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जंग से पहले सेना की मॉक ड्रिल किसने शुरू की, कैसे भारत पहुंची? भारत-पाक तनाव के बीच शुरू हुई चर्चा

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May 6, 2025    150849 views     Online Now 126
जंग से पहले सेना की मॉक ड्रिल किसने शुरू की, कैसे भारत पहुंची? भारत-पाक तनाव के बीच शुरू हुई चर्चा

कनाडा में साल 1942 में बड़े पैमाने पर सैन्‍य मॉक ड्रिल आयोजित की गई थी जिसे ‘इफ डे’ कहा गया.

भारत सरकार ने 7 मई को देश भर के 295 जिलों में मॉक-ड्रिल के आदेश दिए हैं. इस समय देश में कुल आठ सौ से ज्यादा जिले हैं. मतलब लगभग एक तिहाई से ज्यादा जिलों में यह ड्रिल होने वाली है. छोटी-छोटी सुरक्षात्मक ड्रिल तो जिला और राज्य स्तर पर होती रहती है लेकिन इतनी बड़ी ड्रिल साल 1971 में हुई थी.

पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद देश गुस्से में है. ऐसे में इस ड्रिल का महत्व बढ़ जाता है. यह भी संकेत देता है कि पाकिस्तान पर हमले के पहले देश की आंतरिक सुरक्षा और देश के आम नागरिकों की सुरक्षा भी बहुत जरूरी है. ऐसे में आइए जानते हैं कि मॉक ड्रिल का इतिहास क्या है? दुनिया में इसकी शुरुआत कब हुई? भारत में कब-कब हुई?

दूसरे विश्व युद्ध से हुई शुरुआत

मॉक ड्रिल का इतिहास बहुत पुराना है. दुनिया के हर देश इसे सुरक्षा के लिए इस्तेमाल करते आ रहे हैं. यह अलग-अलग हालातों में होती आ रही है. बाढ़, आपदा, भूकंप, तूफान आदि जैसी स्थितियों से निपटने के लिए अक्सर इस तरह की ड्रिल आमजन के बीच होती आई है. इसके रूप-स्वरूप अलग-अलग हो सकते हैं. मॉक ड्रिल के शुरू होने की सटीक जानकारी तो नहीं मिलती है लेकिन दूसरे युद्ध के दौरान इसका खूब प्रयोग हुआ.

हालांकि, दावा किया जाता है इसकी शुरुआत रोम से हुई. उनके दौर में मॉक ड्रिल रोमन मिलिट्री ट्रेनिंग का हिस्सा हुआ करता है. वो आर्मी की ट्रेनिंग के लिए कई तरीके अपनाते थे. मॉक बैटल यानी जंग जैसे हालात बनाना भी इसका ही हिस्सा था. इस ड्रिल को रोमन आर्मी को अनुशासन में रखने और सक्रिय रखने के लिए अनिवार्य माना जाता था.

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घोषित तौर पर कनाडा में साल 1942 में इस तरह की ड्रिल बड़े पैमाने पर आयोजित की गई थी जिसे इफ डे कहा गया था. इस दौरान नकली नाजी हमले का नाटक किया गया और फिर बचाव के तरीके सिखाए, प्रदर्शित किये गए. भारत में साल 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के ठीक पहले ऐसी ही ड्रिल देश भर में की गई थी.

आधुनिक मॉक ड्रिल की शुरुआत अमेरिका-यूरोप से

पहले जो मॉक ड्रिल होती थी, तब उतने संसाधन नहीं थे. यह मूलतः सेना के प्रशिक्षण का हिस्सा होती थी. बाद में इसमें फायर सर्विस, नागरिक सुरक्षा संगठन, पुलिस जैसे महकमों को शामिल किया गया. संसाधन भी झोंके गए. गरज सिर्फ यह कि आम लोगों को विषम हालातों में सुरक्षा के प्रति जागरूक करना, सैन्य ठिकानों को सुरक्षित करना, देश की अन्य महत्वपूर्ण इमारतों-संस्थानों की रक्षा जरूरी माना गया. कई बार दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मॉक ड्रिल बिना शोर-शराबे के भी हुई. विकसित देशों में यह भारत से पहले शुरू हुई. पर, जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा, भारत ने इस दिशा में तेजी से तैयारियां की और आगे बढ़ते हुए देखा गया.

साल 2000 में भारत ने एक मजबूत पहल की

भारत में साल 1971 के बाद जब साल 2000 में गुजरात के भुज में भूकंप का कहर बरपा तब इस ओर सरकार ने स्थायी तरीके से सोचना शुरू किया और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन हुआ. इसे एक मजबूत पहल के रूप में देखा गया. कालांतर में यह राज्य आपदा प्रबंधन यूनिट्स राज्यों में भी गठित की गई जो बाढ़, भूकंप, आपदा आदि की स्थिति में बहुत शानदार प्रदर्शन करती हुई देखी जा रही है. चाहे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश की आपदा हो या समुद्री इलाकों में आने वाली सुनामी. हर आपदा में इस संगठन की भूमिका महत्वपूर्ण तारीक से सामने आती हुई देखी जा रही है. जब से राज्यों में यह संगठन बना और राष्ट्रीय स्तर पर इसे मजबूती मिली तब से आपदा से निपटने के तरीकों पर स्कूल, अस्पताल और अन्य ऐसी जगहों पर जागरूकता अभियान चलने शुरू हुए. इसे भी मॉक ड्रिल ही कहा गया. ऐसी खबरें अब आम हैं.

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भारत की प्रमुख मॉक ड्रिल

  1. साल 1971: भारत-पाक युद्ध के ठीक पहले
  2. साल 2007: दिल्ली में भूकंप मॉक ड्रिल
  3. साल 2011: उत्तराखंड में भूकंप और भूस्खलन
  4. साल 2014: मुंबई में आतंकी हमला
  5. साल 2016: चेन्नई में बाढ़ राहत
  6. साल 2018: एनडीएमए ने देश भर में स्कूल एवं सरकारी दफ्तरों में ड्रिल किया
  7. साल 2020: कोविड के दौरान देश भर में अस्पतालों को कोरोना वायरस से निपटने हेतु
  8. साल 2023: असम की राजधानी गुवाहाटी में रासायनिक आपदा की ड्रिल
  9. साल 2025: सात मई को देश भर में आयोजन प्रस्तावित
  10. साल 1962: चीन युद्ध के समय शुरू हुआ सिविल डिफेंस

भारत में कैसे शुरू हुई थी?

भारत में इस तरह की ड्रिल आयोजित करने के इरादे से साल 1962 में चीन-भारत युद्ध के समय सिविल डिफेंस की शुरुआत हुई थी. यह जागरूक नागरिकों का दस्ता था जो देश भर में उपलब्ध हुआ करता था. इसके खाते में अनेक उपलब्धियां हैं. पर, समय के साथ यह संगठन निष्क्रिय होता गया. हालाँकि, इसकी यूनिट्स आज भी जिला स्तर पर मौजूद हैं. यही संगठन साल 1965 के युद्ध में भी सक्रिय भूमिका में था और आमजन को लाइट बंद करने से लेकर सुरक्षा के अन्य उपायों की जानकारी दे रहा था.

यह भी पढ़ें: पाकिस्तान से तनाव के बीच होने वाली मॉक ड्रिल में क्या-क्या होगा?

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