
सुनीता विलियम्स की धरती पर वापसी पर उनके पैतृक गांव झुलासन में जश्न का माहौल है.
19 मार्च 2025… सुबह करीब 4 बजे… इस वक्त पूरा देश जश्न में डूब गया. मौका था भारत की बेटी सुनीता विलियम्स की धरती पर सकुशल वापसी का. वे 9 महीने बाद धरती से 400 किलोमीटर दूर अंतरिक्ष से वापस आईं. सुनीता विलियम्स के आने की खुशी में अमेरिका से लेकर भारत में मौजूद उनके पैतृक गांव के लोग भी खुशी मना रहे हैं. इस बीच उनकी सलामती के लिए उनके गांव में लगातार पूजा की जा रही थी. लोग गांव में मौजूद प्राचीन मंदिर में मुस्लिम देवी को पूज रहे थे.
अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स का पैतृक गांव गुजरात के मेहसाणा जिले में है. गांव का नाम झुलासन है. यहां उनके पिता दीपक पांड्या का जन्म हुआ था. 1957 में वे अमेरिका चले गए थे. इस गांव में सुनीता विलियम्स के परिजन रहते हैं. साल 2013 में सुनीता विलियम्स यहां आईं थीं. उन्होंने यहां स्थित प्रसिद्ध डोला माता मंदिर में पूजा की थी. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां मुस्लिम देवी की पूजा की जाती है.
मंदिर में सुनीता विलियम्स की सलामती के लिए पूजा
गांव के इस मंदिर में सुनीता विलियम्स की सलामती के लिए जुलाई 2024 से प्रार्थना की जा रही थी. इसके लिए मंदिर में मौजूद मुस्लिम देवी डोला माता की पूजा के साथ यहां अखंड ज्योति भी जलाई गई. गांववालों को विश्वास था कि डोला माता उन्हें मुसीबत से बचाएंगी. मंदिर में सुनीता विलियम्स की तस्वीर भी लगाई गई. जैसे ही वह अंतरिक्ष से सकुशल वापस लौटीं उनके गांव में जश्न शुरू हो गया. उनका फिर से एक बार डोला माता पर भरोसा मजबूत हुआ है.
4 करोड़ रुपये में बना मंदिर
सुनीता विलियम्स का पैतृक गांव झुलासन अहमदाबाद से करीब 40 किलोमीटर दूर है. ‘topyaps’ की रिपोर्ट के मुताबिक, गांव में मौजूद प्रसिद्ध डोला माता का मंदिर देश में अकेला मंदिर है, जहां मुस्लिम देवी की पूजा की जाती है. इसे ‘डॉलर माता’ के नामा से भी जाना जाता है. हैरानी वाली बात यह है कि इस मंदिर को बनाने में गांववालों ने 4 करोड़ रुपये खर्च किए. मंदिर करीब 250 साल पुराना है. इसमें जिन डोला देवी की पूजा की जाती है, वे एक मुस्लिम महिला थीं. गांववाले उनकी वीरता को लेकर उन्हें पूजते हैं.
कौन हैं मुस्लिम देवी ‘डोला’?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 250 साल पहले गांव में डोला नाम की मुस्लिम महिला रहती थीं. उन्हीं दिनों गांव पर उपद्रवियों ने हमला कर दिया. उनसे निपटने के लिए डोला आगे आईं और उनका वीरतापूर्वक सामना किया. उन्होंने उनसे लड़ाई लड़कर गांव को बचाया. इस बीच उपद्रवियों से लड़ते हुए वे अपनी जान गवां बैठीं. उन्होंने अपने प्राण देकर गांव को बचा लिया. कहते हैं कि डोला के मरने के बाद उनका शरीर एक फूल में बदल गया. गांववालों ने इसी फूल के ऊपर डोला की याद में मंदिर का निर्माण कराया. उनका विश्वास है कि डोला माता आज भी उनकी रक्षा करती हैं.
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