असंतोष नहीं जता रहे थे. दुनिया में अमेरिका में ही औसत NRI बेहतर ज़िंदगी जी रहे हैं. अमेरिका उन्हें एक आरामदेह ज़िंदगी जीने का अवसर देता है. चूंकि अमेरिका डिजिटल और कम्प्यूटर क्रांति में सबसे आगे है. इसलिए भारत के टेक प्रोफेशनल वहां अच्छा-ख़ासा वेतन पाते हैं. महेंद्र सिंह के अनुसार, वो भारतीय जो भारत के लिए नरेंद्र मोदी को अपरिहार्य मानते हैं, वो अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को.
NRI ट्रंप से खुश
वेंकट राजू पेंसिलवानिया में रहते हैं. उनको जितना वेतन USA में मिल रहा है, उतना किसी भी अन्य देश में संभव नहीं है. उनका कहना है भारत में मोदी और USA में डोनाल्ड ट्रंप. जो बाइडेन कोई गड़बड़ आदमी नहीं थे लेकिन रूस यूक्रेन युद्ध में उन्होंने USA और NATO देशों को व्यर्थ में फंसा दिया था. पूरा अमेरिका महंगाई की चपेट में था. परंतु डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिका फ़र्स्ट का नारा हिट हो गया. कनाडा, मैक्सिको और चीन से टैरिफ बढ़ाने के बावजूद उन्हें माल अमेरिका को ही बेचना होगा. इसलिए ट्रंप की खट्टी-मीठी गोलियां असर दिखाती रहेंगी. अमेरिका जिस शीर्ष पर बैठा है, वहां से हाल-फ़िलहाल उसका उतरना मुश्किल है और यही ट्रंप की जीत है.
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