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किडनी डायलिसिस के बाद कुछ मरीजों को क्यों पड़ती है ट्रांसप्लांट की जरूरत, क्या है कारण?

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Apr 20, 2025    150814 views     Online Now 312
किडनी डायलिसिस के बाद कुछ मरीजों को क्यों पड़ती है ट्रांसप्लांट की जरूरत, क्या है कारण?

किडनी की सेहत का कैसे रखें ध्यान Image Credit source: MirageC/Moment/Getty Images

जब किसी की किडनी सही तरीके से काम करना बंद कर देती है, तो डॉक्टर डायलिसिस करवाने की सलाह देते हैं. डायलिसिस एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मशीन की मदद से शरीर से गंदगी और एक्स्ट्रा पानी निकाला जाता है जो आमतौर पर किडनी करती है, लेकिन बहुत से लोग सोचते हैं कि जब डायलिसिस से काम चल रहा है तो फिर किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत क्यों पड़ती है? आइए इस सवाल का जवाब जानते हैं.

डायलिसिस सिर्फ एक अस्थायी उपाय

सबसे पहली बात ये है कि डायलिसिस किडनी की बीमारी का इलाज नहीं है, बल्कि एक अस्थायी सहारा है. मतलब ये कि डायलिसिस किडनी की जगह तो ले लेता है, लेकिन हमेशा के लिए नहीं. हर हफ्ते दो या तीन बार मरीज को डायलिसिस सेंटर जाना पड़ता है और ये प्रक्रिया थकाने वाली भी होती है. धीरे-धीरे शरीर पर इसका असर दिखने लगता है. जैसे कमजोरी बढ़ती है, खून की कमी हो सकती है और दिल पर भी दबाव पड़ता है.

ट्रांसप्लांट से जिंदगी में आता है बड़ा बदलाव

जब किसी मरीज की किडनी पूरी तरह खराब हो जाती है और लंबे समय से डायलिसिस चल रही होती है, तो डॉक्टर ट्रांसप्लांट की सलाह देते हैं. ट्रांसप्लांट यानी किसी और की स्वस्थ किडनी मरीज के शरीर में लगाई जाती है. अगर सब कुछ ठीक रहता है, तो ये नई किडनी फिर से शरीर के अंदर से सारे विषैले तत्व और फालतू पानी बाहर निकालने लगती है.

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इससे मरीज की दिनचर्या सामान्य हो जाती है. रोज-रोज अस्पताल के चक्कर नहीं लगाने पड़ते, खाना-पीना बेहतर हो जाता है और शरीर में ताकत लौट आती है. कई लोग ट्रांसप्लांट के बाद फिर से नौकरी या पढ़ाई भी शुरू कर देते हैं.

हर मरीज के लिए नहीं होता ट्रांसप्लांट आसान

हालांकि, ट्रांसप्लांट करवाना हर किसी के लिए आसान नहीं होता. सबसे पहले तो एक मैचिंग डोनर मिलना बहुत बड़ी चुनौती है. उसके बाद ट्रांसप्लांट के बाद जिंदगी भर कुछ दवाइयाँ लेनी पड़ती हैं ताकि शरीर नई किडनी को अपनाए और उसे रिजेक्ट न कर दे. इसके अलावा, कुछ मरीजों की हालत इतनी नाजुक होती है कि वो ट्रांसप्लांट के लिए फिट ही नहीं होते. इसलिए जब डायलिसिस शुरू होती है, तभी से डॉक्टर यह आकलन करते रहते हैं कि मरीज ट्रांसप्लांट के लिए उपयुक्त है या नहीं. अगर हाँ, तो समय रहते ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया शुरू की जाती है..

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